प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। Prayagraj Mahakumbh 2025 संगमगनरी में दुनिया के सबसे बड़े महापर्व महाकुंभ का आगाज 13 जनवरी को हो गया। दो दिन में करीब पांच करोड़ भक्तों ने त्रिवेणी में डुबकी लगाकर पुण्ण कमाए। भक्तों के आने का सिलसिला जारी है। अनुमान है कि 45 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में 40 से 45 करोड़ लोग प्रयागराज पहुंचेंगे। इस बार के महाकुंभ में हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे की अंडरवॉटर ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे और यहां तक की हवाई निगरानी भी की जा रही है। हिन्दु ग्रन्थों में कुंभ का जिक्र है और इसका इतिहास सैकड़ों वर्ष प्राचीन हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान भी कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ में आने वाले भक्तों से अंग्रेज टैक्स वसूला करते थे।
कुंभ टैक्स के तौर पर 1 रूपए लेते थे अंग्रेज
कुंभ का इतिहास सैकड़ों वर्ष प्राचीन हैं। मुगलों से लेकर अंग्रेजों के शासनकॉल के दौरान कुंभ मेले का आयोजन हुआ करता था। तब ब्रिटिश सरकार कुंभ में आने वाले भक्तों से टैक्स वसूलती थी। अंग्रेज इसे बिजनेस के रूप में देखा करते थे। ब्रिटिशों को कुंभ के धार्मिक महत्व से कोई लेनादेना नहीं था। जानकारी के अनुसार, कुंभ में आने वाले हर भक्त को इस पवित्र संगम में स्नान करने के लिए एक रुपये देना ही पड़ता था। तब के समय मे इसे ‘कुम्भ टैक्स’ से जाना जाता था। कुंभ टैक्स देने के बाद ही भक्तों को अंदर एंट्री मिलती थी। उस समय में एक रुपये देना भी बहुत बड़ी राशि हुआ करती थी।
तब मिलते था 8 रूपए वेतन
ब्रिटिश शासनके दौर भारतीयों की औसत मजदूरी 10 रुपये से भी कम थी। उदाहरण से समझें तो काम करने वाले शख्स को महज 8 रुपये महीना मिलता था। यह सब जानते हुए भी अंग्रेज कुम्भ टैक्स एक रुपया का लेते थे। यह ब्रिटिशों का भारतीयों का शोषण करने का एक और तरीका था। फिर, रानी लक्ष्मीबाई जैसी क्रांतिकारियों को प्रयागवालों ने शरण दी और इसी के साथ कुंभ मेला महाकुंभ मेला भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गया। ब्राम्हणों ने टैक्स को लेकर बिगुल फूंका। इस दौरान अंग्रेजों ने ब्राम्हण क्रांतिकारियों को सलाखों के पीछे भेजा। कईयो को फांसी की सजा दी। रानी लक्ष्मीबाई ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की।
3,000 नाई केंद्र स्थापित किए
भारत में करीब 24 साल बिताने वाली ब्रिटिश महिला फैनी पार्क ने इस कुंभ कर और स्थानीय व्यापारियों पर इसके प्रभावों के बारे में लिखा है। उन्होंने बताया कि, यह कर कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं से लिया जाता था। इसके साथ ही कुंभ मेले में व्यापार करने वालों जैसे नाई से भी कर वसूला जाता था। कुंभ में कई श्रद्धालु अपने बाल मुंडवाते थे, जिससे नाई का व्यापार काफी बढ़ गया। 1870 में अंग्रेजों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए और उनसे करीब 42,000 रुपये कमाए। इसमें से करीब एक चौथाई रकम नाइयों से ली जाती थी, प्रत्येक नाई को 4 रुपये का कर देना पड़ता था। अंग्रेज सरकार और उनके अफसरान इस रकम से अपनी तिजोरी भरते थे।
अकबर ने लगाया था टैक्स
कुंभ मेले के बढ़ते टैक्स ने स्थानीय समुदायों, खासकर प्रयागवाल ब्राह्मणों को नाराज कर दिया था। ये लोग श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करते थे और बदले में उन्हें दक्षिणा भी मिलती थी, लेकिन कुंभ कर ने उनकी कमाई में कटौती कर दी थी। साथ ही इस समय कई ईसाई मिशनरी भी प्रयागराज आकर हिंदू श्रद्धालुओं को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे थे, जिससे स्थानीय लोग और भी नाराज हो गए। इतिहासकारों का ये भी दावा है कि अकबर के शासनकाल में कुंभ मेले से टैक्स वसूलने की शुरुआत हुई। बाद में हिंदुओं की मांग पर कुंभ में वसूला जाने वाला टैक्स अकबर द्वारा ही खत्म करने की बात भी सामने आती है।
1942 में अंग्रेजों ने कुंभ पर लगा दी थी रोक
1942 के कुंभ मेले के दौरान अंग्रेजों ने तीर्थयात्रियों पर प्रतिबंध लगा दिया। आधिकारिक तौर पर अंग्रेजों ने कहा कि वे जापानी हमले से बचने के लिए यह कदम उठा रहे हैं, लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि यह कदम ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की बढ़ती ताकत के कारण उठाया गया था। जब अंग्रजों ने भारत को आजाद किया, जब फिर से कुंभ का आयोजन हुआ। इस कुंभ में पडित जवाहरलाल नेहरू और तब के राष्ट्रपति ने त्रिवेणी में डुबकी लगाई थी। कुंभ में हाथियों के कारण बड़ा हादसा हुआ। इसी के बाद कुंभ में वीवीआईपी और हाथियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।