Birthday special : भाजपा के सांसद जिनका अलग है राजनीतिक अंदाज़ ,छोटी सी उम्र में खोया पिता को जानिए उनकी अनसुनी दास्तांन

भाजपा सांसद वरुण गांधी का राजनीतिक अंदाज अलग है। वह जनता के मुद्दों पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ भी आवाज उठाते हैं। उनके कांग्रेस में जाने की चर्चा थी, लेकिन राहुल गांधी के बयान के बाद यह संभावना कम होती दिख रही है।

Varun Gandhi political career

Varun Gandhi Birthday वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को दिल्ली में हुआ था। उनके माता-पिता संजय गांधी और मेनका गांधी ने प्रेम विवाह किया था। जब वरुण सिर्फ तीन साल के थे, तब उनके पिता संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। इसके बाद उनकी मां मेनका गांधी ने ही उन्हें पाला।
राजनीतिक मतभेदों के चलते जब वरुण केवल दो साल के थे, तब उनकी मां ने गांधी परिवार से दूरी बना ली और भाजपा में शामिल हो गईं। वरुण ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से की और आगे की पढ़ाई लंदन विश्वविद्यालय से पूरी की।

राजनीति की विरासत

मेनका गांधी का पीलीभीत से नाता 1983 से जुड़ा हुआ है। 1989 में उन्होंने इस सीट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। साल 2009 में उन्होंने अपने बेटे वरुण गांधी को यहां से चुनावी मैदान में उतारा। वरुण ने शानदार जीत दर्ज की।
इसके बाद 2014 में वरुण सुल्तानपुर से चुनाव लड़े और सांसद बने। 2019 में वह फिर से पीलीभीत से लोकसभा पहुंचे। अब वह लगातार तीसरी बार सांसद हैं।

अलग अंदाज वाले नेता

वरुण गांधी की राजनीति की खासियत यह है कि वह सही और गलत में फर्क करने से नहीं डरते। वह कई बार अपनी ही पार्टी के फैसलों का खुलकर विरोध कर चुके हैं। वह महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेर चुके हैं।वरुण हमेशा जनता के पक्ष में बोलते हैं, चाहे सरकार उनकी अपनी ही क्यों न हो।

जब मेनका गांधी ने आधी रात को छोड़ा इंदिरा का घर

28 मार्च 1982 को एक बड़ा सियासी बदलाव हुआ। मेनका गांधी ने अपने दो साल के बेटे वरुण को गोद में उठाया और इंदिरा गांधी का घर छोड़ दिया।
संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में आगे बढ़ा रही थीं, जो मेनका को पसंद नहीं था। इसी वजह से दोनों के बीच टकराव बढ़ता गया।
जब इंदिरा गांधी विदेश दौरे से लौटीं, तब उन्होंने मेनका को अपने घर से निकल जाने का आदेश दिया। उस रात इंदिरा गांधी अपने पोते वरुण को अपने पास रखना चाहती थीं, लेकिन कानूनी सलाह के बाद उन्होंने वरुण को जाने दिया।

मेनका और वरुण का राजनीतिक सफर

मेनका गांधी ने 1983 में ‘राष्ट्रीय संजय मंच’ नाम से पार्टी बनाई और 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। बाद में वह जनता दल में शामिल हुईं और 1989 में पहली बार पीलीभीत से सांसद बनीं।
2004 में वह भाजपा में शामिल हुईं और तब से लगातार सांसद हैं। 2009 में वरुण गांधी ने भाजपा के टिकट पर पीलीभीत से चुनाव जीता और अपनी राजनीतिक पारी शुरू की।

कांग्रेस में जाने की अटकलें

पिछले कुछ समय से चर्चा थी कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी विचारधारा वरुण से नहीं मिलती।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वरुण गांधी आगे किस राजनीतिक राह पर चलते हैं।

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