उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. तबीयत बीगड़ने पर उन्हें 1 अक्टूबर को आईसीयू में भर्ती कराया गया था। मुलायम सिंह के निधन के बाद समाजवादी परिवार में शोक की लहर है। उनकी तबीयत बिगड़ने की सूचना पर बेटे अखिलेश यादव, भाई शिवपाल यादव और बहू अपर्णा यादव दिल्ली क लिए रवाना हो गए थे। बता दें कि तीन महिने पहले पत्नी साधना गुप्ता का भी निधन हो गया था। वहीं मुलायम सिंह यादव के निधन की जानकारी देते हुए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मेरे आदरणीय पिता जी और नेता जी नहीं रहें।
ऐसा रहा मुलायम सिंह यादव का सफर
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जले के सैफई गाँव में मूर्ति देवी व सुघर सिंह यादव के किसान परिवार में हुआ। मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई- बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपास सिंह और कमला देवी से बड़े है। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैै। पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थूसिंह को मौनपुरी में आयोजित एक कुश्ती- प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरु किया था।
सात बार निर्वाचित होकर लोकसभा सांसद बने.
उन्होंने राजनीति शाास्त्र में एमए की पढ़ाई की थी. वह 1967 में पहली बार यूपी के जसवंत नगर से विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे और फिर उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह आठ बार विधायक निर्वाचित हुए तो वहीं सात बार निर्वाचित होकर लोकसभा सांसद बने. 1996 में उन्हें यूनाइटेड फ्रंट गठबंधन की सरकार में रक्षा मंत्री बनने का भी अवसर मिला. रााजनीति की दुनिया में उनका झुकाव शुरुआत से ही समाजवाद की तरफ रहा और वो इटावा- मैनपुरी में भी समाजवादी राजनीति में हिस्सा लेने लगे. धीरे-धीरे वो राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह के प्रिय हो गए. सबसे पहले उन्होंने संयुक्त प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का दामन थामा और साल 1967 में विधायक बने. वहीं साल 1987 में क्रांतिकारी मोर्चा भी मुलायम सिंह यादव ने बनाया, जब चौधरी चरण सिंह अपने बेटे अजित सिंह को पार्टी में अहम पद पर लाए.इसके बाद उन्होंने चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) का दामन थामा. कभी साइकिल से चलने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब सााल 1992 में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई, तब उन्होंने उसका निशान साकिल ही रखा।
मुलायम सिंह यादव पर लगते रहे है आरोप
मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी पर परिवारवादी पार्टी होने के आरोप लगते रहे है. ये सच भी है कि उनके परिवार के तमाम लोग राजनीतिक पदों यहां तक की कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, लोकसभा, रााज्यसभा, विधानसभा, विधानपरिषद, जिला परिषद या उन तमाम राजनीतिक पदों पर रहे, जो राजनीतिक पर ताकतवर हो सकते हैं. लेकिन कभी वो परिवारवाद के नाम पर इंदिरा गांधी और पिर अपने ही गुरु चौधरी चरण के विरोधी हो गए थे और लोक दल पार्टी को ही तोड़ दिया था. चूंकि वो लोक दल में चौधरी चरण सिंह के बाद सबसे महत्वपूर्ण नेता थे, लेकिन चौधरी चरण सिंह अपनी विरासत को बेटे अजित सिंह को सौंप रहे थे, जिसक मुलायम सिंह यादव ने कड़ा विरोध किया और क्रांतिकारी मोर्चा का गठन कर लिया था. इसमें उनके सााथ तमाम कम्युनिट भी आ गए थे.
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर के अहम पड़ाव
पहली बार साल 1967 में मुलायम सिंह यादव विधायक बने
साल 1969 के चुनाव में उन्हें विधानसभा चुनाव में हार मिली
साल 1974 में फिर से मुलायम सिंह यादव विधायक बने
साल 1977 में पहली बार उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री बने
साल 1980 में लोक दल के अध्यक्ष बने
साल 1982 से 1985 तक वो विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष रहे
साल 1989 में वो पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
साल 1990 में जनता दल (समाजवादी) में शामिल हुए
साल 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की
साल 1993 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
1996 में पहली बार मैनपुरी से लोकसभा सांसद बने
साल 1999 में वो संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार के भारत के रक्षा मंत्री बने
साल 1999 में संभल, कन्नौज लोकसभा सीटों से सांसद बने
साल 2003 में तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
साल 2004 सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया
साल 2004 में भी मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते
2014 में आज़मगढ़, मैनपुरी से चुनाव जीते
साल 2019 में वो फिर सांसद बने. ये सातवां मौका था, जब वो सांसद बने
मुलायम सिंह यादव 8 बार विधानसभा-विधानपरिषद के सदस्य रहे हैं, तो 7 बार लोकसभा के सदस्य
साल 2003 की बात करे तो उस वक्त मायावती के इस्तिफे के बाद मुलायम सिंह यादव तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे. सीएम बनने के बाद उन्होंने गुन्नौर सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत गए. अपने पूरे राजनीतिक करियर में वें कुल 8 बार विधायक और 7 बार लोकसभा सांसद चुने गए. साल 2019 में वे मैनपुरी सीट से लोकसभा में चुनकर आए थे।
हालांकि इस वक्त तक मुलायम सिंह राजनीतिक रुप स ताकतवर नहीं रह गए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने जिस तरह यूपी के दोनों बड़े क्षेत्रीय दलों (सपा-बसपा)का सूपड़ा साफ किया, उससे ये साफ संकेत गया था कि अब यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह की भूमिका और कद कम हो जाएंगे. ऐसा हुआ भी. 2017 का विधानसभा चुनाव आते-आते सपा की कमान बेटे अखिलेश यादव के हाथ में चली गई. उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद मुलायम सिंह का सार्वजनिक जीवन में दिखना कम होता चला गया.