इस बार भैरव अष्टमी 16 नंवबर को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए दिन काल भैरव की जी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। अष्टमी के दिन शाम के समय भैरव बाबा के दर्शन और पूजन करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि काल भैरव भगवान शिव के अन्य रूपों रूपों से एक हैं। काल भैरवनाथ की अपने भक्तों पर बड़ी असिम कृपा बनाए रखते हैं। इसलिए बाबा की उपासना से भक्तों को हर तरह की परेशानी से मुक्ति मिल जाती है।
निष्फल हो जाती है सभी तांत्रिक क्रियांए
भैरवनथ की पूजा अर्चना बड़ी फलदायक होती है। मान्यता के अनुसार भैरवनाथ की उपासना करने से भक्तों को शीघ्र ही कर्ज, निगेटिवीटी, शत्रुओं और चल रहे मुकदमे और भय, रोग आदि से भी छुटकारा मिल जाता है।
बता दें कि महाकाल भैरव जयंती के दिन विधिवत् पूजा अर्चना करने से जीवन की सभी परेशानिया खत्म हो जाती हैं। इसके साथ ही सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। काल भैरव को तंत्र-मंत्र का देवता भी कहा जाता है। क्योंकि काल भैरव की कृपा से हर तरह की तांत्रिक क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं। व्यक्ति को खुशहाल जीवन की प्राप्ति होती है।
क्या है काल भैरव की मान्यता
वहीं उज्जैन में काल भैरव का एक प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है। बाबा भैरव का ये मंदिर उज्जैन के भैरवगढ़ में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। बता दें कि काल भैरव मंदिर के कारण ही यह स्थान भैरवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में यहां एक पहाड़ पर काल भैरव जी का प्राचीन मंदिर था। इस पर्वत को भैरव पर्वत के नाम से जाना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इस पर्वत का नाम बदलकर भैरवगढ़ रख दिया गया। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां पर विराजमान भगवान भैरव की मूर्ति मदिरापान करती हैं। इसी चमत्कार को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से काल भैरव के मंदिर में आते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान भैरव के दर्शन के बिना उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा अधूरी है।