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महोबा का एतिहासिक 'कजली मेले' का आगाज़ आज, सबसे ज्यादा बिकती हैं देशी लाठियां - news 1 india

महोबा का एतिहासिक ‘कजली मेले’ का आगाज़ आज, सबसे ज्यादा बिकती हैं देशी लाठियां

महोबा। उत्तर भारत के मशहूर कजली मेले की आज शुरुआत शोभायात्रा के साथ होगी। शहीद स्थल हवेली दरवाजा से शुरू होकर शोभायात्रा कीरत सागर पहुंचेगी, जहां भुजरियों का विसर्जन होगा। शोभायात्रा के लिये नगरपालिका और जिला प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किये हैं, कोरोना महामारी के कारण पिछले कई सालों से इस मेले का आयोजन नहीं हो पाया था।

शोभायात्रा में मथुरा वृंदावन का मशहूर मयूर नृत्य व राधाकृष्ण की झांकियां आकर्षण का केंद्र रहेंगी। पहले दिन महोबा जिले के अलावा आसपास के जिलों बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट, झाँसी, ललितपुर, टीकमगढ़, पन्ना, छतरपुर, रीवा, सतना से हजारों लोगों के आने की संभावना है। शोभायात्रा में 30 विद्यालयों की झांकी, 100 घोड़े, तीन ऊंट व हाथी शामिल रहेंगे। कीरत सागर तट पर मेले के साथ आठ दिन रंगारंग कार्यक्रम होंगे। इसमें मुंबई, कानपुर व लखनऊ के कलाकार धमाल मचाएंगे। बुंदेली लोक संस्कृति से जुड़े आल्हा गायन, सावन गीत, राई नृत्य, कछियाई फाग, लोकनृत्य, लोकगीत, दिवारी नृत्य आदि के आयोजन चलेंगे।

मेले में लगे झूले, दुकानदारों ने जमाया डेरा

कजली मेले में महज कुछ पलों का समय बाकी होने के चलते मेला दुकानदारों ने अपनी तैयारियां लगभग पूरी कर ली है। इस बार मध्यप्रदेश के सागर के झूला संचालकों ने मेले में झूले लगाएं हैं। मेले में ब्रेकडांस, ट्रेन, नाव, ज्वाइंट व्हील के अलावा बच्चों के झूले लगाए गए हैं। इसके अलावा जादूगर व अन्य खेल-तमाशों के आयोजन होंगे। कजली मेले को लेकर अलग-अलग जिलों से आये दुकानदारों ने दुकानें लगा सजा ली हैं।

मेले में सबसे ज्यादा बिकती है देशी लाठी

मेले में सबसे ज्यादा बिक्री देशी लाठी की होती है। जो कि बुंदेलखंड की एक पारंपरिक पहचान है। इस बार महंगाई के चलते ज्यादातर स्थानीय व्यापारियों ने ही भागीदारी की है, दूरदराज़ के व्यापारी उम्मीद से कम व्यापार के चलते मेले में शामिल नहीं हुये हैं।

कजली मेले में पहले जैसी रौनक नहीं

स्थानीय लोगों के मुताबिक मेले में अब दिनों दिन पहले जैसा उत्साह नजर नहीं आता है, जैसा कि पहले ऐतिहासिक कजली मेले को लेकर दस दिन पहले ही हर घर में दो से चार रिश्तेदार आते थे। जो कुछ दिन रुककर मेले व कार्यक्रमों का आनंद लेते थे, लेकिन अब पहले जैसा उत्साह नहीं है। इक्का-दुक्का लोगों के यहां ही रिश्तेदार एक से दो दिन रुककर चले जाते हैं।

पूर्व प्रधानाचार्य व समाजसेवी शिवकुमार गोस्वामी बताते हैं कि रक्षाबंधन पर्व पर आयोजित होने वाले कजली मेले के लिए दो दिन पहले से रिश्तेदार आ जाते थे। जिनके खानपान की व्यवस्था बेहतर तरीके से करते थे, लेकिन अब समय के साथ सब कुछ बदल गया है। युवा पीढ़ी इस ओर रुचि नहीं ले रही है।

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