Ganesh Chaturthi 2025 : अनंत चतुर्दशी के अवसर पर शनिवार, 06 सितंबर को पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ गणपति बप्पा को विदाई दी जा रही है। लालबागचा राजा 2025 के भव्य विसर्जन समारोह ने मुंबई की रफ्तार को थाम दिया है। इस पावन मौके पर मुंबई की सड़कों से लेकर मंदिरों और घाटों तक चारों ओर भक्तिमय वातावरण और उत्सव की रौनक देखने को मिल रही है। विसर्जन के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है, जो बप्पा को अंतिम विदाई देने के लिए दूर-दूर से यहां पहुंचे हैं।
लालबागचा राजा के विसर्जन के लिए इस बार भी प्रशासन ने सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए हैं। गिरगांव चौपाटी पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हजारों श्रद्धालु कतारबद्ध होकर विसर्जन यात्रा का हिस्सा बने हुए हैं। हर वर्ष की तरह इस बार भी गणेश विसर्जन को लेकर प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद नजर आ रहा है।
लालबागचा राजा: श्रद्धा और आस्था का प्रतीक
गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक देशभर में गणपति उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र, खासकर मुंबई में इसकी भव्यता कुछ अलग ही होती है। लालबागचा राजा गणेशोत्सव का ऐसा नाम बन चुका है, जो हर श्रद्धालु की आस्था का केंद्र है। इस सार्वजनिक गणेश मंडल की स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी, और तब से यह पंडाल मुंबई की सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक परंपराओं में शुमार है।
मनोकामना पूरी करने की आस लिए पहुंचते हैं भक्त
लालबाग के परेल क्षेत्र में स्थित यह गणेश पंडाल हर साल देश-विदेश से आने वाले भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है। मान्यता है कि यहां आने वाला हर भक्त अपनी मुराद लेकर आता है और बप्पा उसकी मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। दर्शन के लिए श्रद्धालु घंटों कतारों में खड़े रहते हैं, फिर भी उनके चेहरे पर एक अलग ही संतोष और श्रद्धा की झलक दिखाई देती है।
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गणेश विसर्जन में उमड़ा जनसैलाब
विसर्जन के दिन भक्तों का सैलाब सड़कों पर उमड़ पड़ा है। हजारों की संख्या में लोग ढोल-ताशों की गूंज पर नाचते-गाते, बप्पा को विदाई देने निकल पड़े हैं। भले ही कुछ इलाकों में सुबह से रुक-रुक कर बारिश हो रही हो, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई है। बप्पा की भव्य मूर्तियों को जब पंडालों से बाहर लाया गया, तो ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ के जयकारों से माहौल गूंज उठा। यह विसर्जन सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मुंबई की सांस्कृतिक विरासत और लोगों की सामूहिक आस्था का प्रतीक बन चुका है।