UP Electricity Rates: राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने यूपी में बिजली दरों में भारी कटौती का प्रस्ताव नियामक आयोग को सौंपा है। वहीं, पावर कॉरपोरेशन ने 30% दर बढ़ोतरी की मांग की है, जिसे जनता ने सिरे से खारिज करते हुए वित्तीय आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। परिषद ने कहा कि जब कंपनियों पर उपभोक्ताओं का हजारों करोड़ का बकाया है, तो दर बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। दरों पर अंतिम फैसला जून में सुनवाई के बाद होगा।
जनता ने पेश किया 45% कटौती का प्रस्ताव
UP में बिजली की दरें बढ़ेंगी या घटेंगी, इस पर अब नियामक आयोग जून में फैसला लेगा। इस बीच मंगलवार को राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली दरों में 40 से 45 फीसदी कटौती का प्रस्ताव आयोग को सौंप दिया। यह प्रस्ताव पावर कॉरपोरेशन की उस मांग के विरोध में है, जिसमें दरों में 30% बढ़ोतरी की मांग की गई है। परिषद ने कॉरपोरेशन के वित्तीय आंकड़ों को भी चुनौती दी है और कहा है कि नोएडा पावर कंपनी जैसी व्यवस्था अन्य बिजली कंपनियों पर लागू क्यों नहीं होती।
13 हजार करोड़ बकाया, फिर भी मांग बढ़ोतरी की
UP परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि वर्ष 2017-18 तक बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का 13,337 करोड़ रुपये बकाया था, जो 12% ब्याज के साथ अब 35,000 करोड़ रुपये पार कर गया है। ऐसे में दर बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि पावर कॉरपोरेशन बकाया को घाटा दिखाकर दरें बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जबकि यह रकम ब्याज सहित उपभोक्ताओं से वसूली जा सकती है।
प्रीपेड मीटर और वेतन पर भी उठे सवाल
UP परिषद ने यह भी कहा कि स्मार्ट प्रीपेड मीटरों की परियोजना के लिए केंद्र ने 18,885 करोड़ रुपये मंजूर किए थे, लेकिन टेंडर 27,342 करोड़ रुपये के निकाले गए। इसके अलावा विभागीय अभियंताओं की बजाय महंगे वेतन पर लेटरल एंट्री से लोगों की भर्ती की गई, जिससे खर्च बढ़ा।
पावर कॉरपोरेशन की सफाई
इस पर पावर कॉरपोरेशन के वाणिज्य प्रमुख डीसी वर्मा और वित्त प्रमुख सचिन गोयल ने बयान जारी कर कहा कि उनके वित्तीय आंकड़े पूर्णत: सही और सीएजी ऑडिटेड हैं। बैलेंस शीट ईआरपी प्रणाली पर आधारित है, जहां कोई मैन्युअल फेरबदल संभव नहीं है। उन्होंने जनता की आपत्तियों को अनुचित करार दिया।
राजनीतिक घोषणाएं और सब्सिडी की जिम्मेदारी
UP परिषद ने यह भी कहा कि भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में किसानों को मुफ्त बिजली और 100 यूनिट तक तीन रुपये दर की घोषणा की थी, जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की है, न कि उपभोक्ताओं पर इसका बोझ डालने की।