Saira Banu: बॉलीवुड की दुनिया बाहर से जितनी चमक-धमक भरी लगती है, अंदर से उतनी ही संघर्षों से भरी होती है। यहां हर किसी को एक ‘गॉडफादर’ नहीं मिलता, और न ही हर कलाकार फिल्मी बैकग्राउंड से आता है। ऐसे कई कलाकार हैं जिन्होंने बाहर से आकर अपनी जगह बनाई है। इंडस्ट्री के हर दौर में एक ऐसा चेहरा जरूर मिलता है जो अपने दम पर आगे बढ़ा हो। आज हम एक ऐसी अभिनेत्री की कहानी बता रहे हैं, जिनकी जड़ें एक तवायफ परिवार से जुड़ी हैं। नानी और परनानी तवायफ रहीं, मां एक सुपरस्टार बनीं, और खुद वो एक सफल अभिनेत्री।
सायरा बानो: एक अदाकारा, एक विरासत
सायरा बानो, जो आज भी बॉलीवुड के सुनहरे दौर की खूबसूरत अभिनेत्री के रूप में याद की जाती हैं, एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं जिसकी कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। अगर उनकी मां नसीम बानो कोठे की गलियों से बाहर निकलकर अपना सपना न संजोतीं, तो शायद सायरा का जीवन कुछ और ही होता।
शुरुआत जुम्मन बाई से, एक मासूम बच्ची की कीमत
सायरा बानो की परनानी जुम्मन बाई की कहानी सबसे पहले सामने आती है। मात्र सात साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें हसनपुर के एक कोठे में बेच दिया था। कारण? उन्हें बेटियों से नफरत थी। जुम्मन बाई उस जीवन को स्वीकार नहीं करना चाहती थीं। वो कई बार भागने की कोशिश करती थीं, लेकिन कोठे की मालकिन ने उन्हें दिल्ली भेज दिया। वहां उनकी जिंदगी कोठे की दीवारों के अंदर ही सिमट गई। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया – शमशाद।
शमशाद बनीं छमिया बाई
शमशाद, जो आगे चलकर सायरा बानो की नानी बनीं, बेहद सुंदर थीं। मात्र 12-13 साल की उम्र में ही उन्हें कोठे पर बैठा दिया गया और वो ‘छमिया बाई’ के नाम से मशहूर हो गईं। उनकी खूबसूरती की चर्चा दूर-दराज तक फैल गई थी। नवाब और अंग्रेज अफसर उन्हें देखने आया करते थे। एक बार हसनपुर के अमीरजादे अब्दुल वाहिद रहमान और एक अंग्रेज अफसर के बीच छमिया बाई को लेकर बहस हो गई। मामला यहां तक पहुंचा कि दोनों ने उनके लिए बोली लगा दी।
बोली में जीते वाहिद खान
इस शर्त में अब्दुल वाहिद रहमान ने सबसे ऊंची बोली लगाकर छमिया बाई को अपने साथ ले लिया। उन्होंने बाद में एक बेटी को जन्म दिया रोशन आरा, जो आगे चलकर ‘नसीम बानो’ के नाम से जानी गईं।
नसीम बानो ,बॉलीवुड की पहली क्वीन
नसीम बानो को बचपन से ही अभिनय का शौक था। उनकी मां छमिया बाई भी चाहती थीं कि उनकी बेटी उस दलदल से बाहर निकले। यही सोचकर वो नसीम को लेकर मुंबई आ गईं। फिल्मों की शूटिंग देखने के दौरान एक बार मशहूर निर्देशक सोहराब मोदी की नजर नसीम पर पड़ी। उस वक्त नसीम 11वीं कक्षा में पढ़ती थीं। सोहराब मोदी ने उन्हें फिल्म का प्रस्ताव दिया और मां को मना लिया। इसके बाद नसीम ने कई हिट फिल्मों में काम किया और ‘द फर्स्ट क्वीन ऑफ इंडियन सिनेमा’ का खिताब पाया।
सायरा बानो,मां के सपनों को आगे बढ़ाया
नसीम बानो ने एहसान-उल-हक से विवाह किया और सायरा बानो उनकी संतान बनीं। सायरा ने भी फिल्मी दुनिया में अपना नाम रोशन किया। उन्होंने अपने समय के सुपरस्टार दिलीप कुमार से विवाह किया और बॉलीवुड की प्रतिष्ठित हस्तियों में शुमार हो गईं।
संघर्षों से निकलकर बनी एक मिसाल
सायरा बानो की कहानी केवल एक अभिनेत्री की नहीं, बल्कि तीन पीढ़ियों के संघर्ष, साहस और बदलाव की कहानी है। यह एक ऐसी दास्तान है, जहां दर्द, सपने और सफलता एक-दूसरे में गूंथे हुए हैं। उनकी जिंदगी हमें ये सिखाती है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुकाम पाया जा सकता है।