UP News : उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले से एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसने हर संवेदनशील दिल को झकझोर कर रख दिया है। खागा कोतवाली के लाखीपुर गांव से आए एक मजदूर शाहरुख का नवजात बेटा अस्पताल में इलाज के अभाव में उसकी गोद में ही दम तोड़ बैठा। लेकिन जो बात सबसे ज्यादा इंसानियत को शर्मसार करती है, वो ये है कि बच्चे की नाज़ुक हालत के बावजूद अस्पताल में मौजूद किसी डॉक्टर या स्टाफ ने उसे छूने तक की ज़हमत नहीं उठाई।
फर्श पर बैठा शाहरुख अपने मासूम बेटे को सीने से लगाए बार-बार एक ही बात कह रहा था — “मैं मर जाता, लेकिन मेरे बच्चे को किसी ने हाथ नहीं लगाया।” यह दृश्य अस्पताल में मौजूद लोगों के दिलों को चीर गया, लेकिन जिनसे मदद की उम्मीद थी, उनका दिल नहीं पसीजा।
न डॉक्टर आए, न ऑक्सीजन, न इलाज
शाहरुख अपने बीमार नवजात को लेकर फतेहपुर के सदर अस्पताल पहुंचा था। बच्चे की हालत बेहद गंभीर थी। परिवार की उम्मीद थी कि समय पर इलाज मिल जाएगा। लेकिन अस्पताल स्टाफ ने न बच्चे को देखा, न कोई प्राथमिक उपचार दिया और न ही ऑक्सीजन लगाई। परिवार वालों का आरोप है कि डॉक्टरों ने मानो जानबूझ कर लापरवाही बरती और बच्चे की सांसें गिनती की रह गईं।
बहन का रो-रो कर बुरा हाल, परिवार में मातम
शाहरुख की बहन अस्पताल में चीख-चीख कर रोती रही। आंखों के सामने अपने भतीजे को दम तोड़ते देखना एक ऐसा ज़ख्म है, जो शायद उम्र भर नहीं भर पाएगा। परिवार का आरोप है कि अगर समय रहते इलाज मिल जाता, तो बच्चा बच सकता था।
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सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, लोगों में ग़ुस्सा
इस दर्दनाक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। हजारों लोग प्रशासन से जवाब मांग रहे हैं — कि एक गरीब पिता की गोद में उसके बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ जांच बिठा देने से इंसानियत लौटेगी?
कब जागेगी सरकारी अस्पतालों में इंसानियत?
यह मामला कोई पहला नहीं है, लेकिन हर बार की तरह सवाल वही हैं —
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कब सुधरेंगे हमारे सरकारी अस्पताल?
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कब डॉक्टर्स में फिर से इंसानियत जागेगी?
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क्या एक मासूम की मौत का जवाब सिर्फ “जांच के आदेश” से दिया जा सकता है?
शाहरुख और उसका परिवार अब इंसाफ की गुहार लगा रहा है। लेकिन उनका विश्वास उस सिस्टम से उठ चुका है, जिसने उनके जिंदा बच्चे को सिर्फ इसीलिए मरने दिया क्योंकि वो गरीब था। यह मामला केवल एक बच्चे की मौत का नहीं है, यह उस व्यवस्था की मौत है, जिसमें इंसानियत सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए थी।