The Royal Nawab and His Private Railway Station: भारत में रेलवे का इतिहास जितना दिलचस्प है, उतना ही रोचक है पुराने नवाबों और रियासतों का किस्सा। एक दौर था जब देश में कई रियासतें हुआ करती थीं और उनके नवाब अपने शाही ठाठ-बाठ के लिए मशहूर थे। वे न सिर्फ आलीशान महलों में रहते थे, बल्कि उनका रहन-सहन भी पूरी तरह शाही होता था। आज हम आपको ऐसे ही एक खास नवाब के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके लिए खासतौर पर एक निजी रेलवे स्टेशन बनवाया गया था। ये अकेले ऐसे नवाब थे जिनके महल तक ट्रेन पहुंचती थी।
भारत की सबसे अमीर रियासत
यह बात सामान्य ज्ञान और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से भी अहम है। रामपुर रियासत, जो उत्तर प्रदेश में स्थित थी, आजादी से पहले भारत की सबसे अमीर रियासतों में से एक मानी जाती थी। इस रियासत के नवाब न सिर्फ अमीर थे बल्कि अपने खास अंदाज और रहन-सहन के लिए भी प्रसिद्ध थे।
नवाबों की शाही जिंदगी
रामपुर के नवाबों की जीवनशैली बेहद आलीशान थी। उनके ठाठ इतने अलग थे कि लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। नवाबों की इसी शाही सोच का एक उदाहरण है उनका प्राइवेट रेलवे स्टेशन। उन्होंने खुद के लिए ट्रेन को महल तक लाने के लिए रेलवे लाइन बिछवाई थी।
नवाब हामिद अली खान की खास ट्रेन
रामपुर रियासत के नवाब हामिद अली खान इस अनोखी पहल के पीछे थे। वे नवाबों की नौवीं पीढ़ी से थे। उन्होंने अपने महल तक ट्रेन लाने के लिए मिलक से रामपुर तक लगभग 40 किलोमीटर लंबी प्राइवेट रेल लाइन बिछवाई। इतना ही नहीं, उन्होंने 1925 में बड़ौदा स्टेट ट्रेन बिल्डर से चार आलीशान बोगियां भी खरीदीं, जिनका नाम रखा गया ‘सालों’।
कोच में थी सारी सुख-सुविधाएं
‘सालों’ नाम की इन बोगियों में किचन, बेडरूम, डाइनिंग रूम और बाकी आरामदायक सुविधाएं मौजूद थीं। नवाब खुद एक कोच में सफर करते थे और बाकी तीन बोगियों में उनके परिवार व सेवक चलते थे। हालांकि, जब भी उन्हें यात्रा करनी होती थी, तो इसकी जानकारी रेल मंत्रालय को देनी पड़ती थी ताकि उनकी बोगियों को किसी नियमित ट्रेन में जोड़ा जा सके।
भारत-पाक बंटवारे में निभाई बड़ी भूमिका
1947 के बंटवारे के दौरान, नवाब राजा अली खान (हामिद अली के उत्तराधिकारी) ने इन निजी बोगियों के जरिए रामपुर की मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान भिजवाया। बाद में, उन्होंने दो बोगियां भारत सरकार को सौंप दीं, जिनका इस्तेमाल 1966 तक किया गया। समय के साथ इस खास रेलवे स्टेशन की उपयोगिता कम होती गई और आखिरकार उसे बंद कर दिया गया।