नए साल की शुरुआत पौष मास की पुत्रदा एकादशी से होने जा रही है। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की खुशहाली के लिए रखा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और जीवन उपरांत मोक्ष मिलता है।
व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का
हिंदू धर्म में व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का माना जाता है। पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पुत्रदा एकादशी कहलाती है। हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। यह व्रत पुत्रों के सुख के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधि पूर्वक करने से योग्य संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। पुत्रदा एकादशी व्रत को संतान की संकटों से रक्षा करने वाला माना गया है।
कब है पुत्रदा एकादशी का व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार पौष पुत्रदा एकादशी व्रत नए साल की शुरुआत 2 जनवरी 2023, सोमवार को रखा जाएगा। इसके साथ ही पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 03 जनवरी, 2023 को किया जाएगा।धार्मिक मान्यता के अनुसार, पौष मास के पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकदशी का व्रत संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
-एकादशी तिथि आरंभ-1 जनवरी 2023 को शाम 07:11 मिनट से
-एकादशी तिथि समाप्त- 2 जनवरी 2022 को 08: 23 मिनट तक
-एकादशी तिथि का व्रत पारण का समय- 3 जनवरी को 07:14:25 से 09:18:52 तक
-पौष पुत्रदा एकादशी व्रत पारण अवधि- 2 घंटे 4 मिनट
पूजन विधि….
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन सुबह सूर्योदय के स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। व्रत से एक दिन पहले भक्तों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। आगले दिन व्रत शुरू करने के लिए सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें, और भगवान विष्णु का ध्यान करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीला फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि समस्त पूजन सामग्री संबंधित मंत्रों के साथ अर्पित करें। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी ब्राह्मण व्यक्ति या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं, और दान दक्षिणा दें। उसके बाद ही व्रत का पारण करें।
क्या है पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-
पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था। इस राजा के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। जिस कारण राजा परेशान रहता था। एक दिन राजा के मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये और वे उसी दिशा में बढ़ते चलें। जहां उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा। इसलिए कहा जाता है कि जो भी निःसंतान दंपती श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है। उनकी कामना पूरी होती है।