Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश की राजनीति में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों का विशेष महत्व है। इस समय यूपी विधानसभा में कुल 86 सीटें आरक्षित हैं जिनमें से 84 सीटें एससी और 2 सीटें एसटी के लिए निर्धारित हैं। यह आरक्षण व्यवस्था राज्य की सामाजिक संरचना और जनसंख्या वितरण को ध्यान में रखते हुए की गई है।
यूपी की कौनसी दो सीटें है एसटी आरक्षित
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए दो विधानसभा सीटें आरक्षित हैं जो है डुद्धी (403) और ओबरा (398)। दोनों सीटें सोनभद्र जिले में स्थित हैं जो उत्तर प्रदेश का एक आदिवासी बहुल इलाका है। यह आरक्षण 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लागू किया गया था ताकि राज्य में एसटी समुदायों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सके।
सोनभद्र जिले की भौगोलिक और सामाजिक संरचना इसे अन्य जिलों से अलग बनाती है क्योंकि यहां गोंड, कोल और अन्य आदिवासी समूह बड़ी संख्या में रहते हैं। इन सीटों पर राजनीतिक दलों का खास फोकस रहता है क्योंकि ये आदिवासी मतदाताओं के रुझान को दर्शाती हैं और चुनावी नतीजों पर असर डाल सकती हैं।
क्यों की गई एसटी के लिए सीटें आरक्षित
2017 से पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में एसटी के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद, राज्य में पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों को एसटी के लिए आरक्षित किया गया। ये दोनों सीटें सोनभद्र जिले में स्थित हैं, जो राज्य के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में है और जहां एसटी जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक है।
2017 के चुनाव में आरक्षित सीटों का क्या था हाल
2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आरक्षित सीटों पर प्रभावशाली प्रदर्शन किया। बीजेपी ने कुल 70 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की जिसमें 69 एससी और 1 एसटी सीट शामिल थी। इसके अलावा अपना दल (एस) ने 3 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की जिसमें 2 एससी और 1 एसटी सीट शामिल थीं। समाजवादी पार्टी (सपा) ने 7 बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 2 और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती। इस हिसाब से एनडीए गठबंधन ने आरक्षित सीटों में से लगभग 88% पर कब्जा जमाया।
यह भी पढ़े: बरेली में ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी विधायक और जिलाध्यक्ष को ही करना पड़ गया थाने का घेराव
एसटी आरक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में एसटी जनसंख्या का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है जिसके कारण पहले विधानसभा में एसटी के लिए सीटें आरक्षित नहीं थीं। हालांकि समय के साथ एसटी समुदायों की राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण की आवश्यकता महसूस की गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य में एसटी के लिए दो सीटें आरक्षित की गईं ताकि इन समुदायों की आवाज़ विधानसभा में सुनी जा सके।
2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी
जैसे-जैसे 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं सभी प्रमुख राजनीतिक दल आरक्षित सीटों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। पिछले चुनावों के आंकड़ों से स्पष्ट है कि आरक्षित सीटों पर प्रदर्शन राज्य की सत्ता के समीकरण को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए 2007 में बसपा ने 61 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि 2012 में सपा ने 58 आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया था। 2017 में बीजेपी ने 70 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की। इस हिसाब से आरक्षित सीटों पर मजबूत पकड़ बनाने वाला दल सरकार बनाने में सफल रहा है।
राजनीतिक दलों की क्या है रणनीति
2027 के चुनाव के लिए बीजेपी, सपा, बसपा, और अन्य दल आरक्षित सीटों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। बीजेपी अपने विकास कार्यों और सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से एससी और एसटी मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रही है। सपा और बसपा भी अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा नए गठबंधन और सामाजिक समीकरणों के माध्यम से आरक्षित सीटों पर पकड़ बनाने की कोशिशें जारी हैं।
2027 चुनाव में आरक्षित सीटों पर कौन मारेगा बाजी ?
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में एसटी के लिए केवल दो सीटों का आरक्षण राज्य की जनसांख्यिकी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का परिणाम है। 2017 से पहले इन सीटों पर आरक्षण नहीं था लेकिन अब इनका राजनीतिक महत्व बढ़ गया है। 2027 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर सभी दलों की नजरें टिकी हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल इन सीटों पर बढ़त बनाता है।