प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। संगमनगरी में महाकुंभ का आगाज हो चुका है। पहले दिन करीब डेड़ करोड़ भक्तों ने त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई तो अमृत स्नान पर्व पर भी सुबह से भक्त और संतों का तांता लगा हुआ है। पहला शाही स्नान नागा साधुओं ने किया। नागा साधुओं के स्नान को देखने के लिए संगम क्षेत्र में करीब 15 से 20 लाख श्रद्धालु मौजूद हैं। देश-दुनिया से आए भक्त साधु-संतों का आशीर्वाद लेकर पुण्ण कमा रहे हैं। इस महापर्व पर सबके आकर्षण का केंद्र नागा सन्यासी हैं। लोग इन्हें जानने को उतावले हैं। ऐसे में हम आपको इन रहस्यमयी संतों के बारे में बताने जा रहे हैं।
पहले जानें कैसे बनते हैं नागा साधू
नागा साधु बनने के लिए कठिन प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है। अखाड़ों ही व्यक्ति को नागा साधु बनाते हैं। अखाड़ा समिति नागा साधू बनने वाले व्यक्ति पर नजर रखती है। समिति देखती है कि व्यक्ति साधु के योग्य है या नहीं। इसके बाद उस व्यक्ति को अखाड़े में प्रवेश दिया जाता है। नागा साधु बनने के लिए ब्रह्मचर्य के नियम का पालन करना अति आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया में 6 महीने से लेकर 1 वर्ष तक का समय लग सकता है। इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए साधक को 5 गुरु से दीक्षा प्राप्त करनी होती है। शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश द्वारा, जिन्हें पंच देव भी कहा जाता है। इसके बाद व्यक्ति सांसारिक जीवन का त्याग कर अध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करते हैं और स्वयं का पिंडदान करते हैं।
तो उन्हें बिना भोजन के रहना पड़ता है
नागा साधु भिक्षा में प्राप्त हुए भोजन का सेवन करते हैं। अगर किसी दिन साधु को भोजन नहीं मिलता है, तो उन्हें बिना भोजन के रहना पड़ता है। नागा साधु जीवन में सदैव वस्त्र धारण नहीं करते हैं, क्योंकि वस्त्र को आडंबर और सांसारिक जीवन का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से वह अपने शरीर को ढकने के लिए भस्म लगाते हैं। नागा साधु सोने के लिए भी बिस्तर का प्रयोग नहीं करते हैं। नागा साधु समाज के लोगों के सामने सिर नहीं झुकाते हैं और न ही जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करते हैं। लेकिन वह वरिष्ठ सन्यासियों से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सिर झुकाते हैं। जो व्यक्ति इन सभी नियमों का पालन करता है। वह नागा साधु बनता है।
तो कुछ लंगोट भी पनते हैं
नागा साधू साधु निर्वस्त्र रहते हैं तो कुछ लंगोट भी पनते हैं। जब व्यक्ति नागा साधू बनता है तो उसे सिर्फ एक लंगोट दिया जाता है। नागा साधू सिर्फ लंगोट ही पहनते हैं। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं। इसीलिए कुछ नागा साधु हमें लंगोट में तो कुछ बिना वस्त्रों के नजर आते हैं। महाकुंभ में बिना वस्त्र के अलावा लंगोट में नागा साधू तप कर रहे हैं। नागा साधुओ का इतिहास सैकड़ों वर्ष प्राचीन हैं। नागा साधुओं ने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। देश की आजादी में नागा साधुओं का भी अहम रोल रहा है। नागा साधू पहाड़ों पर रहते हैं और कुंभ पर ही नजर आते हैं। कुंभ के समापन के बाद साधू फिर अपनी दुनिया में लौट जाते हैं।
शरीर पर हवन की भभूत लगाते हैं
धर्म के रक्षक नागा साधु नागा शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संस्कृत के नागा से आया है. इसका अर्थ पहाड़ होता है। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होना है। वे अखाड़ों से जुड़े हुए होते हैं और समाज की सेवा करते हैं। साथ ही धर्म का प्रचार करते हैं। ये साधू अपनी कठोर तपस्या और शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर हवन की भभूत लगाते हैं। नागा साधु जिस भभूत को शरीर पर लगाते हैं, वो लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होती है। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म करते हैं। उसके बाद जाकर वो भभूत तैयार होती है।
आदिगुरु शंकराचार्य ने रखी थी नींव
नागा संन्यासी अपने समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं। वह कुटिया बनाकर रहते हैं और इनकी कोई विशेष जगह और घर नहीं होता है। नागा साधुओं को एक दिन में सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत होती है। अगर उनको इन घरों में भिक्षा नहीं मिलती है, तो उनको भूखा ही रहना पड़ता है। नागा संन्यासी दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। जुना अखाड़े में सबसे ज्यादा नागा संन्यासी रहते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य ने अखाड़े में नागा साधुओं के रहने की परंपरा की शुरुआत की थी। बताया जाता है कि नागा साधुओं के पास रहस्यमयी शक्तियां होती है। वह कठोर तपस्या करने के बाद इन शक्तियों को हासिल करते हैं।
योग की मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि
हिंदू धर्म में किसी भी इंसान की मौत के बाद उसके मृत शरीर को जलाने की मान्यता है जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन नागा साधुओं के शव को नहीं जलाया जाता है। नागा संन्यासियों का मृत्यू के बाद भू-समाधि देकर अंतिम संस्कार किया जाता है। नागा साधुओं को सिद्ध योग की मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है। नागा साधू पूरे जीवन महादेव की अराधना में गुजारते हैं। नागा साधू अखाड़ों के नियम-कानून से बंधे होते हैं। नियमों के उल्लंघन पर उन्हें सजा भी सुनाई जाती है तो बहुत खौफनाक होती है।