कौन था माड़वी हिड़मा, जिसे सुरक्षाबलों ने पत्नी के साथ ठोका, जानें मौत के जाल में कैसे फंसा नक्सलियों का ‘आका’

कुख्यात नक्सली माड़वी हिड़मा को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया है। माड़वी हिड़मा की मौत देश में नक्सलवाद के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है और इससे नक्सलियों की सैन्य क्षमताएं कमजोर होंगी।

नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद के खात्मों के लिए मार्च 2026 की तारीख मुकर्रर की हुई है। इसी के बाद से सुरक्षाबल के जवान मोओवाद के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाए हुए है। अधिकतर बड़े कमांडर एनकाउंटर में अभी तक ढेर किए जा चुके हैं। पांच सौ से अधिक नक्सली भी मारे गए हैं। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया। वो नाम माड़वी हिड़मा का है, जिसे सुरक्षाबलों के जवानों ने घेर लिया। कई घंटे तक दोनों तरफ से फायरिंग हुई। आखिरकार लाल आतंक के विलेन हिडमा का उसकी पत्नी के साथ अंत हो गया। माओवादियों को यह हाल के वर्षों में लगा सबसे बड़ा झटका है और दावा किया जा रहा है कि माड़वी हिड़मा की मौत के बाद अब देश में नक्सलवाद की उल्टी गिनती शुरू हो सकती है।

कौन था माड़वी हिड़मा

माड़वी हिड़मा का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा जिले के एक गांव में हुआ था। माड़वी हिड़मा ने 16 साल की उम्र में ही हथियार उठा लिए थे और बतौर कैडर शुरुआत करके माड़वी हिड़मा बीते दो दशकों में प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) में कई अहम पदों पर रहा। हिड़मा कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था और उस पर सरकार ने एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया हुआ था। माड़वी हिड़मा सीपीआई माओवादियों की बटालियन नंबर एक का कमांडर था, जो नक्सलियों की सबसे खतरनाक सैन्य टुकड़ी मानी जाती है। हिडमा दंडकारण्य क्षेत्र के घने जंगलों में रहता था और उसे अबूझमाड़ और सुकमा-बीजापुर के वन क्षेत्रों की काफी जानकारी थी। यही वजह थी कि कई कोशिशों के बाद भी हिडमा लंबे समय तक सुरक्षाबलों से बचता रहा।

बस्तर दक्षिण इलाके में सक्रिय था हिडमा 

हिडमा फिलहाल बस्तर दक्षिण इलाके में सक्रिय था। आंध्र प्रदेश के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता ने बताया कि यह मुठभेड़ सोमवार को उस वक्त हुई, जब आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर माओवादियों के एक बड़े समूह के मूवमेंट की खुफिया जानकारी मिली थी। उन्होंने बताया, विशिष्ट खुफिया जानकारी के आधार पर, सोमवार देर रात एंटी-नक्सल ग्रेहाउंड्स और स्थानीय पुलिस ने मिलकर सघन कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू किया। यह मुठभेड़ अल्लूरी सीताराम राजू जिले के मारेडुमिल्ली जंगल में तीनों राज्यों के बॉर्डर पॉइंट के करीब हुई। भीषण मुठभेड़ के बाद, सुरक्षाबलों ने हिडमा सहित कुल छह माओवादियों को मार गिराया। डीजीपी हरीश गुप्ता के अनुसार, हिडमा न सिर्फ बड़े ऑपरेशनों में शामिल था, बल्कि वह युवाओं को नक्सलवाद में शामिल होने के लिए प्रेरित करने का काम भी करता था।

बड़े हमलों का मास्टरमाइंड रहा हिडमा

हिडमा, नक्सलियों के बीच एक मिथक की तरह रहा है। वो एक गोंड आदिवासी था, जो इसी इलाके में पैदा और बड़ा हुआ। यहां के जंगलों के हर मोड़, हर नदी, नाले, गुफा और पहाड़ी से वो वाकिफ था। उसकी बटालियन दक्षिण बस्तर, बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा में सक्रिय थी। ये वो इलाके हैं जो सालों से माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष का केंद्र बनी हुई है। सुरक्षा बलों का मानना है कि हिडमा नक्सलियों के सबसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड रहा और उनकी अगुवाई की नक्सलियों ने कई ऑपरेशन किए। हिडमा टैक्नोलॉजी की भी समझ रखता था। सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के बाकी सदस्यों से भी ज़्यादा वो चर्चा में रहता था। हिडमा को पकड़ना हमेशा से इसलिए और भी मुश्किल रहा, क्योंकि वो तीन से चार स्तर के सुरक्षा घेरे में रहता था। सबसे बाहरी स्तर को जैसे ही सुरक्षा बलों की भनक लगती थी, वो उनसे भिड़ जाते थे और हिडमा सुरक्षित भाग निकलता था।

बलिदान हुए थे 76 सीआरपीएफ जवान 

सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में फोन नेटवर्क काम नहीं करता, सिर्फ़ ह्यूमन इंटेलिजेंस ही काम करती है। अभी तक जब भी उसके बारे में कोई जानकारी मिलती रही तो जब तक सुरक्षा बल पहुंचें, तब तक वो कहीं और निकल चुका होता था। आज हिडमा के मारे जाने से बस्तर में माओवादियों के सबसे ख़ास रणनीतिक कमांडर का खात्मा हो गया। हिडमा बहुत खतरनाक था। साल 2010 में दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ पर हमला हुआ था, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवानों बलिदान हुए थे। हिडमा ने झीरम घाटी पर हमला किया, जिसमें छत्तीसगढ़ के पूरे कांग्रेस नेतृत्व को खत्म कर दिया गया था। साल 2017 में सुकमा में हुए दो हमलों, जिनमें 37 जवानों की मौत हुई थी और 2021 के बीजापुर में तर्रेम हमले में भी माड़वी हिड़मा का नाम सामने आया था। सुरक्षाबलों का दावा है कि अप्रैल 2025 में कर्रेगुट्टा पहाड़ी पर हुई मुठभेड़ में हिड़मा बाल-बाल बच गया था। उस मुठभेड़ में 31 माओवादी मारे गए थे।

हिड़मा की मौत नक्सलवाद के लिए बड़ा झटका

बस्तर रेंज के आईजीपी सुंदरराज पी का कहना है कि माड़वी हिड़मा की मौत नक्सलवाद के लिए बड़ा झटका है। उन्होंने कहा कि कई कुख्यात माओवादी हाल के समय में ढेर हो चुके हैं और कई मुख्य धारा में शामिल हो गए हैं। अब बाकी बचे नक्सली कमांडरों से भी आत्मसमर्पण की अपील की जाएगी और जो अभी भी हिंसा के रास्ते पर चलेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि हिडमा की मौत से बस्तर क्षेत्र में माओवादी गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। सरकार ने साल 2026 तक देश से नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य तय किया और माड़वी हिड़मा की मौत उस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि हिडमा की मौत के साथ ही देश में नक्सलवाद की उल्टी गिनती शुरू हो सकती है।

 

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