मीरजापुर। विंध्य क्षेत्र के किसानों की आय दोगुनी करने में मशरूम की खेती अब मददगार होगी। सरकार कम लागत में अधिक आय अर्जित करने के लिए नकदी औद्यानिकी फसलों को बढ़ावा दे रही है। सेहतमंद व प्रोटीनयुक्त होने के चलते बाजार में लगातार इसकी मांग बढ़ रही है। विकास खंड सिटी में मंडी समिति के पीछे राम कृष्ण तथा राजगढ़ में उदय प्रताप सिंह सहित कई किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं। बरकछा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में सितंबर के अंतिम सप्ताह में मशरूम उत्पादन तकनीक के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी डॉ. श्रीराम सिंह ने बताया कि अच्छे उत्पादन के चलते जनपद में कई किसानों का रुझान मशरूम की खेती की ओर बढ़ रहा है। किसानों को इसके लिए विभिन्न फसलों पर प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। पिछले कुछ वर्षों से मशरूम की खेती को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही मशरूम की खेती किसान कम जगह एवं कम समय में करके अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है की इसका बाजार स्थानीय स्तर भी उपलब्ध है। एक बैच में लगभग 30 किसानों को उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
कब होती है मशरूम की खेती
सफेद बटन मशरूम की खेती अक्तूबर से फरवरी मार्च तक होती है। मिल्की मशरूम की खेती सितम्बर माह में की जाती है। जबकि ढिंगरी मशरूम का उत्पादन मार्च से मई महीने तक होता है। चिलर प्लांट लगाने के बाद साल भर मशरूम का उत्पादन हो सकेगा।
ऐसे होती है मशरूम की खेती
राजगढ़ के किसान उदय प्रताप सिंह ने बताया कि मशरूम की खेती को करने के लिए बंद जगह की आवश्यकता होती है। मशरूम की फसल आरम्भ में संदूक की भांति उचित लम्बाई और ऊंचाई वाले आयताकार सांचा तैयार किया जाता है। इसमें भूसा और पुवाल आवश्यकता होती है। भूसा बारिश का भीगा न हो। भूसा कटा न होने पर मशीन से काट लेना चाहिए। इसके बाद भूसा को 75 प्रतिशत तक नमीयुक्त किया जाता है। इनको बोरों में भरा जाता है, जिसके बाद उन बोरों में बीजों को लगाया जाता है। अब इन बोरों के मुंह को रस्सी, टाट आदि से बांध देते हैं। इसके बाद इन बोरों को नमी बनाए रखने के लिए वातानुकूलित स्थान में रख देते हैं।