UP politics: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने जिला अध्यक्षों और महानगर अध्यक्षों की नई लिस्ट जारी की है जिसमें उसने समाजवादी पार्टी (सपा) के ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर बड़ा दांव खेला है। पार्टी ने 133 पदाधिकारियों में से 85 यानी करीब 65% नेताओं को इन समुदायों से चुनकर यह साफ कर दिया है कि वह यूपी की राजनीति में अपने दम पर आगे बढ़ने की तैयारी में है।
PDA की राजनीति में कांग्रेस की एंट्री
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (UP politics) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था जिससे PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को साधने की रणनीति को मजबूती मिली। अब कांग्रेस ने इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए अपने संगठन में भी इन वर्गों को प्राथमिकता दी है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2024 के चुनाव (UP politics) से पहले PDA का नारा दिया था लेकिन अब कांग्रेस इसी फॉर्मूले पर चलते हुए सपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है। इससे 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा और कांग्रेस के रिश्तों में नए समीकरण बन सकते हैं।
संख्याओं में कांग्रेस का समीकरण
कांग्रेस द्वारा घोषित 133 जिला और महानगर अध्यक्षों में 48 ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) नेताओं को जगह दी गई, 32 मुस्लिम नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई जबकि 20 नेता अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) से चुने गए। इस लिस्ट से साफ है कि कांग्रेस सपा की PDA रणनीति को खुद अपनाकर यूपी की राजनीति में अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है।
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क्या कांग्रेस अकेले लड़ेगी 2027 का चुनाव?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को गठबंधन में उचित सम्मान नहीं दिया तो कांग्रेस 2027 में अकेले मैदान में उतर सकती है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (BSP) जैसे अन्य दलों के साथ गठबंधन करने की संभावनाएं भी खुली हुई हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस को सपा के साथ मिलकर सख्त शर्तों पर चुनाव लड़ना पड़ा था लेकिन अब पार्टी अपनी शर्तों पर राजनीति करना चाहती है। कांग्रेस की यह नई रणनीति सपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।
यूपी में कांग्रेस की नई सियासी चाल
कांग्रेस का यह कदम भविष्य में यूपी की राजनीति में बड़े बदलाव ला सकता है। अगर कांग्रेस अपने PDA दांव को सही तरीके से भुना पाई तो यह सपा और कांग्रेस के बीच नए समीकरणों की ओर इशारा करता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि अखिलेश यादव कांग्रेस की इस चाल का कैसे जवाब देते हैं और क्या 2027 में यूपी में एक नया राजनीतिक मोर्चा बनता है या नहीं।