Raja Harishchandra first Indian film : करीब 112 साल पहले भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई थी, जब साल 1913 में दादा साहेब फाल्के ने पहली भारतीय फिल्म बनाई थी। ये एक मूक फिल्म थी, यानी इसमें कोई आवाज नहीं थी और कलाकार सिर्फ अभिनय करते थे। इस फिल्म का नाम ‘राजा हरिश्चंद्र’ था और इसका प्रीमियर बॉम्बे (अब मुंबई) में किया गया था। शुरुआत में कई सालों तक ऐसी ही साइलेंट फिल्में बनती रहीं। इसके बाद धीरे-धीरे बोलने वाली फिल्मों का दौर शुरू हुआ। दादा साहेब फाल्के को इस फिल्म का विचार एक इंग्लिश फिल्म देखकर आया था। उन्होंने सोचा कि अगर विदेशी लोग अपनी कहानियों पर फिल्म बना सकते हैं, तो भारत की संस्कृति और कथाओं पर भी फिल्में बनाई जा सकती हैं।
फाल्के साहब का बचपन और कला के प्रति लगाव
दादा साहेब फाल्के का असली नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था और इनका जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र के त्र्यंबक गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्हें कला में गहरी दिलचस्पी थी। उन्होंने मुंबई के स्कूल ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई की और फोटोग्राफी भी सीखी। इसके बाद उन्होंने फोटोग्राफी को ही अपना पेशा बना लिया। वह जब भी विदेशी फिल्में देखते, तो उनके मन में हमेशा यह सवाल आता कि भारतीय संस्कृति पर फिल्में क्यों नहीं बनतीं? लेकिन उन्हें ये बिल्कुल भी समझ नहीं आता था कि फिल्में बनती कैसे हैं।
एक जर्मन जादूगर ने दिखाई राह
एक बार फाल्के साहब एक मशहूर जर्मन जादूगर से मिले, जिसने उन्हें फिल्म बनाने के कुछ बेसिक तरीके बताए। साथ ही यह सलाह दी कि अगर वो इस कला को गहराई से सीखना चाहते हैं तो उन्हें लंदन जाना चाहिए। फाल्के साहब 1912 में लंदन गए और वहां एक साप्ताहिक मैगज़ीन के एडिटर से मुलाकात की। एडिटर ने उन्हें एक अंग्रेजी फिल्ममेकर से मिलवाया, जिसके साथ फाल्के ने तीन महीने रहकर फिल्म बनाने की पूरी प्रक्रिया सीखी स्क्रिप्ट लिखने से लेकर कैमरा ऑपरेशन तक। तभी उनके मन में ‘राजा हरिश्चंद्र’ पर फिल्म बनाने का विचार आया।
कैसे बनी थी भारत की पहली फिल्म?
लंदन से लौटने के बाद उन्होंने विदेश से कुछ जरूरी फिल्म से जुड़ी चीजें खरीदीं, जिससे उनका सारा पैसा खत्म हो गया। जब पैसे की कमी होने लगी तो उनकी पत्नी सरस्वती फाल्के ने अपने जेवर बेचने की सलाह दी। पहले तो फाल्के साहब नहीं माने, लेकिन फिल्म बनाने का जुनून इतना ज्यादा था कि उन्होंने पत्नी की बात मान ली।
फिर साल 1913 में भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनकर तैयार हुई। इस फिल्म में राजा हरिश्चंद्र का रोल डी.डी. दबके ने निभाया था। फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया क्योंकि ये उनके लिए एक नया और अनोखा अनुभव था।
इस फिल्म ने रच दिया इतिहास
फिल्म की कामयाबी ने दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी। यही वजह है कि आज उन्हें ‘भारतीय सिनेमा का पितामह’ कहा जाता है। उनकी मेहनत और लगन ने वो रास्ता खोला जिसकी बदौलत आज भारत में फिल्म इंडस्ट्री एक विशाल रूप ले चुकी है।