यूपी सरकार ने पिछले साल प्रदेश भर में बृहद अभियान चलाते हुए अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकर और ध्वनि प्रदूषण यंत्रों को बड़े पैमाने पर हटाया था। यूपी पुलिस की इस कार्यवाही को लगभग 1 साल बीत चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल प्रदेश भर के आला अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की थी जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकर हटाए गए और लाउडस्पीकरों को दोबारा लगाए जाने के मामले पर काफी नाराजगी जताई और कड़ा निर्देश भी जारी किया है। जिसके बाद एक बार फिर पूरे प्रदेश भर में अवैध लाउडस्पीकरों को हटाने का अभियान चलता हुआ दिखाई देगा।
CM योगी का अफसरों को कड़ा निर्देश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समीक्षा बैठक के दौरान प्रदेश भर के अफसरों को काफी कड़ा निर्देश दिया। जिसमे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कहा है कि जो अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकर हटाए गए थे। अगर उनको दोबारा लगाया जा रहा है यह किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन अक्षरस कराया जाए। प्रदेश में अराजकता फैलाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और कानून व्यवस्था की आदर्श स्थिति अफसर मेंटेन करें। फील्ड पर रहने वाले अफसर तैनाती स्थल पर ही रात्रि विश्राम करें। जिसके बाद अब पूरे प्रदेश में दोबारा से बड़ा अभियान चलता हुआ दिखाई देगा। क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने खुद इस पूरे मामले पर कहा कि जब वह जिलों के दौरे पर गए तो इस दौरान उन्होंने कई जिलों में ऐसा महसूस किया कि हटाए गए लाउडस्पीकर फिर से लगा लिए गए हैं या फिर उनकी आवाज को तय मानकों से ज्यादा पर बजाया जा रहा है। जो कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के विपरीत है यहां बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश के बाद अब तत्काल कार्यवाही होती हुई दिखाई देगी।
यूपी पुलिस धार्मिक स्थलों से हटवा चुकी है अवैध लाउडस्पीकर
पिछले साल 24 अप्रैल को यूपी गृह विभाग के आदेश के बाद प्रदेश भर में अभियान चलाकर 1 लाख 29 हजार से ज्यादा लाउडस्पीकर पर कार्यवाही की गई थी, जिसमें 72509 विभिन्न लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों से हटवाए गए थे। 56558 लाउडस्पीकर की आवाज को ध्वनि सीमा के मानकों के अनुसार कराया गया था।
धार्मिक स्थलों पर लगे अवैध लाउडस्पीकर और विभिन्न आयोजनों के दौरान लगने वाले डीजे के लिए भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिए हैं कि उनसे भी संवाद स्थापित करते हुए आदर्श स्थिति बनाई जाए। क्योंकि तय मानकों के विपरीत लाउडस्पीकर लगाना या बजाना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे स्थानों पर संवाद स्थापित कर आदर्श स्थित मेंटेन करें। पिछली बार भी पुलिस ने विभिन्न समुदायों के धर्मगुरुओं के साथ भी संवाद स्थापित करते हुए लाउडस्पीकर हटाकर अच्छा संदेश भी दिया था।
लाउडस्पीकर बजाने पर सुप्रीम कोर्ट के क्या है निर्देश
18 साल पहले 2005 के महाराष्ट्र के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर बजाने को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ऊंची आवाज या तेज शोरगुल सुनने के लिए मजबूर करना किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन बताया था। वहीं कहा कि देश में हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है। लेकिन यह जीवन की आजादी के अधिकार के ऊपर नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तय मानकों से ज्यादा शोर करने का अधिकार किसी को नहीं है जिससे दूसरों को परेशानी का सामना करना पड़े। कोई भी व्यक्ति ऐसे मामलों में लाउडस्पीकर बजाते हुए अनुच्छेद 19(1)ए के तहत मिले अधिकारों का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सार्वजनिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर की आवाज क्षेत्र के लिए जो तय मानक है उससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जहां भी ऐसे मानकों के विपरीत लाउडस्पीकर या उपकरण बजाए जा रहे हैं उनको जब्त करने का राज्य प्रावधान करे।
ध्वनि यंत्रों को बजाने के लिए क्या है मानक
ध्वनि यानी आवाज को डेसिबल यूनिट में मापा जाता है। ज्यादा डेसिमल मे किसी चीज को बजाने का मतलब है। ज्यादा आवाज, अब तक आए विभिन्न विश्लेषणो में कहा गया है कि अच्छी नींद के लिए आसपास रहने वाले शोर 35 डेसिमल से ज्यादा ना हो और दिन में भी 45 डिसमिल तक ही हो। हालांकि 55 डेसिमल तक किसी आवाज को चलाने की अनुमति राज्य सरकार की तरफ से दी जा सकती है। जबकि अवैध रूप से धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर 100 से 120 डेसिमल तक की आवाज पैदा करते हैं। जो सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
निर्माण कार्य के दौरान 75 डेसिमल तक की आवाज को अनुमति दी जा सकती है। यहां तक कि विस्फोटक पर भी डेसिमल का उल्लेख करना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पटाखों पर यह भी लिखा जाए कि वह कितना ध्वनि प्रदूषण करेगा क्योंकि इससे ज्यादा अगर आवाज बढ़ेगी तो वह स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। विशेषक डॉक्टरों का कहना है कि 85 डेसिमल से ज्यादा आवाज लगातार अगर आ रही है तो वह आपको बहरेपन की तरफ भी ले जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार 10 से 75 डेसिबल से ज्यादा आवाज नहीं होनी चाहिए। प्राइवेट साउंड सिस्टम की आवाज 5 डेसिबल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए
क्या कहता है ध्वनि प्रदूषण अधिनियम और नियंत्रण कानून
ध्वनि प्रदूषण अधिनियम के तहत कानून की पांचवी धारा लाउडस्पीकर और सार्वजनिक स्थानों पर आवाज के स्तर को लेकर कहता है कि सार्वजनिक स्थानों पर आवाज वाले आयोजनों के लिए प्रशासन से लिखित मंजूरी लेना जरूरी है। इसके अलावा रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर नहीं बजा सकते। निजी और सार्वजनिक जगहों पर लाउडस्पीकर की आवाज की सीमा 10 और 5 डेसीबल से अधिक नहीं होनी चाहिए।
आबादी वाले क्षेत्रों में साउंड की सीमा सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक 55 डेसिमल, वहीं रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक 45 डेसिमल तक ही होना चाहिए। व्यवसायिक क्षेत्रों में अधिकतम 65 से 75 डेसिमल तक की आवाज रखी जा सकती है। अगर इस कानून का पालन अक्षरश: कराया जाए तो इसका उल्लंघन करने पर 5 साल तक की जेल और 1 लाख तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। देश में अलग-अलग राज्यों ने क्षेत्रों के अनुसार साउंड की सीमा तय की है। लेकिन कहीं भी यह सीमा 70 डेसीबल से ज्यादा नहीं है।
यूपी सरकार ने ध्वनि यंत्रों को क्या दिए थे निर्देश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछली बार ही सख्त निर्देश दिया था कि किसी भी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति नए सिरे से ना दी जाए। तथा जिन स्थानों पर लाउडस्पीकर का प्रयोग पहले से हो रहा है। उनकी आवाज को मानकों के अनुरूप कराया जाए। आवाज ऐसी होनी चाहिए कि वह परिसर से बाहर सुनाई ना दे। जिसके बाद मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर, शाही मस्जिद समेत कई धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए गए थे। साथ ही साथ उनके वॉल्यूम को मानक के अनुरूप कर दिया गया था।