देश की राजधानी दिल्ली से सटा गौतमबुद्धनगर उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी है. यहां 3 विधानसभा सीटें हैं, नोएडा, दादरी और जेवर. इन पर पहले दौर में 10 फरवरी को वोटिंग होनी है. इन तीनों सीटों पर अभी बीजेपी का कब्जा है. 2022 की जंग में बीजेपी के सामने चुनौती अपनी सीटों को बचाने की है तो विपक्षी दल किसी भी तरह बीजेपी के कब्जे को तोड़ना चाहते हैं. इस बार यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा गठबंधन के बीच है.
गौतमबुद्ध नगर में नोएडा एक अकेली ऐसी सीट जो बीजेपी के लिए सुरक्षित मानी जाती है. क्योंकि परिसीमन के बाद 2012 में पहली बार यहां पर चुनाव हुए और बीजेपी ने परचम लहराया. बीजेपी के महेश शर्मा ने यहां से जीत दर्ज की और बसपा के ओमदत्त शर्मा को करीब 27 हजार 676 वोटों के अंतर से हराया था. 2017 में बीजेपी ने केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह पर दांव खेला. पंकज सिंह ने जीत को बरकरार रखते हुए सपा के सुनील चौधरी को 1 लाख 3 हजार 16 वोटों के अंतर से हराया. अब नोएडा सीट पर तीसरी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. जिसके लिए बीजेपी ने फिर से पंकज सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं सपा ने सुनील चौधरी पर दांव खेला है. बीएसपी ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए कृपाराम शर्मा और कांग्रेस ने महिला कार्ड खेलते हुए पंखुड़ी पाठक को उतारा है.
नोएडा विधानसभा क्षेत्र में कुल 6 लाख 90 हजार 231 मतदाता हैं. यहां पर सबसे ज्यादा ब्राह्मण समाज के लोग हैं. हालांकि ठाकुर और गुर्जर मतदाताओं की संख्या भी यहां प्रभावी है. मुद्दों की बात करें तो यहां जनता के लिए विकास और सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है. क्योंकि 2017 से पहले नोएडा में आएदिन लूटपाट की घटनाएं होती थी. जिनपर 2017 में सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने कंट्रोल किया है.
बसपा सुप्रीमो मायावती के गृह क्षेत्र वाली दादरी विधानसभा सीट पर सीधा मुकाबला बीएसपी और बीजेपी के बीच ही रहता है. 3 से ज्यादा बार प्रदेश में सरकार बनाने वाली सपा ने इस सीट पर एक बार भी जीत हासिल नहीं की है. इस सीट पर पर सपा को छोड़ बीजेपी, बसपा कांग्रेस और जनता दल का दबदबा रहा है. यहां से मौजूदा विधायक हैं बीजेपी के तेजपाल नागर. जिन्होनें बसपा के सतवीर सिंह गुर्जर को करीब 80 हजार वोटों के अंतर से हराया था. तब तेजपाल को 53% से ज्यादा वोट मिले थे. 2012 के चुनावों में ये सीट बीएसपी के पाले में गई थी. तब बसपा के सतवीर सिंह गुर्जर ने बीजेपी के नवाब सिंह नागर को करीब 37 हजार वोटों के अंतर से हराया था. 2022 के चुनावों के लिए बीजेपी ने एक बार फिर से मौजूदा विधायक तेजपाल सिंह नागर पर भरोसा जताया है. बसपा ने मनवीर सिंह भाटी को चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने दीपक भाटी चोटीवाला और सपा ने राज कुमार को प्रत्याशी बनाया है.
दादरी विधानसभा में कुल 5 लाख 86 हजार 889 मतदाता हैं. यहां सबसे ज्यादा गुर्जर और ब्राह्मण समाज के वोटर हैं और यही निर्णायक भूमिका में भी.
इस बार सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर इस सीट पर गुर्जर बनाम राजपूत के बीच जंग देखने को मिल सकती है. इसके अलावा यहां को लोग खस्ताहाल सड़क और उनपर चलते अवारा पशुओं से भी खासा परेशान हैं. स्थानीय लोगों का कहना कि सड़कों पर गड्ढों और आवारा पशुओं के कारण यहां आएदिन हादसे होते हैं. ऐसे मे यहां पर दोबारा कमल खिलाना बीजेपी के लिए चुनौती साबित हो सकती है.
जेवर विधानसभा सीट 2012 से पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. 2012 के चुनाव से ये सीट सामान्य वर्ग में है. इस सीट पर कांग्रेस और सपा कभी जीत हासिल नहीं कर पाए. यहां बन रहे जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पूरी दुनिया की नजर है. 2017 में बीजेपी के धीरेन्द्र सिंह को यहां की जनता ने 48.71% वोट के साथ विधायक के रुप में चुना. धीरेन्द्र सिंह ने बसपा के वेदराम भाटी को करीब 22 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था. धीरेन्द्र सिंह 2012 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन बसपा के वेदराम भाटी ने उन्हें 9500 वोटों से हराया था.
अब 2022 में जेवर की लड़ाई बेहद ही दिलचस्प है. बीजेपी ने मौजूदा विधायक धीरेन्द्र सिंह पर ही भरोसा जताया है. सपा और आरएलडी के गठबंधन ने अवतार सिंह भड़ाना को प्रत्याशी बनाया है. बसपा ने नरेन्द्र भाटी और कांग्रेस ने मनोज चौधरी को उम्मीदवार बनाया है.
इस सीट पर जातिगत वोटरों के बीच कांटे की टक्कर इस बार देखने को मिल रही है. इस विधानसभा में 3 लाख 46 हजार 425 कुल मतदाता है. 70 हजार गुर्जर, 70 हजार ठाकुर, 80 हजार एससी, 25-25 हजार ब्राह्मण और जाट मतदाता हैं. गुर्जर यहां सबसे ज्यादा असरदार हैं. इसलिए ज्यादातर पार्टियों ने गुर्जर प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.
यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि वो जेवर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनने से खुश तो हैं पर भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कई समस्याएं हैं. वहीं किसान आंदोलन का असर भी यहां नजर आता है, क्योंकि जेवर में 40 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण से आते हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जेवर के जनता के तेवर कैसे होंगे?