UP Byelection: नहीं थम रहा यूपी में पोस्टर वॉर, सीएम योगी के नारे के जवाब में सपा ने लगावाएं पोस्टर

लखनऊ में राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है, जहां समाजवादी पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे का पलटवार करते हुए नए पोस्टर लगाए हैं। सपा के इस प्रयास का मतलब साफ है कि सीएम योगी के "कटेंगे तो बंटेंगे" के नारे को चुनौती देना।

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UP Byelection: लखनऊ में राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है, जहां समाजवादी पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे का पलटवार करते हुए नए पोस्टर लगाए हैं। सपा के इस प्रयास (UP Byelection) का मतलब साफ है कि सीएम योगी के “कटेंगे तो बंटेंगे” के नारे को चुनौती देना। नए पोस्टर में लिखा गया है, “न कटेंगे, न बंटेंगे, पीडीए के संग रहेंगे।” इस बयान के पीछे का मतलब यह है कि आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए सपा अपनी एकजुटता को दिखाना चाहती है।

सपा का रणनीतिक कदम

ये पोस्टर महराजगंज जिला के सपा नेता अमित चौबे द्वारा लगाए गए हैं, जो फरेंदा सीट से सपा की टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। इसमें अखिलेश यादव को “सत्ताईस का सत्ताधीश” बताया गया है। इस प्रकार की राजनीतिक रणनीति सपा की ओर से यह संकेत देती है कि वे अपने वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए गंभीर हैं और लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं।

निषाद पार्टी का मोर्चा

इसी बीच निषाद पार्टी ने भी अपने पोस्टर्स के जरिए राजनीतिक जंग में हिस्सा लिया है। उन्होंने कई जगहों पर पोस्टर लगाए हैं जिसमें लिखा है, “सत्ताईस का नारा, निषाद है सहारा।” यह पोस्टर निषाद पार्टी के नेता बिजेंद्र कुमार त्रिपाठी द्वारा लगवाया गया है। यह रणनीति निषाद पार्टी के वोट बैंक की शक्ति को प्रदर्शित करने का प्रयास है, खासकर तब जब उन्हें उपचुनाव में एक भी सीट नहीं मिली।

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क्या हैं निषाद पार्टी का दांव?

निषाद पार्टी का यह दांव यह बताने के लिए है कि बिना निषाद समाज के कोई भी पार्टी सत्ता की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएगी। यह एक प्रकार की प्रेशर पॉलिटिक्स है, जिसका उद्देश्य बीजेपी को यह याद दिलाना है कि 2027 के चुनावों में निषाद वोट बैंक कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

लखनऊ का यह पोस्टर वार न केवल सपा और निषाद पार्टी के बीच की राजनीतिक जंग को दर्शाता है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की सियासत में नए समीकरणों को भी जन्म दे रहा है। दोनों पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी पार्टी इस सियासी संघर्ष में बाजी मारती है और कौन सी रणनीतियां आगामी चुनावों में सफल होती हैं।

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