कानपुर। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक दो साल पहले कांग्रेस ने पार्टी के संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए जिला व शहर अध्यक्ष घोषित कर दिए हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कुल 134 जिला व शहर अध्यक्षों के नाम पर मुहर लगाई है। कांग्रेस ने प्रयागराज में गंगापार व यमुनापार के अलग-अलग जिलाध्यक्ष समेत कुल 76 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है, जबकि 58 शहर अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। जबकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस का ‘पॉवरहाउस’ कहे जाने वाले कानपुर की कमान जमीन से जुड़े नेताओं को सौंपी है। कानपुर महानगर अध्यक्ष पद पर पवन गुप्ता व नगर-ग्रामीण जिलाध्यक्ष के लिए संदीप शुक्ला की ताजपोशी की है। साथ ही, कानपुर देहात में अंबरीश सिंह गौर को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। इस तरह से पार्टी ने तीनों जिला इकाइयों पर नए चेहरे उतारे हैं। अब कांग्रेस की नजर कानपुर-बुंदेलखंड की उन 52 सीटों पर है, जहां पार्टी बहुत कमजोर है। यहां भी कांग्रेस ने अनुभवी नेताओं को तैनात किया है।
सभी की नजर कानपुर में टिकी थीं
कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव व 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए संगठन में सामाजिक समीकरण साधा है। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के साथ ही कांग्रेस अब बीजेपी को घेरने के मिशन में जुट गई है। सभी की नजर कांग्रेस के पॉवरहाउस कहे जाने वाले कानपुर पर थी। कांग्रेस ने यहां पर वैश्य और ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। कानपुर महानगर अध्यक्ष पवन गुप्ता व नगर-ग्रामीण जिलाध्यक्ष संदीप शुक्ला पार्टी की रीति-नीति से भलीभांति परिचित हैं तो संघर्षशील चेहरे के रूप में पहचान है। अगर कानपुर-बुंदेलखंड के 14 जिलों की बात करें तो कांग्रेस ने यहां भी दलित, ब्राम्हण और ओबीसी समाज से आने वाले नेतओं पर दांव लगाया है। कानपुर-बुंदेलखंड की 52 सीटों में बीजेपी ने 41 पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस का पिछले विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला था।
कौन हैं पवन गुप्ता
कांग्रेस से लंबे अर्से से जुड़े पवन गुप्ता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। समाजसेवा के क्षेत्र में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। वर्ष 2007 में आर्य नगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। 2012 में पार्टी ने इन्हें महापौर का प्रत्याशी बनाया था। 2008 से 2011 तक भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में चेयरमैन रहे। कांग्रेस संगठन में कई पदों को संभाला। जनता के मुद्दों की लड़ाई में आगे पवन ने बैंक लाकर कांड में पीड़ितों को तीन करोड़ मुआवजा दिलाया। वर्तमान में वे उतर प्रदेश कांग्रेस व्यापार प्रकोष्ठ के चेयरमैन हैं। पवन गुप्ता को प्रियंका गांधी का करीबी बताया जाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने उन्हें कानपुर की कमान सौंपी थी। हालांकि कांग्रेस को इस चुनाव में हार उठानी पड़ी।
कौन हैं संदीप शुक्ला
प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) में 15 वर्षों से लगातार सदस्य संदीप शुक्ला का जन्म ही कांग्रेसी परिवार में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय अंबिका प्रसाद शुक्ला वरिष्ठ कांग्रेसी रहे। उनके संघर्ष और पार्टी के लिए कामों की चर्चा अभी तक होती है। युवक कांग्रेस के बाद संदीप को तत्कालीन महानगर अध्यक्ष हरप्रकाश अग्निहोत्री की कमेटी में महासचिव का दायित्व मिला। तीन बार से पीसीसी सदस्य रहने के दौरान संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है। उन्होंने तमाम आंदोलनों में सहभागिता की। कानपुर नगर में करीब पांच लाख ब्राम्हण मतदाता हैं, जो जीत-हार में अहम रोल निभाते हैं। कानपुर की गोविंद नगर और किदवई नगर सीट ब्राम्हण बाहूल्य मानी जाती है। 2017 से पहले इन दोनों सीटों पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। अजय कपूर यहां से तीन बार विधायक रहे हैं।
अंबरीश सिंह गौर को कानपुर देहात की कमान
कांग्रेस ने अंबरीश सिंह गौर को कानपुर देहात का जिलाध्यक्ष बनाया है। अंबरीश सिंह गौर छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय। यूथ कांग्रेस में पदाधिकारी रहे। प्रदेश सचिव की भूमिका निभाई। 2022 में रनिया विधानसभा सीट से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। अंबरीश सिंह गौर प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी की गुड बुक में रहे हैं। देहात क्षेत्र में ठाकुर बिरादरी की राजनीति को ऊपर लाने और वहां के बिरादरी वाले वोट बैंक को पार्टी के लिए जुटाने में पूर्व में किए गए काम को देखते हुए जिम्मेदारी दी गई है। अंबरीश सिंह गौर के सामने 2027 की बड़ी चुनौती है। दरअसल, देहात की लोकसभा और विधानसभा सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर भी लंबे समय से नहीं आ पाई है। ऐसे में 2027 में पार्टी को मुख्य धारा में लाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। जबकि 2004 से लेकर 2014 तक कानपुर देहात से कांग्रेस के टिकट पर राजराम पाल सांसद चुने गए थे।
तिलकहॉल कांग्रेस का पॉवरहाउस हुआ करता था
कानपुर को मजदूरों का शहर कहा जाता है और एक वक्त तिलकहॉल कांग्रेस का पॉवरहाउस हुआ करता था। पंडित नेहरू से लेकर राहुल गांधी यहां आकर रणनीति बनाते थे, लेकिन 2014 के बाद चुनाव में मिली हार के बाद यहां कुछ नेता ही आकर बैठते थे। जानकार बताते हैं कि आपातकाल के बाद कांग्रेस पूरी तरह से बिखर चुकी थी। सत्ता में आने के इंदिरा गांधी हाथ-पांव चला रही थीं। इसी बीच मजदूरों के शहर ने उन्हें फूलबाग से रैली कर चुनाव का शंखदान करने की मांग उठाई। इंदिरा फूलबाग आई और इतनी ज्यादा भीड़ उमड़ी कि इंदिरा गांधी ने मंच से कह दिया कि अब कांग्रेस की वावसी होना तय हैं। फिर क्या था जनता ने देश की सत्ता पर इंदिरा गांधी को बैठाया तो यूपी में भी कांग्रेस की प्रचंड जीत हुई। 2004 में सोनिया गांधी खुद कानपुर आई थीं और तिलकहॉल पर बैठक की थी। जिसका नतीजा रहा कि दिल्ली की कुर्सी कांग्रेस को मिली। 2009 में भी सोनिया-राहुल तिलकहाल आए और दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनी।
कांग्रेस की नजर कानपुर-बुंदेलखंड की 52 सीटों पर
कांग्रेस की नजर कानपुर-बुंदेलखंड की 52 विधानसभा सीटों पर है। पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व वायनाड से सांसद चुनी गईं प्रियंका वाड्रा ने दिसंबर 2024 में इस क्षेत्र के नेताओं को दिल्ली बुलाकर गणित समझी और जमीन पर काम करने की नसीहत दी थी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य विकास अवस्थी ने बताया कि बुंदेलखंड तक पिछड़ों को जोड़ने का काम कर रहे प्रदेश महासचिव जेपी पाल, फतेहपुर के शिवाकांत तिवारी को दिल्ली में बुलाया था। विकास अवस्थी बताते हैं कि बैठक में वार्ड, बूथ, न्याय पंचायत से गांवों तक संगठन में ऊर्जावान युवाओं को मौका देने की रणनीति राष्ट्रीय महासचिव ने बनाई है। उत्तर प्रदेश पर वैसे भी उनका विशेष फोकस रहता है। 2027 के चुनाव में कांग्रेस कानपुर-बुंदेलखंड पर बीजेपी को जरूर शिकस्त देगी। पार्टी ने बूथ लेबल तक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति का कार्य प्रारंभ कर दिया है।
कानपुर-बुंदेलखंड में कांग्रेस पार्टी की तूती बोलती थी
बता दें, कानपुर-बुंदेलखंड में 40 साल पहले कांग्रेस पार्टी की तूती बोलती थी। यहां से कई सांसद, विधायक, मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2009 में कानपुर, झांसी, अकबरपुर, फर्रूखाबाद और उन्नाव की सीटों पर जीत दर्ज की थी। झांसी से प्रदीप आदित्य जैन, कानपुर से श्रीप्रकाश जायसवाल, फर्रूखाबाद सलमान खुर्शीद जीतकर मंत्री बने थे। इसके साथ ही कांग्रेस से अन्नू टंडन भी जीती थीं। कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के बाद से लगातार यूपी में कमजोर होती जा रही है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में वोट प्रतिशत कम रहा है। कानपुर का गढ़ कहे जाने वाले कानपुर में कांग्रेस का सफाया हो गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में कानपुर नगर और देहात की 14 सीटों में कांग्रेस का सफाया हो गया। कुछ ऐसा ही हाल बुंदेलखंड की 19 सीटों का रहा। यहां भी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली।