सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे 11 साल से लोकायुक्त बिल लाने का आग्रह कर रहे हैं। उनकी की इस मांग को पूरा करने के लिए महाराष्ट्र की शिंदे सरकार नागपुर के शीतकालीन सत्र में लोकायुक्त बिल लेकर भी आई और उपमुख्यमंत्री फडणवीस के प्रयास से ये विधानसभा में पास भी हो गया। लेकिन मामला वहां अटक गया जब उद्धव ठाकरे गुट ने विधान परिषद में इस बिल को पास नहीं होने दिया है।
क्या है लोकायुक्त बिल
दरअसल इस बिल में प्रावधान है कि मुख्यमंत्री या फिर उपमुख्यमंत्री के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले जांच एजेंसियों के लिए विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी लेने अनिवार्य होगा। तो वहीं मंत्रियों के खिलाफ जांच का अधिकार राज्यपाल व विधान परिषद सदस्यों के बारे में सभापति और विधानसभा सदस्य के बारे में जांच की अनुमति देने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया है। इसके अलावा लोकायुक्त विधेयक 2022 में मुख्यमंत्री के पास भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायकों की जांच को अधिकृत करने की भी ताकत दी गई है।
बिना चर्चा के विधानसभा में पारित हुआ लेकिन…
वहीं लोकायुक्त बिल में संबंधित मंत्रियों को बी अन्य अधिकारियों के बारे में पूछताछ की अनुमति देने का अधिकार दिया गया है। बता दें कि नागपुर के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही शिंदे सरकार ने महाराष्ट्र में लोकायुक्त अधिनियम का निर्णय लिया था। लोकायुक्त विधेयक के अनुसार सीएम, पूर्व सीएम और उन्य मंत्री इसके दायरे में आएंगे। वहीं उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अनुसार भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम नए लोकायुक्त अधिनियम का एक हिस्सा लिया होगा। ये बिल बिना चर्चा के विधानसभा में पारित हुआ लेकिन शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने विधान परिषद में इसे रोक कर हजारे के अरमानों पर पानी फेर दिया।
सत्र के अंतिम विधान परिषद में 12 बिल रखे
बता दें कि शीतकालीन सत्र के अंतिम विधान परिषद में 12 बिल रखे गए थे। सत्ता और प्रतिपक्ष दोनों ने बिल पारित करने में सहयोग किया लेकिन जब लोकायुक्त बिल की बारी आई तो नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे शांत रहे। लेकिन उद्धव ठाकरे के बेहद करीबी माने जाने वाले अनिल परब ने कहा कि सदन में जब तक चर्चा नहीं होगी तब तक के लिए इस बिल को स्थगित किया जाए। ये कहना गलत नहीं होगा की फडणवीस की तमाम कोशिशों के बाद भी यह बिल विधानसभा में अंत में अटक गया।