Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां अब पूरी तरह से मैदान में उतर चुकी हैं। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में आमने-सामने की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होती है। कैराना सीट की बात करें तो यहां इस बार का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है।
कैराना लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासत का खेला शुरु हो गया है। इस चुनाव में चौदह उम्मीदवार मैदान मे उतर गए है। इस लड़ाई में रालोद गठबंधन में बीजेपी ने एक बार फिर प्रदीप चौधरी पर अपना दांव लगाया है।
वहीं, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सपा ने इकरा हसन को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा से श्रीपाल राणा उम्मीदवार हैं। इसके अलावा अन्य दलों से भी पांच उम्मीदवार हैं।
कैराना लोकसभा सीट पर 1,719,011 मतदाता हैं। शामली जिले की कैराना संसदीय सीट 40 साल से कांग्रेस के लिए सूखी सीट रही है. 1984 के बाद से कांग्रेस यहां कभी नहीं जीत पाई है।
मुस्लिम और जाटों की बड़ी संख्या
कैराना संसदीय सीट (Lok Sabha Election 2024) पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभावशाली मानी जाती है. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर कुल 1,531,755 मतदाता थे, जिनमें 840,623 पुरुष और 691,132 महिलाएं शामिल थी। इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। नकुड़, गंगोह, कैराना, थाना भवन और शामली।
शामली विधानसभा पहले कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था, जो बाद में किराना और आखिरी मे कैराना बन गया, यह क्षेत्र मुजफ्फरनगर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है और हरियाणा में पानीपत से सटा हुआ है।
यमुना नदी के पास स्थित कैराना को आरएलडी का घर भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में मतदाताओं का सबसे बड़ा हिस्सा मुस्लिम और जाटों का है।
2024 में कौन संभालेगा मोर्चा
इस बार कैराना सीट से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए भाजपा ने प्रदीप चौधरी को एक बार फिर से उम्मीदवार बनाया है, पिछले चुनाव लोकसभा चुनाव में प्रदीप चौधरी ने सपा प्रत्याशी तबस्सुम बेगम को हराकर कैराना की सीट अपने नाम की थी।
वही, बात की जाए सपा कि तो इस इकरा हसन को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। मायावती की पार्टी बसपा ने श्रीपाल सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अब देखना यह होगा कि कैराना की जनता इस बार किसे अपना नेता चुनती है।
2019 मे किसके हाथ लगी सत्ता
2019 के पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में प्रमुख राजनीतिक दलों के 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप चौधरी 566,961 वोटों के साथ विजयी रहे, जबकि समाजवादी पार्टी (एसपी) उम्मीदवार तबस्सुम बेगम को 474,801 वोट मिले और कांग्रेस उम्मीदवार हरेंद्र सिंह मलिक को 69,355 वोट मिले।
इसके अतिरिक्त, किसी अन्य उम्मीदवार को परिणाम को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त वोट नहीं मिले, केवल 3,542 वोट नोटा को गए। चर्चित उम्मीदवारों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार हरीश कुमार को 2,130 वोट मिले, जबकि कोई अन्य उम्मीदवार दो हजार वोट भी हासिल नहीं कर पाया।
2014 में किसकी हुई थी जीत
कैराना लोकसभा सीट (Lok Sabha Election 2024) के लिए 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान 1,531,767 पंजीकृत मतदाता थे। उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हुकुम सिंह कुल 565909 वोटों के साथ विजयी रहे थे. उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 36.95 प्रतिशत का समर्थन प्राप्त किया और उस चुनाव में उन्हें 50.54 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए।
दूसरी ओर, दूसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार एसपी पार्टी के नाहिद हसन थे, जो 329,081 मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे, जो लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं का 21.48 प्रतिशत थे और कुल वोटों का 29.39 प्रतिशत हासिल किया। इस संसदीय सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर 236828 वोटों का था.
2009 में बसपा के हाथ मे थी कमान
2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश की कैराना संसदीय सीट पर 1,282,551 मतदाता थे, जिनमें से बसपा उम्मीदवार तबस्सुम बेगम ने 283,259 वोटों के साथ जीत हासिल की। तबस्सुम बेगम को निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 22.09 प्रतिशत का समर्थन प्राप्त हुआ, और उन्हें उस चुनाव में 39.05 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए।
वहीं, उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हुकुम सिंह ने 260,796 मतदाताओं का समर्थन पाकर दूसरा स्थान हासिल किया था। यह लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं का 20.33 प्रतिशत था और उन्हें कुल 35.96 प्रतिशत वोट मिले। 2009 के लोकसभा चुनाव में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 22,463 वोटों का था।
1962 में हुआ था पहला लोकसभा चुनाव
शामली जिले की कैराना लोकसभा सीट (Lok Sabha Election 2024) पर अब तक 15 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई, उसी साल पहला लोकसभा चुनाव हुआ। शुरुआती लोकसभा चुनाव में इस सीट से जाट किसान नेता यशपाल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। मुस्लिमों और जाटों की अच्छी-खासी आबादी वाले इस क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौतीपूर्ण पहेली साबित होता है, क्योंकि यहां के मतदाता लगातार किसी भी मौजूदा पार्टी के प्रति अपना असंतोष प्रदर्शित करते रहते हैं।
यह प्रवृत्ति 1962 से चली आ रही है, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी पार्टी लगातार दो से अधिक चुनाव नहीं जीत पाई। 1989 और 1991 में जनता दल के उम्मीदवारों ने लगातार दो चुनाव जीते, लेकिन तीसरे प्रयास में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा।