Supreme Court Bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 1 अप्रैल 2025 को प्रयागराज में 2021 में हुई बुलडोजर कार्रवाई के मामले में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी (PDA) को कड़ी फटकार लगाते हुए पांच याचिकाकर्ताओं को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसे संविधान के तहत नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए कहा कि 24 घंटे के भीतर मकान गिराने की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध थी। कोर्ट ने इसे समाज में गलत संदेश फैलाने वाली और कानून के शासन के खिलाफ कार्रवाई करार दिया।
क्या था मामला?
यह मामला 2021 का है, जब प्रयागराज के लूकरगंज क्षेत्र के नजूल प्लॉट नंबर 19 में कुछ मकानों को अवैध निर्माण बताकर PDA ने बुलडोजर चलाया था। याचिकाकर्ताओं में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोग शामिल थे। उन्होंने दावा किया कि शनिवार शाम को उन्हें नोटिस मिला और अगले ही दिन रविवार को उनके घरों को ध्वस्त कर दिया गया। इस कार्रवाई को अवैध मानते हुए याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
Supreme Court का आदेश
Supreme Court की बेंच, जिसमें जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने इस मामले में कड़ी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि नोटिस देने के मात्र 24 घंटे के भीतर मकान गिराना कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है और यह आश्रय के अधिकार (अनुच्छेद 21) का हनन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे समाज में एक गलत संदेश गया है, जो कानून के शासन के खिलाफ है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मुआवजा प्रभावितों को राहत देने के साथ-साथ सरकार को भविष्य में इस तरह की मनमानी से रोकने के लिए भी है।
चिंता और भविष्य की दिशा
फैसले के दौरान Supreme Court ने एक हालिया वीडियो का भी हवाला दिया, जिसमें एक बच्ची अपनी किताबें लेकर ढहती झोपड़ी से भागती दिख रही थी। कोर्ट ने इसे “अंतरात्मा को झकझोरने वाला” करार दिया और कहा कि ऐसी कार्रवाइयों से मासूम लोगों को बेघर करना अस्वीकार्य है। कोर्ट ने पहले के दिशानिर्देशों का भी हवाला दिया, जिसमें किसी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य था। इसके अलावा, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अपने खर्चे पर घर दोबारा बनाने की अनुमति दी, लेकिन कहा कि अगर उनकी अपील खारिज होती है, तो उन्हें निर्माण हटाना होगा।
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