ब्यूरो रिपोर्ट: क्या दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन को सियासी अखाड़ा बनाने की कोशिश हो रही है। ये सवाल इसलिए क्योंकि महाकुंभ क्षेत्र में एक पोस्टर (UP Politics) खासा चर्चा में है जिसमें बंटेंगे तो कटेंगे की तर्ज पर लिखा है कि डरेंगे तो मरेंगे। सवाल उठता है कि आखिर ऐसे पोस्टर महाकुंभ में लगाने की जरूरत क्यों पड़ गई। क्या इससे बचा नहीं जा सकता था। क्या धार्मिक आयोजन में सियासी खेल खेलना वाजिब है।
महाकुंभ में अखाड़ों की जमघट लग चुकी है। संतों ने यहां रहना भी शुरू कर दिया है। हर अखाड़ा अपने प्रचार प्रसार के बोर्ड भी लगा रहा है। लेकिन एक संत के बोर्ड ने तो हड़कंप मचा दिया है। महज एक किलोमीटर के दायरे में लगी 20 से ज्यादा होर्डिंग्स की जरूरत यहां क्यों है ये तो पता नहीं लेकिन इसका नारा बेहद दिलचस्प है। जिसमें बंटेंगे तो कटेंगे की तर्ज पर लिखा है कि डरेंगे तो मरेंगे ।
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बता दें कि ये पोस्टर (UP Politics) जगतगुरु रामानंदाचार्य नरेन्द्राचार्य की ओर से लगाया गया है। इसमें सनातनियों के एकजुट होने की बात कही गई है। पोस्टर के बैकग्राउंड में बंद मुट्ठी नज़र आ रही है। पोस्टर पर स्लोगन है कि डरेंगे तो मरेंगे। पोस्टरों पर और भी कई तरह के स्लोगन लिखे गए हैं।
इससे पहले महाकुंभ के अखाड़े (UP Politics) और साधु संत तब चर्चा में आए थे जब अखाड़ा परिषद ने महाकुंभ क्षेत्र में मुस्लिम दुकानदारों को जगह ना देने का प्रस्ताव रखा था। उस वक्त भी मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं ने इसका जमकर विरोध किया था। अब एक बार फिर इन पोस्टरों ने सियासी तपिश को बढ़ा दिया है।
बहरहाल एक ओर जहां सरकार महाकुंभ को दिव्य और भव्य बनाने में जुटी है तो वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े संतों के बयान और पोस्टरबाजी सियासी हंगामा भी खड़ा कर रही है। सवाल उठता है कि एक धार्मिक आयोजन को सियासी रंग में रंगना क्या वाजिब है।