बिना जांच के 926 करोड़ की दवाएं मरीजों को बांटी गईं: यूपी में दवा घोटाला उजागर, CAG रिपोर्ट से हड़कंप

यूपी में 926 करोड़ की दवाएं बिना लैब टेस्ट मरीजों को बांटी गईं। CAG रिपोर्ट में बड़ा घोटाला उजागर हुआ है, जिससे स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठे हैं। मामला राज्यभर में हड़कंप मचा रहा है।

UP

UP medicine scam: उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर देने वाला घोटाला सामने आया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की हालिया ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि UP के जिला अस्पतालों और CMO कार्यालयों ने 926 करोड़ रुपये की दवाएं बिना किसी लैब टेस्ट के मरीजों को बांट दीं। यह खरीद 2020 से 2024 के बीच की गई और किसी भी स्तर पर दवाओं की गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी नहीं निभाई गई। न तो ड्रग इंस्पेक्टरों ने सैंपल लिए, न ही अस्पतालों ने किसी अधिकृत एजेंसी से टेस्टिंग करवाई। इससे दवा सप्लाई में गहराई से जुड़ा भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की बू आ रही है। इस खुलासे से स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन दोनों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

चार साल में 926 करोड़ की बिना जांच खरीदी गई दवाएं

CAG रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 से 2023-24 के बीच यूपी में औषधि और रसायन मद से कुल 926 करोड़ रुपये की दवा, सिरिंज और इंट्रावेनस फ्लूइड आदि की खरीद हुई। लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस पूरी खरीद प्रक्रिया में गुणवत्ता जांच को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। न तो दवा आपूर्ति करने वाली फर्मों से NABL प्रमाणपत्र लिए गए, न सैंपलिंग के कोई दस्तावेज मौजूद हैं। दवाएं अस्पतालों में पहुंचते ही सीधे मरीजों को दे दी गईं।

UP अस्पतालों और UP CMO कार्यालयों से की गई यह खरीद न केवल प्रक्रिया की अवहेलना है, बल्कि यह मरीजों की जान से खुला खिलवाड़ भी है। ड्रग इंस्पेक्टरों ने किसी भी स्तर पर सैंपलिंग नहीं की और न ही उन्हें ऐसा करने के लिए कोई व्यवस्था दी गई।

फर्मों से सीधी सप्लाई, कोई क्वालिटी चेक नहीं

रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय फर्मों से दवा खरीद कर उन्हें बिना टेस्ट मरीजों को दे देना सिस्टम की सबसे बड़ी चूक है। ड्रग इंस्पेक्टरों को खुद जाकर स्टोर से दवा के सैंपल लेने की अनुमति नहीं थी और अस्पतालों में ऐसी कोई प्रणाली भी नहीं थी जो सैंपल भिजवा सके। ऐसे में जो भी दवाएं आईं, उन्हें सीधे इलाज में इस्तेमाल कर लिया गया।

जानकारों का मानना है कि यह सब कमीशन के खेल का हिस्सा है। स्थानीय स्तर पर ऐसी फर्मों से दवा खरीदना जो जांच में फेल हो सकती हैं, सीधे तौर पर भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। पहले भी KGMU में ऐसा मामला सामने आने के बाद निजी लैब से टेस्टिंग शुरू की गई थी, लेकिन जिला अस्पताल और CMO कार्यालयों में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।

वित्तीय वर्षवार खरीद का विवरण (रुपये में):

स्वास्थ्य विभाग की सफाई और CAG की आपत्ति

UP स्वास्थ्य विभाग ने सफाई दी कि उन्होंने DVDMM पोर्टल पर रजिस्टर्ड फर्मों से ही दवाएं खरीदीं, जो गुणवत्ता में विश्वसनीय मानी जाती हैं। लेकिन CAG ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि फर्म कितनी भी प्रमाणित क्यों न हो, बिना लैब टेस्ट दवाएं मरीजों को देना स्वास्थ्य मानकों का खुला उल्लंघन है।

ऑडिट रिपोर्ट की कॉपी न मिलने का हवाला देकर चिकित्सा अधिकारियों ने जवाब देने से इंकार कर दिया है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि रिपोर्ट को लेकर उच्च स्तर पर हलचल तेज है।

अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं

हालांकि इस मामले ने प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल दी है, पर अभी तक किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई है। न ही अस्पतालों या CMO स्तर पर सैंपलिंग प्रक्रिया की शुरुआत की गई है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह भ्रष्टाचार यूं ही दबा दिया जाएगा?

UP में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर यह खुलासा बेहद चिंताजनक है। बिना जांच के मरीजों को दी गई दवाएं सिर्फ स्वास्थ्य जोखिम नहीं, बल्कि सिस्टम में गहरे बैठे भ्रष्टाचार की निशानी भी हैं। यदि इस पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह स्थिति भविष्य में और गंभीर परिणाम ला सकती है।

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