कानपुर ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर को धार्मिक, क्रांतिकारी और आर्थिक राजधानी के तौर पर जाना जाता है। यहां पर अब भी अंग्रेजों के जमानें की मिले हैं तो हैलट, उर्सला और एचबीटीयू शिक्षण संस्थान हैं। बिठूर भी ज्यों की त्यों आज भी क्रांतिकारियों की वीरगाथा की कहानियों को जिंदा किए हुए है तो वहीं मां गंगा निर्मल-अविरल है। गंगा के तटों पर शिव के अलावा अन्य देवी स्थल मौजूद हैं। जहां भक्त आते हैं और मां गंगा में डुबकी लगाकर देवायलों मे ंजाकर पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ ऐसे शिवालय हैं, जिनके नाम अजब-गजब के हैं और सभी का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना हैं। थानेश्वर, झगड़ेश्वर, खस्तेश्वर, जागेश्वर बाबा के दर पर सैकड़ों भक्त माथा टेककर मन्नत मांगते हैं और सभी शिव मंदिर की कहानी भी अद्भुत है।
नवाबगंज में विराजमान जागेश्वर बाबा
सीएसएस और एचबीटीयू से कुछ दूरी पर गंगा के किनारे नवाबगंज स्थित जागेश्वर मंदिर है। सावन के महिने के अलावा शिवरात्रि में लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि सैकड़ों साल पहले यहां घना जंगल था। सिंहपुर कछार निवासी जग्गा किसान भी अपनी गायें चराने के लिए इसी टीले पर लाया करता था। उसकी एक दुधारू गाय ने दूध देना बंद कर दिया। जग्गा ने इसकी पड़ताल की तो देखा कि वह गाय टीले पर आकर दूध गिरा देती थी। जग्गा ने गांववालों को बताया और टीले पर खुदाई शुरू की तो एक शिवलिंग मिला। गांववालों ने विधि-विधान से पूजा-पाठ के बाद उसे यहीं पर स्थापित कर जग्गा किसान के नाम से मंदिर का नाम जागेश्वर रख दिया। मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। सुबह भूरा, दोपहर में ग्रे और रात में काले रंग का दिखता है।
यहां पर विराजमान हैं झगडे़श्वर महादेव
कालपी रोड पर झगडे़श्वर मंदिर में विराजे हैं झगडे़श्वर महादेव। इसके पीछे की कहानी काफी रोचक है। महादेव का यह छोटा सा मंदिर तीस साल से भी ज्यादा पुराना है। इलाके के लोगों की मानें तो जब यह मंदिर बनाया जा रहा था तब इसको लेकर लोगों में काफी वाद-विवाद हुआ था। जिस जगह यह स्थित है वहां मिश्रित आबादी के लोगों के बीच अक्सर झगडे़ होते रहते हैं। दंगे भी हो चुके हैं। इसी वजह से इस मंदिर का नाम झगड़ेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी भक्त बाबा के दर पर आत है तो उसकी हर मन्नत पूरी होती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि सावन के महिने में बाबा के दरबार में जो भी भक्त हाजिरी लगाता है तो उसके साथ कभी किसी से झगड़ा नहीं होता। इतना ही नहीं मंदिर में दो पक्षों के झगड़ो का निराकरण भी कराया जाता है।
बिठूर में विराजमान हैं थानेश्वर महादेव
बिठूर में स्थित थानेश्वर महादेव मंदिर कई सालों तक बेनाम ही था। आसपास रह रहे लोगों के मुताबिक 20 साल पहले ध्रुव टीले से थोड़ी दूर पर बने एक प्राचीन मंदिर में चोरों ने हाथ साफ किया था। मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों को थोड़ी दूर झाड़ियों में शिवलिंग मिला था जिसको अधिकारियों ने बिठूर थाने के कार्यालय के सामने परिसर में बने एक मंदिर में स्थापित करा दिया। तबसे यह अनाम मंदिर था। पूर्व थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने दीपावली के दिन इस मंदिर की साफ-सफाई कराई और इसको थानेश्वर महादेव मंदिर नाम दे दिया। स्थानीय लोग बताते हैं कि थनेश्वर के दरबार में आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। थानेश्वर बाबा लोगों की सुरक्षा भी करते हैं।
चौक में विराजमान हैं कोतवालेश्वर
पहले शहर की कोतवाली चौक इलाके में हुआ करती थी। बाद में कोतवाली बड़ा चौराहा के पास शिफ्ट हुई तो चौक में कोतवाली वाले स्थान पर भगवान शिव का मंदिर बना दिया गया। चूंकि यहां पर किसी जमाने में कोतवाली हुआ करती थी इसलिए इस मंदिर को कोतवालेश्वर मंदिर नाम दे दिया गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि कोतवालेश्वर बाबा लोगों की सुरक्षा करते हैं। मंदिर पर आने वाले हर भक्त की मन्नत को पूरी करते हैं। सावन के महिने में देश के कोने-कोन से भक्त बाबा के दर पर आकर माथा टेकते हैं। मंदिर में पुलिसवालों के अलावा सेना के जवान भी आते हैं।
चावलामंडी में हैं खस्तेश्वर मंदिर
चावलमंडी में स्थित खस्तेश्वर मंदिर करीब 145 साल पुराना है। इस मंदिर को नाम मिला राम नारायण खस्ते वाले से। दरअसल इस दुकान के खस्ते इतने ज्यादा फेमस हो गए कि लोगों ने पास में ही स्थित भगवान शिव के मंदिर को खस्तेश्वर मंदिर के नाम से पुकारना शुरू कर दिया और इसका नाम खस्तेश्वर मंदिर ही पड़ गया। इस मंदिर में शिव परिवार, राम- जानकी परिवार व दक्षिणमुखी हनुमान प्रमुख रूप से विराजमान हैं और खस्ते का भोग लगता है। सावन के आलावा शिवरात्रि में देशभर से भक्त आते हैं और खस्तेश्वर को खस्ते का भोग लगाकर मन्नत मांगते हैं।