नई दिल्ली: वैसे तो हर महीने में शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि का खास महत्व होता है। इस दिन की मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन श्रद्धालु शिव मंदिरों में रुद्राभिषेक करते हैं। बहुत से लोग शिवरात्रि का व्रत करते हैं और रात्रि जागरण भी करते हैं। महाशिवरात्रि कई मायनों में ख़ास है। अगर वर्तमान परिपेक्ष्य में देखे तो माता पार्वती और भगवान शिव का वैवाहिक जीवन कई सन्देश देता है और वर्तमान में ज़िंदगी जीने के सलीके सिखाता है।
समान अधिकार, समान सम्मान
भगवान भोलेनाथ को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। अर्धनारीश्वर का मतलब है, आधा पुरुष और आधा स्त्री होना। कहा जाता है कि एक बार भगवान भोलेनाथ ने अर्धनारीश्वर का रूप लिया था। उनका ये रूप हर शादीशुदा जोड़े के लिए एक सीख है, जो यह दर्शाता है कि भले ही पति-पत्नी का शरीर अलग हो लेकिन मन से दोनों एक ही हैं। इसलिए हर पति-पत्नी को समान अधिकार, समान सम्मान मिलना चाहिए। अक्सर कपल्स में झगड़ों की एक वजह खुद को साथी से बड़ा साबित करना होता है।
बाहरी आवरण को देख न करे प्रेम
माता पार्वती एक खूबसूरत, कोमल और सभी के मन को मोह लेने वाली राजकुमारी थीं लेकिन भोलेनाथ भस्मधारी, गले में सर्प की माला पहनने वाले वैरागी थे। लेकिन फिर भी माता पार्वती भगवान भोलेनाथ से प्रेम करती थीं। उनके रंग रूप से नहीं बल्कि उनके स्वभाव, निर्मल मन और भोलेपन से प्यार करती थीं। गृहस्थ जीवन के लिए जरूरी है कि कपल एक दूसरे से प्यार करें न कि उनके रंग रूप और पैसों को अहमियत दें। गृहस्थ जीवन के लिए प्यार जरूरी है, पैसा और खूबसूरती नहीं।
साथी के लिए ईमानदार रहे
किसी रिश्ते में विश्वास और ईमानदारी होना भी जरूरी है। माता पार्वती से भोलेनाथ बहुत प्रेम करते हैं। दोनों एक दूसरे के प्रति ईमानदार और एक दूसरे के सम्मान के लिए कुछ भी कर जाने वाले दंपति हैं। पुराणों के मुताबिक, मां गौरी शिवजी के अपमान से दुखी होकर सती हो गईं थीं, वहीं भगवान भोलेनाथ माता के सती होने से रौद्र रूप में आ गए थे और दुनिया का विनाश करने के लिए तांडव करने लगे थे। यह उनका एक दूसरे के प्रति प्रेम और रिश्ते के प्रति ईमानदारी थी, जो हर जोड़े में होनी चाहिए।
विचार अलग, लेकिन परिवार एक
परिवार में सभी के विचार, पसंद नापसंद अलग हो सकते हैं लेकिन एक अच्छा मुखिया परिवार को साथ लेकर चलता है। भगवान शिव परिवार के एक आदर्श मुखिया भी हैं। भगवान शिव के गले में सांप की माला रहती हैं लेकिन उनके दोनों पुत्रों के वाहन सर्प के शत्रु होते हैं। कार्तिकेय जी का वाहन मोर और गणेश जी का वाहन चूहे को सांप का शत्रु माना जाता है। लेकिन उनके परिवार में इसे लेकर कभी बैर नहीं हुआ। सभी साथ मिलकर रहते हैं। इसी तरह माता गौरी का वाहन शेर और भोलेनाथ का वाहन बैल भी एक दूसरे के शत्रु माने जाते हैं लेकिन दोनों मिलकर रहते हैं। विषम परिस्थितियों में भी परिवार को साथ रखने की क्षमता हर पति में होनी चाहिए।
सुख-दुख के साथी बने
माता पार्वती शिवजी की अर्धांगनी हैं। भोले बाबा अक्सर अपनी तपस्या में लीन रहते हैं लेकिन माता पार्वती उनकी अनुपस्थिति में परिवार, अपने पुत्रों और सभी देवी-देवताओं समेत सृष्टी की देखभाल करती हैं। इतना ही नहीं माता पार्वती एक कोमल राजकुमारी होने के बावजूद विवाह के बाद भोलेनाथ संग किसी महल में नहीं बल्कि बर्फीले कैलाश पर्वत पर वास करती हैं। पार्वती जी ने सुख सुविधाओं से दूर अपने पति के जीवन को खुशी से अपनाया। गृहस्थ जीवन में हर पत्नी को पति संग सुख दुख में साथ रहने की सीख पार्वती जी देती हैं। सुख सुविधाएं नहीं, बल्कि पति का साथ आदर्श सुखी जीवन के लिए जरूरी है।