Allahabad High Court on Interfaith Marriage: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत में बिना धर्म परिवर्तन के अंतरधार्मिक विवाह गैरकानूनी हैं, अगर वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत नहीं हुए हैं। कोर्ट ने एक मुस्लिम युवक सोनू उर्फ शाहनूर द्वारा एक हिंदू नाबालिग लड़की से आर्य समाज मंदिर में की गई शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया। युवक ने आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि आर्य समाज मंदिर बिना नियमों के पालन के विवाह प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को जांच का आदेश भी दिया है। मामला महराजगंज जिले के निचलौल थाना क्षेत्र का है।
अंतरधार्मिक विवाह पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की सख्ती
Allahabad High Court ने 24 जुलाई को दिए गए आदेश में साफ किया कि दो अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच विवाह तब तक वैध नहीं माना जाएगा, जब तक विवाह से पूर्व धर्मांतरण नहीं किया गया हो। कोर्ट ने सोनू की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने आईपीसी की धारा 363, 366, 376 और पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी। जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में बिना धर्मांतरण के किया गया विवाह कानूनन वैध नहीं है। कोर्ट ने आर्य समाज मंदिरों द्वारा विवाह प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया की जांच के आदेश दिए और कहा कि यह कार्य पुलिस उपायुक्त स्तर के अधिकारी से कराया जाए।
संविधान में है धर्म न बदलने का विकल्प भी
भारतीय संविधान के तहत विशेष विवाह अधिनियम 1954 (Special Marriage Act) ऐसा कानून है, जो दो अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों को बिना धर्म बदले विवाह की अनुमति देता है। इस अधिनियम के तहत शादी रजिस्ट्रार के समक्ष दर्ज की जाती है, और दोनों पक्षों को अपनी-अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने की छूट होती है। यह कानून सेक्युलर है और धर्मनिरपेक्ष भारत की भावना को दर्शाता है। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले में कहा गया कि यह विवाह विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत नहीं किया गया, बल्कि आर्य समाज मंदिर में किया गया, जहां धर्म परिवर्तन के बिना इसे कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती।
सरकारी वकील ने उठाए सर्टिफिकेट पर सवाल
राज्य की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि सोनू और लड़की के बीच हुआ विवाह झूठे प्रमाणपत्रों और गलत प्रक्रियाओं पर आधारित है। लड़की नाबालिग थी और हाई स्कूल प्रमाणपत्र के अनुसार वह विवाह के समय बालिग नहीं थी। सरकारी पक्ष ने यह भी बताया कि आर्य समाज मंदिर ने जो विवाह प्रमाणपत्र जारी किया है, वह भी संदेहास्पद है और मंदिरों की गतिविधियों में पारदर्शिता नहीं है। कोर्ट ने इन सभी पहलुओं को देखते हुए इस मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को तय की है।
कोर्ट की निगरानी में होगी जांच
Allahabad High Court ने राज्य के गृह सचिव को आदेश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि राज्य में कार्यरत आर्य समाज मंदिर वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं या नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह जांच सिर्फ विवाह प्रमाणपत्रों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह भी देखा जाएगा कि क्या उम्र, सहमति और धर्म जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया गया या नहीं। कोर्ट ने साफ संकेत दिए कि अगर मंदिरों की भूमिका संदिग्ध पाई गई तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।