Thalassemia Prevention: थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जो माता-पिता के जीन से बच्चों में जाती है। अगर किसी बच्चे को थैलेसीमिया होता है, तो उसे पूरी जिंदगी बार-बार खून चढ़वाना पड़ता है। डॉक्टरों की मानें तो इस बीमारी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि नजदीकी रिश्तों में शादी न करें और विवाह से पहले मेडिकल जांच जरूर करवा लें
जीन में खराबी से होती है ये बीमारी
केजीएमयू के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. वर्मा बताते हैं कि थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन बनने में दिक्कत होती है। दरअसल, ये परेशानी खून की कोशिकाएं बनाने वाले जीन में खराबी (म्यूटेशन) के कारण होती है। हीमोग्लोबिन दो चीजों से बनता है। आयरन और ग्लोबिन प्रोटीन। जब ये प्रोटीन नहीं बनता या बहुत कम बनता है, तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और खून की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
थैलेसीमिया के तीन प्रकार होते हैं
डॉ. बताते हैं कि थैलेसीमिया तीन तरह का होता है।माइनर, मेजर और इंटरमीडिएट।
माइनर: माता-पिता में से किसी एक को होता है
मेजर: दोनों को होता है
इंटरमीडिएट: दोनों लक्षण होते हैं लेकिन गंभीर नहीं होते
हर साल देश में करीब 10 से 15 हजार बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ पैदा होते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर बच्चे के जन्म के 4 से 6 महीने बाद दिखाई देने लगते हैं, लेकिन कई बार 5 से 10 साल के बीच भी लक्षण सामने आते हैं।
शादी से पहले जांच है जरूरी
केजीएमयू की महिला रोग विशेषज्ञ प्रो. देव का कहना है कि अगर लड़का या लड़की में से किसी को थैलेसीमिया है, तो महिला को गर्भधारण करने में परेशानी हो सकती है। पुरुषों में यह इनफर्टिलिटी की वजह बन सकता है, क्योंकि शरीर में आयरन जमा हो जाता है। इसलिए शादी से पहले दोनों की खून की जांच कराना जरूरी है और नजदीकी रिश्तों में विवाह से बचना चाहिए। साथ ही, प्रेग्नेंसी के शुरुआती महीनों में भ्रूण की जांच करवा लेनी चाहिए।
थैलेसीमिया के लक्षण क्या हैं?
त्वचा, आंखों और नाखूनों का पीला पड़ना
शरीर का विकास रुक जाना
दांत देर से निकलना
आंतों में गड़बड़ी
इलाज महंगा लेकिन मुमकिन
पीजीआई के डॉ. संजीव बताते हैं कि इस बीमारी का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट है, जो काफी महंगा पड़ता है।करीब 10 लाख रुपये तक। ये इलाज 6 साल की उम्र से पहले करवा लेना सबसे बेहतर रहता है, हालांकि 10 साल तक भी ये किया जा सकता है।