देश: जब-जब कारगिल युद्ध की बात आती है सेना के एक ऐसे जांबाज का नाम जरूर आता है जिसने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की धज्जियां उड़ा दी थीं। सेना के इस जांबाज को शेरशाह के नाम से जाना जाता था। आज शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की 23वीं पुण्यतिथि है। 7 जुलाई 1999 को पालमपुर के वीर सिपाही कैप्टन विक्रम बत्रा ने वीरगति प्राप्त की थी.
भारत माता के वीर सपूत शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज 23वीं पुण्यतिथि है। 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर विक्रम का जन्म हुआ था।
विक्रम की स्कूली पढ़ाई पालमपुर में ही हुई। सेना छावनी का इलाका होने की वजह से विक्रम बचपन से ही सेना के जवानों को देखते थे। कहा जाता है कि यहीं से विक्रम खुद को सेना की वर्दी पहने देखने लगे।
स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चले गए। कॉलेज में वे एनसीसी एयर विंग में शामिल हो गए।
कॉलेज के दौरान ही उन्हें मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी में एमए के लिए दाखिला ले लिया। इसके बाद विक्रम सेना में शामिल हो गए। 1999 में करगिल युद्ध शुरू हो गया। इस वक्त विक्रम सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे। विक्रम बत्रा के नेतृत्व में टुकड़ी ने हम्प व राकी नाब स्थानों को जीता और इस पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया था।
श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर महत्वपूर्ण 5140 पॉइंट को पाक सेना से मुक्त कराया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बाद भी कैप्टन बत्रा ने 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को कब्जे में लिया। कैप्टन बत्रा ने जब रेडियो पर कहा- ‘यह दिल मांगे मोर’ तो पूरे देश में उनका नाम छा गया।
इसके बाद 4875 पॉइंट पर कब्जे का मिशन शुरू हुआ। तब आमने-सामने की लड़ाई में पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। गंभीर जख्मी होने के बाद भी उन्होंने दुश्मन की ओर ग्रेनेड फेंके। इस ऑपरेशन में विक्रम शहीद हो गए, लेकिन भारतीय सेना को मुश्किल हालातों में जीत दिलाई।
कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत भारत सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया। उनकी याद में पॉइंट 4875 को बत्रा टॉप नाम दिया गया।