UP Small School Merger Case Verdict : 7 जुलाई इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें 50 से कम बच्चों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों को नजदीकी स्कूलों के साथ जोड़ने की बात कही गई थी। इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया। यह मामला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की अदालत में सुना गया। अदालत ने कहा कि सरकार का यह कदम बच्चों की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए लिया गया है और सरकार की जिम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।
याचिकाकर्ताओं के तर्क क्या थे?
कृष्णा कुमारी और अन्य लोगों ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि सरकार का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन है, जो 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है।
याचिकाकर्ताओं के वकील एलपी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा का कहना था कि छोटे स्कूल बंद करने से बच्चों को अपने ही मोहल्ले में पढ़ाई का मौका नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को स्कूलों को बंद करने के बजाय उनमें सुविधाएं बढ़ाकर बच्चों को आकर्षित करना चाहिए। उनका यह भी कहना था कि सरकार ने खर्च कम करने के लिए स्कूलों को बंद करने का आसान तरीका चुना है, जबकि उसे जनहित में काम करना चाहिए था।
सरकार का जवाब और कोर्ट का फैसला
सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकीलों अनुज कुदेसिया, शैलेंद्र सिंह और संदीप दीक्षित ने कहा कि सरकार ने स्कूलों को बंद नहीं किया है, बल्कि उन्हें पास के स्कूलों के साथ जोड़ा है। उनका कहना था कि कई स्कूलों में तो एक-दो ही बच्चे पढ़ रहे थे। सरकार ने यह फैसला नियमों के तहत लिया है और इसका मकसद बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाना है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार का काम है कि वह बच्चों को उनके नजदीक स्कूल उपलब्ध कराए और अगर स्कूल दूर है तो बच्चों के आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधा भी दे।
अदालत ने यह भी कहा कि सरकार का फैसला नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है। नीति में सभी बच्चों को शुरुआती स्तर पर अच्छी शिक्षा देने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए गए हैं। कोर्ट ने साफ कहा कि इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21ए का कोई उल्लंघन नहीं है।
अंत में कोर्ट ने कहा कि सरकार के 16 जून के आदेश में कोई कानूनी गड़बड़ी नहीं है, इसलिए इसमें किसी तरह का दखल देने की जरूरत नहीं है।