INS Vikrant : आईएनएस विक्रांत सिर्फ एक युद्धपोत नहीं, बल्कि एक चलता-फिरता शहर है, जो अपने भीतर पूरा एक युद्धक्षेत्र समेटे हुए है। यह अब पाकिस्तान की किसी भी नापाक हरकत का कड़ा जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। अरब सागर के रास्ते, आईएनएस विक्रांत पाकिस्तान को धूल चटाने और वहां भारी तबाही मचाने की पूरी क्षमता रखता है। भारत का सबसे शक्तिशाली एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत, अब पाकिस्तान की लंका लगाने के लिए तैयार है। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ता है, तो यह ‘चलता-फिरता एयरबेस’ दुश्मन के लिए सबसे बड़ी तबाही साबित हो सकता है। 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था, और उसके बाद से आईएनएस विक्रांत ने भारत की समुद्री शक्ति में एक नया और ऐतिहासिक अध्याय जोड़ा है।
क्या है INS विक्रांत का इतिहास ?
भारत का समुद्री इतिहास 1957 में एक नया मोड़ लिया जब पहला विमानवाहक पोत, आईएनएस विक्रांत, यूनाइटेड किंगडम के बेलफास्ट में विजयलक्ष्मी पंडित द्वारा भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। इसे पहले एचएमएस हरक्यूलिस के नाम से जाना जाता था और यह विकर्स-आर्मस्ट्रांग शिपयार्ड में निर्मित किया गया था। यह जहाज 1945 में ग्रेटब्रिटेन के मैजेस्टिक क्लास के हिस्से के रूप में लॉन्च हुआ था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इसे सक्रिय सेवा में लाए जाने से पहले ही युद्ध समाप्त हो गया था, और जहाज को इस वजह से वापस ले लिया गया था।
1971 में INS विक्रांत ने साबित की अपनी समुद्री शक्ति
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में आईएनएस विक्रांत ने अपनी समुद्री क्षमताओं को साबित किया, हालांकि इसके संचालन को लेकर शुरू में कई संदेह थे। जैसे कि कैप्टन हीरानंदानी ने बाद में नौसेना प्रमुख, एडमिरल सरदारलाल मथरादास नंदा से कहा था, “1965 के युद्ध के दौरान विक्रांत मुंबई बंदरगाह पर खड़ा था और समुद्र में नहीं उतरा। यदि 1971 में भी यही स्थिति रहती, तो विक्रांत को एक बेकार जहाज और नौसैनिक उड्डयन को हंसी का विषय बना दिया जाता।” लेकिन 1971 में विक्रांत ने अपनी अहम भूमिका निभाई और केवल 10 दिनों में 300 से अधिक एयरस्ट्राइक उड़ानों का संचालन किया, जिससे उसकी उपयोगिता स्पष्ट हो गई।
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युद्ध के बाद, आईएनएस विक्रांत को कई बार नवीनीकरण की आवश्यकता पड़ी। हालांकि समय के साथ जहाज की स्थिति खराब होती गई, लेकिन 1997 में इसे सेवामुक्त कर दिया गया और फिर इसे मुंबई हार्बर में एक संग्रहालय के रूप में रखा गया। यह जहाज हजारों पर्यटकों, खासकर युवाओं और छात्रों के लिए एक आकर्षण बना। इसके रखरखाव की लागत बढ़ने लगी, और कई कानूनी झंझटों के बाद, अंततः नवंबर 2014 में इसे 60 करोड़ रुपये में आईबी कमर्शियल्स प्राइवेट लिमिटेड को स्क्रैप करने के लिए बेच दिया गया, जिससे इसके 71 वर्षों के गौरवशाली इतिहास का अंत हुआ।
INS विक्रांत क्यों कहलाता है “समंदर का राजा” ?
आईएनएस विक्रांत को “समंदर का राजा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भारत का पहला विमानवाहक पोत (aircraft carrier) था और भारतीय नौसेना के सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली युद्धपोतों में से एक था। यह जहाज समुद्र में भारतीय नौसेना की ताकत और सामरिक क्षमता को दर्शाता था। कुछ मुख्य कारणों से इसे यह उपनाम मिला:
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विमानवाहक पोत (Aircraft Carrier): आईएनएस विक्रांत एक ऐसा युद्धपोत था, जो न केवल समुद्र में तैर सकता था, बल्कि उस पर लड़ाकू विमानों को भी तैनात किया जा सकता था। इसका मतलब था कि यह एक फ्लोटिंग एयरबेस की तरह काम करता था, जिससे भारतीय नौसेना को समुद्र में आक्रामक क्षमता मिलती थी।
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भारत की समुद्री शक्ति: विक्रांत के साथ, भारतीय नौसेना के पास एक ऐसा युद्धपोत था जो समुद्र में नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम था। इससे भारत की समुद्री ताकत का संकेत मिलता था और यह समुद्रों पर एक शक्ति के रूप में उभरा।
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इतिहास और प्रतीक: आईएनएस विक्रांत ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध के दौरान, विक्रांत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन “त्रिशूल” में भाग लिया, जिससे भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ावा मिला और भारत की समुद्री शक्ति को वैश्विक स्तर पर पहचाना गया।
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दूरी तय करने की क्षमता: विक्रांत को समुद्र में बहुत दूर तक जा कर युद्धक विमानों को तैनात करने की क्षमता प्राप्त थी, जो उसे समुद्री युद्ध में बेहद महत्वपूर्ण बनाता था।