मेरठ: 1857 के गदर के लिए जाना जाने वाला मेरठ सैर सपाटे, धर्म और इतिहास से लेकर प्रकृति और शौर्य गाथाओं तक मशहूर है। क्रांति की मशाल जलाने वाला मेरठ इस वक्त चुनावी तपिश में डूबा है। 2022 के विधानसभा चुनावों के पहले चरण यानी 10 फ़रवरी को 11 जिले की 58 सीटों पर मतदान होने है और इनमें मेरठ जिले की 7 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। मेरठ बीजेपी का वो किला है, जिसे विपक्षी दल किसी भी दौर में भेद नहीं पाए हैं। सिर्फ एक बार 2007 में बीजेपी को यहां झटका सहना पड़ा, लेकिन उससे पहले और उसके बाद, पूरे प्रदेश में बीजेपी की चाहे जो भी हालत रही हो, मेरठ में कमल का जलवा हमेशा सिर चढ़कर बोला है। फिर बात चाहे 1989 में जनता दल और चौधरी अजित सिंह की आंधी की हो, राममंदिर आंदोलन की भगवा लहर हो या फिर 2012 के बीजेपी के सबसे कमज़ोर प्रदर्शन की, लेकिन मेरठ में बीजेपी का सूरज ही चमकता रहा है। 2017 में भी बीजेपी ने यहां की 7 में 6 सीटों पर कब्जा कर मेरठ पर अपनी बादशाहत कायम रखी और 2022 में यही बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती भी है ।
मेरठ में सात विधानसभाएं है जिनमें शहर, कैंट, दक्षिण, सरधना, हस्तिनापुर, किठौर और सिवालखास विधानसभा शामिल हैं। 2017 में 7 में से 6 सीट पर बीजेपी और 1 सीट पर सपा ने जीत हासिल की थी।
शहर विधानसभा- 2022 के चुनावों में भाजपा से कमलदत्त शर्मा, सपा से रफीक अंसारी, कांग्रेस से रंजन शर्मा और बसपा से मोहम्मद दिलशाद उम्मीदवार है। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर 2017 में सपा के रफीक अंसारी ने अपने मज़बूत वोट बैंक के सहारे 4 बार के विधायक रहे भाजपा के लक्ष्मीकांत बाजपेयी को करारी मात दी थी। रफीक अंसारी को 103217 (53.99%), जबकि लक्ष्मीकांत वाजपेई को 74448 (38.22%)वोट मिले थे। बसपा के पंकज जूली को 12636 वोट हासिल हुए थे। इस बार यहां मुस्लिम कैंडिडेट बढ़ गए हैं, जिससे मुस्लिम वोट बैंक बंटने और भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद है। 2017 में बसपा ने इस सीट पर हिन्दू प्रत्याशी उतारा था जिस वजह से नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था। 2012 में यहां से भाजपा के कद्द्वार नेता लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सपा के रफीक अंसारी को ही हराकर जीत हासिल की थी। उस वक्त भी यहां भाजपा छोड़ बाकी दलों के प्रत्याशी मुस्लिम ही थे, जिसका फायदा भाजपा के लक्ष्मीकांत बाजपेयी को मिला था। 2012 में कांग्रेस से युसूफ कुरैशी और बसपा से सलीम अंसारी उम्मीदवार थे। 2021 के आकड़ों के मुताबिक कुल मतदाता 307799 है। कानून व्यवस्था यहां का बड़ा मुद्दा है साथ ही पूरे प्रदेश में ध्रुवीकरण की जो तस्वीर दिख रही है वो मेरठ शहर में काफी मज़बूत नजर आती है।
सरधना विधानसभा- मेरठ जिले की हॉट सीट माने जाने वाली सरधना विधानसभा भाजपा के कद्दावर विधायक संगीत सोम की वजह से अक्सर चर्चाओं में रहती है। 2022 के विधानसभा चुनावों में इस बार भाजपा से संगीत सोम को सपा-आरएलडी गठबंधन ने अतुल प्रधान, कांग्रेस ने सैय्यद रियाउद्दीन और बसपा ने संजीव धामा को चुनावी मैदान में उतारा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी संगीत सोम ने सपा के अतुल प्रधान को 21,625 वोट के मार्जिन से हराया। भाजपा को 97,921 वोट मिले थे। सपा 76,296 वोटों के साथ दूसरे, बसपा के हाफिज इमरान याकूब तीसरे स्थान पर रहे। 2012 में भाजपा के संगीत सोम ने रालोद के हाजी मोहम्मद याकूब को 12 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।
इस विधानसभा सीट पर कुल वोट 349338 हैं। यहां ठाकुरों के 24 गांव है बावजूद इसके सबसे ज्यादा आबादी यहां मुस्लिम की मानी जाती है। इस सीट पर मुस्लिम एक लाख के करीब हैं, इसके बाद दलित 50 हजार, ठाकुर 45 हजार, गुर्जर 35 हजार, जाट 25 हजार, सैनी 25 हजार व अन्य है।
इस इलाके में खेती है और कई बाग भी है साथ ही ये इलाका सूत का बड़ा उत्पादक है। किसान आंदोलन के बाद से यहां वोटो का ध्रुवीकरण लगभग बदलना तय है। इस समय यहां सबसे चर्चित दो ही नेता हैं, एक संगीत सोम और दूसरा सपा के अतुल प्रधान लेकिन सरधना सीट का अगर इतिहास उठाकर देखा जाए तो अब तक कभी सपा यहां दूसरे स्थान तक भी नही पहुंच सकी है।यहां की मुख्य समस्या गांव में साफ सफाई, कानून व्यवस्था और किसानों की नाराजगी है।
कैंट विधानसभा- 2022के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इस बार अमित अग्रवाल को टिकट दिया है। RLD से मनीषा अहलावत, कांग्रेस से अवनीश काजला और बसपा से अमित शर्मा को टिकट मिला है। साल 2002 से 2017 तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा के विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल ने एक तरफा जीत हासिल की है। इस विधानसभा की प्रमुख समस्याएं सड़क, नाली, और चोरी के वाहनों के कटान का मार्किट है जो इस विधानसभा सीट की छवि खराब करता है। भाजपा के लिए जिले की महत्वपूर्ण सीट माने जाने वाली कैंट विधानसभा में जनवरी 2021 के आंकड़ों के हिसाब से 420419 मतदाता हैं।
दक्षिण विधानसभा- उत्तर प्रदेश विधानसभा में यह सीट 2012 में पहली बार अस्तित्व में आई। इस बार भाजपा ने यहां से सोमेंद्र तोमर, सपा-आरएलडी गठबंधन ने आदिल चौधरी, कांग्रेस ने नफीस सैफी और बसपा ने दिलशाद अली को टिकट दिया है। साल 2017 में भाजपा के सोमेंद्र तोमर को जीत मिली थी। उन्होंने बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब को 35395 वोटों के अंतर से हराया था। सोमेंद्र तोमर को 113225 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे हाजी मोहम्मद याकूब को 77830 वोट हासिल हुए थे। 2012 में भाजपा के रविंद्र भड़ाना ने करीब 10000 वोट से बसपा के हाजी राशिद अख़लाक़ को हराया था।
जिले के सबसे ज्यादा वोटर दक्षिण विधानसभा में है। आकड़ों के हिसाब से यहां 461005 लाख वोटर हैं। यहां हिंदू धर्म के गुर्जर, जाट, ठाकुर, बनियों, दलितों की अच्छी संख्या है। अब तक इस सीट पर केवल भाजपा का ही शासन रहा है। दक्षिण विधानसभा मे काफी संख्या किसानों की भी है जो आने वाले चुनावों का रुख बदल सकती है। इस विधानसभा की मुख्य परेशानी मेडिकल कॉलेज की शिकायतें, सड़को की परेशानी और किसानों की समस्याएं है।
हस्तिनापुर विधानसभा- हस्तिनापुर विधानसभा- महाभारत काल में कौरव-पांडवों की राजधानी रही हस्तिनापुर आरक्षित सीट है। इस बार बीजेपी ने दिनेश खटीक, सपा गठबंधन ने योगेश वर्मा, कांग्रेस ने अर्चना गौतम और बसपा ने संजीव जाटव को उतारा है। यहां का एक अनोखा चुनावी रिकॉर्ड भी है। यहां से जिस भी पार्टी का विधायक जीतता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है। 2017 में यहां से भाजपा के दिनेश खटीक जीते और सूबे में प्रचंड बहुमत से भाजपा सरकार बनी। इसी तरह 2012 में सपा के प्रभुदयाल वाल्मीकि जीते तो सरकार भी सपा की बनी और 2007 में बसपा से योगेश वर्मा जीते और सरकार भी बसपा की ही बनी।
यहां कुल 337252 वोट हैं जिनमें सबसे ज्यादा मुस्लिम और गुर्जर हैं। तीसरे नंबर पर करीब 55 हजार दलित वोटर हैं। 28 हजार के आसपास जाट वोट हैं।यहां की समस्या हर साल खादर क्षेत्र में बाढ़ आना और रेलवे स्टेशन की जरूरत है।
किठौर विधानसभा- 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सत्यवीर त्यागी को, सपा से शाहिद मंसूर, कांग्रेस से कविता गुर्जर और बसपा से के.पी. मावी को टिकट मिला है। किठौर विधानसभा में पिछले कई वर्षों से भाजपा का नामोनिशान तक नही था लेकिन 2017 के इलेक्शन में इस सीट ने भाजपा से सत्यवती त्यागी को विधायक बनाया। साल 2012 में सपा के शाहिद मंजूर की हैट्रिक हुई और भाजपा को चौथा स्थान मिला था। मेरठ जिले के अंतर्गत आने वाली विधानसभा किठौर में आधी आबादी मुस्लिम की है, इसके इलावा ठाकुरों के 12 गांव और त्यागियों की भी काफी संख्या है। यहां कुल वोटर 357827 है। यहां की जनता कानून व्यवस्था, आये दिन हत्या, छेड़छाड़ की वारदात और बिजली की समस्या से परेशान रहती है।
सिवालखास विधानसभा- सिवालखास विधानसभा सीट 2007 तक आरक्षित सीट रही। 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इस बार यहां से मनेंद्र पाल सिंह, RLD ने गुलाम मोहम्मद, कांग्रेस से जगदीश शर्मा और बसपा से नन्हें प्रधान को टिकट मिला है। इस सीट पर हमेशा से ही दलितों और मुस्लिमों का कब्जा रहा है। 2017 में बीजेपी के जितेंद्र सतवई ने सपा के गुलाम मोहम्मद को 11 हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया था। 2012 में सपा के गुलाम मोहम्मद विधायक निर्वाचित हुए थे। RLD के यशवीर सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। इस विधानसभा सीट से कोई भी लगातार दो बार विधानसभा नहीं पहुंच सका है। इस सीट पर कुल मतदाता 331212 है। इलाके की ग्रामीण जनता की परेशानियां भी शिक्षा, रोजगार से जुड़ी हैं। ग्रामीणों को बिजली, पानी, सिंचाई, खाद-बीज, अस्पताल की आवश्यकता है। इसके इलावा इलाके में बड़ी समस्या महिलाओं से जुड़े अपराध है।