Tiger poaching News: भारत में बाघों की सुरक्षा पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया है। हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस की एक खोजी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि पिछले तीन वर्षों में कम से कम 100 बाघों का अवैध शिकार (Tiger poaching) किया गया है। रिपोर्ट का शीर्षक है: “3 साल, 100 बाघ मारे गए और गिनती जारी: नए जमाने के शिकार माफिया तकनीक, डिजिटल भुगतान, हवाला नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं।”
रिपोर्ट में बताया गया है कि बाघों के अवैध शिकार में आधुनिक तकनीक और वित्तीय नेटवर्क का बेजोड़ इस्तेमाल हो रहा है। शिकार माफिया अब पारंपरिक तरीकों से हटकर डिजिटल भुगतान प्रणालियों और हवाला नेटवर्क का सहारा लेकर अपने अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। ये माफिया बाघों की खाल, हड्डियों और अंगों की तस्करी के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जुड़े हैं। इसके लिए वे ड्रोन और जीपीएस तकनीक का उपयोग कर बाघों की लोकेशन ट्रैक कर रहे हैं।
तकनीकी उन्नति बनी चुनौती
भारत में बाघों की आबादी में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है। 2022 में किए गए अखिल भारतीय बाघ आकलन के अनुसार, देश में बाघों की संख्या 3,682 तक पहुंच गई थी, जो 2018 में 2,967 और 2014 में 2,226 थी। यह प्रोजेक्ट टाइगर जैसे संरक्षण कार्यक्रमों की सफलता को दर्शाता है। लेकिन शिकार माफिया की नई तकनीकों ने इन उपलब्धियों पर पानी फेर दिया है।
डिजिटल भुगतान और हवाला नेटवर्क के जरिए पैसे (Tiger poaching) का लेन-देन होने से नकदी के उपयोग की आवश्यकता कम हो गई है। इससे शिकारियों के खिलाफ सबूत जुटाना और भी मुश्किल हो गया है। शिकार माफिया अपने नेटवर्क को मजबूत करने के लिए स्थानीय समुदायों को लालच देकर शामिल कर रहे हैं।
वन्यजीव संरक्षण पर गंभीर खतरा
वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट के बाद गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि शिकार माफिया के इन आधुनिक तरीकों से निपटने के लिए वन विभाग और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास पर्याप्त संसाधन और तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है। यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो बाघों की बढ़ती आबादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग
इस खुलासे ने सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी (Tiger poaching) की घंटी बजा दी है। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है और इसकी सुरक्षा हमारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक जिम्मेदारी है। शिकार माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई, तकनीकी उन्नति और व्यापक जागरूकता ही इस संकट से निपटने का एकमात्र रास्ता है।