Brajesh Pathak VS SP media cell: उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों सोशल मीडिया युद्ध ने नया मोड़ ले लिया है। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और समाजवादी पार्टी की मीडिया सेल के बीच हुए डिजिटल टकराव ने राजनीतिक तापमान को आसमान छूने पर मजबूर कर दिया है। सपा की तरफ से पाठक के डीएनए पर की गई टिप्पणी ने न सिर्फ कानूनी बवाल खड़ा किया, बल्कि भाजपा बनाम सपा की खींचतान को और धारदार बना दिया। पाठक ने इसे “शिशुपालों” की हरकत कहा, तो सपा समर्थकों ने उनके पुराने बयानों की याद दिला डाली। FIR, तीखी प्रतिक्रियाएं और निजी कटाक्षों ने माहौल को इस कदर गर्मा दिया है कि हर ट्वीट अब चुनावी हथियार बनता दिख रहा है।
सपा मीडिया सेल के साथी आलोचना करने के दौरान जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, उसे पढ़ कर लगता ही नहीं कि यह पार्टी राममनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र की पार्टी रह गई है। जार्ज साहब की बात तथाकथित "समाजवादी " भूल गए कि शिविर लगाया करो, पढ़ा – लिखा करो ।
अखिलेशजी ! सपाइयों को…
— Brajesh Pathak (@brajeshpathakup) May 18, 2025
शब्दों का युद्ध, कानून का हथियार
17 मई को सपा मीडिया सेल के आधिकारिक एक्स हैंडल से Brajesh Pathak के डीएनए पर की गई टिप्पणी ने बवाल खड़ा कर दिया। पोस्ट को लेकर पाठक ने तीखी प्रतिक्रिया दी और लखनऊ में FIR भी दर्ज करवाई गई। उन्होंने न सिर्फ सपा को लोहिया और जयप्रकाश नारायण की विरासत से दूर बताया, बल्कि पार्टी को “गाली-गलौज की प्रयोगशाला” तक कह दिया।
ब्रजेश पाठक ने अपनी एक्स पोस्ट में लिखा, “सपा मीडिया सेल के साथी जिस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वह समाजवाद नहीं, राजनीतिक विकृति है।” साथ ही उन्होंने तंज कसा कि यदि अखिलेश यादव चाहें तो वह उन्हें लोहिया की किताबें भिजवा सकते हैं।
“DNA-DNA चिल्लाने वाले अब आंसू बहा रहे”
Brajesh Pathak की तीखी टिप्पणी के बाद सपा समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल दिया। @JyotiDevSpeaks ने लिखा, “DNA-DNA करने वाले आज खुद रोने लगे।” वहीं @riskyyadav41 ने तीखा सवाल दागा, “जब रोज़ पत्थर फेंकते थे, तो फूलों की उम्मीद क्यों?”
सपा कार्यकर्ता @iamAshwiniyadav ने पाठक की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि बार-बार “DNA” कहने वाला नेता अब खुद को विक्टिम साबित करने पर तुला है। वहीं @surya_samajwadi ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर पाठक अपनी टिप्पणी संयमित करें, तो सपा मीडिया भी उसी स्तर पर जवाब देगा।
सियासी समीकरणों पर असर?
यह विवाद ऐसे समय में उठा है, जब यूपी की सियासत पहले से ही सुलग रही है। लोकसभा चुनावों के बाद दोनों पार्टियां आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी में हैं। ऐसे में डिजिटल बयानबाजी का यह युद्ध सिर्फ बयान तक सीमित नहीं रहेगा—यह ज़मीन पर राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के विवाद समाजवादी पार्टी की आक्रामक डिजिटल रणनीति और भाजपा के जवाबी नैरेटिव दोनों को धार देने का काम कर रहे हैं। आने वाले समय में यह ट्रेंड और तेज हो सकता है।
राजनीतिक विमर्श जब सोशल मीडिया की भाषा में उतरता है, तो वह धार तो पकड़ता है, पर दिशा खोने लगता है। ब्रजेश पाठक बनाम सपा मीडिया सेल विवाद एक चेतावनी है—राजनीति में डिजिटल शब्दों की भी जिम्मेदारी होती है।