नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर लगातार बयानबाजी हो रही है। सभी पार्टियां एक दूसरे पर कटाक्ष कर रही है। इसी क्रम में बाराबंकी में एक निजी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने मौजूदा सरकार पर जोरदार प्रहार किया है। राकेश टिकैत ने कहा है कि 13 महीने आंदोलन चलाकर भी हमें यह बताना पड़े कि वोट किसको दें, तो इसका मतलब ट्रेनिंग पक्की नहीं हुई है। वहीं जिन्ना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह सब ढाई महीने के सरकारी मेहमान है। नेता ढाई महीने तक प्रवचन करेंगे, जनता उन पर ना जाए। जनता पूछे कि मेरे गांव की सड़क बनी की नहीं, मेरे गांव में आवारा पशु तो नहीं, मेरे गांव के स्कूल सही से चल रहे की नहीं। यह सभी मुद्दे होने चाहिए।
दरअसल टिकैत अपने कुछ पदाधिकारियों के साथ बाराबंकी जिले में अपने कार्यकर्ता के यहां एक शादी समारोह में शिरकत करने पहुंचे थे। इस मौके पर जब उनसे अखिलेश के दिए गए बयान किसान का बेटा हूं, उनके लिए लड़ता रहूंगा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन से अब सभी पार्टियां किसान का नाम लेना शुरू कर चुकी हैं। यह बड़ी बात है। देश का प्रधानमंत्री हो या प्रदेश का मुख्यमंत्री हो, गृहमंत्री हों, पक्ष हो या विपक्ष। सभी किसान की बात कर रहे हैं यह अच्छी बात है।
वहीं बातचीत के दौरान प्रदेश में जिन्ना की राजनीति को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि वह उत्तर प्रदेश में ढाई महीने के सरकारी मेहमान है। ढाई महीने तक यहां प्रवचन करेंगे। इन प्रवचनों में जनता को नहीं आना चाहिए। राकेश टिकैत से जब किसानों के वोट देने पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि 13 महीने दिल्ली में ट्रेनिंग होने के बाद अगर यह बताना पड़े की वोट किसको दोगे इसका मतलब ट्रेनिंग पक्की नहीं हुई।
वहीं यूपी में अगली सरकार किसकी बनेगी इस सवाल पर राकेश टिकैत ने कहा कि हमें क्या पता किसकी सरकार बनेगी। आधे रेट में फसल बेचकर किसान जिसको चाहे उसको वोट दे ले। हमें इसकी जानकारी नहीं। किसानों के मुद्दे को लेकर केन्द्र सरकार की जो कमेटी बननी थी, वो अभी तक नहीं बनी है। इसलिए 31 तारीख को हम लोग वादाखिलाफी दिवस के रूप में मनाएंगे। गांव में आवारा जानवरों को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जो गौशाला हैं, उनको ज्यादातर संघ के लोगों को एलाट कर रखा है। इसलिए सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है। लखनऊ से जो गायों के लिए बजट जाता है, वह कुछ की ही जेब में जाता है। इसकी जांच होनी चाहिए।