चित्रकूट ऑनलाइन डेस्क। ’चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर’। … यह दोहा आपको धार्मिक नगरी के प्रवेश करते ही हर तरह सुनाई देगा। भक्त भी भगवान राम और गोस्वामी तुलसीदास के मिलन स्थल रामघाट के दर्शन को लेकर आतुर दिखेंगे। इसी पवित्र जमीन पर भगवान राम जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे। रामघाट पर एक गुफा है, जहां पर तुलसीदास की चरण पादुका विद्यमान है। उनके हाथों की प्रज्वलित अखंड ज्योत जो 473 वर्ष से जल रही है।
473 सालों से रामघाट पर जल रही अखंड ज्योति
चित्रकूट को भगवान श्रीराम की तपोभूमि कहा जाता है। इसी धरा पर भगवान राम ने देवी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे। आज भी भगवान राम के बिताए गए समय के साक्ष्य चित्रकूट की धरती पर अंकित हैं। जानकीकुंड में सीता मंदाकिनी में नित्य स्नान पूजा करती थीं, स्फटिक शिला में मंदाकिनी के किनारे बैठकर सौंदर्य को निहारती थी तो गुप्त गोदावरी को भगवान राम ने माता सीता के लिए लेकर आए थे। वह गुफा जहां पर भगवान राम ने गोस्वामी तुलसीदास का दर्शन दिए थे, आज भी ज्यों की त्यों मौजूद हैं। तुलसीदास ने जिस अखंड ज्योति को अपने हाथों से जलाया था, वह पिछले 473 वर्षो से निरतंर उजेला बिखेर रही है।
तुलसीदास ने किया था कठोर तप
गोस्वामी तुलसीदास बपचन से प्रभु श्रीराम के भक्त थे। वह राम को पाने के लिए अतुर थे। ऐसे में उन्होंने बपचन में ही घर छोड़ दिया और अयोध्या आ गए। मथुरा और काशी में रहे। 12 वर्षों तक राम के दर्शन को लेकर उन्होंने कठोर तप किया। लेकिन उन्हें प्रभु राम के दर्शन नहीं हुए। तुलसी गुफा के महंत मोहित दास बताते हैं, काशी में हनुमान जी ने बताया कि चित्रकूट में प्रभु के दर्शन होंगे। आपको भगवान राम की तपोभूमि जाना चाहिए। फिर क्या था तुलसीदास काशी से सीधे चित्रकूट पहुंचे। तब उन्होंने रामघाट किनारे एक छोटी सी मिट्टी की गुफा बनाई और तपस्या करने लगे।यहां पर अखंड ज्योति जलाकर 21 वर्ष तक उन्होंने राम नाम का जाप किया और भगवान कामदगिरि की परिक्रमा की।
तब भगवान राम ने तुलसीदास को दिए दर्शन
मान्यता है कि इस दौरान भगवान के दर्शन उन्हें कई बार हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं पाए। महंत मोहित दास बताते हैं, माघ की अमावस्या के दिन भगवान बालक के रूप में तुलसीदास के पास आए और चंदन लगाने के लिए मांगने लगे लेकिन उस समय भी वह भगवान को नहीं पहचान पाए तब हनुमान जी तोता रूप में प्रकट हो गए और उन्होंने दोहा सुनाया। तब उन्हें भगवान की दर्शन हुए। इसके बाद तुलसीदास को रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा जागृत हुई। तुलसी गुफा में गोस्वामी तुलसीदास के हाथों से स्थापित तोतामुखी हनुमान जी विद्यमान है जिनके दर्शन के लिए भक्ति देश-विदेश से आते हैं।
मिट्टी की बनी थी गुफा
महंत मोहित दास बताते हैं यह गुफा पहले मिट्टी की थी सन 1977 में बाढ़ के बाद इस गुफा का पक्का निर्माण किया गया। महंत बताते हैं कि प्रभु श्रीराम की तपोभूमि का पर्यटन विकास योगी सरकार आने के बाद हुआ। रामघाट, मंदाकिनी आरती, लेजर शो और फुट ओवर ब्रिज के अलग पहचान रखता है। हर वर्ष लाखों की संख्या में भक्त यहां पर आते हैं और रामघाट के दर्शन करते हैं। आमावस्या पर्व पर दस लाख से अधिक भक्त चित्रकूट पहुंचते हैं। मां मंदाकनी में डुबकी लगाकर पुण्ण कमाते हैं। चित्रकूट में ही स्फटिक शिला है। यह विशाल शिला घने जंगली क्षेत्र में मंदाकिनी तट पर स्थित है। माना जाता है कि इस शिला में भगवान राम व सीता के पैरों के निशान मुद्रित हैं।
चित्रकूट में है स्फटिक शिला
स्फटिक शिला पर बैठकर भगवान राम और मां सीता चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता को निहारा करते थे। यहीं पर उन्होंने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से मां सीता का श्रृंगार किया था। मान्यता है कि जब सीता इस शिला पर बैठीं थी, जब इन्द्र के पुत्र जयंत ने कौवे का वेश धर सीता को चोंच मारी थी। जब माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा तो राम जी ने धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण बनाकर मारा। जो उसकी आंख में लगा। तभी से कौआ एक आंख को होता है। यहीं पर जानकीकुंड है। यहीं पर देवी सीता मंदाकिनी तट स्नान करती थीं। कुंड के बगल में माता जानकी के पदचिह्न भी देखे जा सकते हैं।