Neha Rathore Ayodhya case: लोकप्रिय लोकगायिका नेहा सिंह राठौर अब मुश्किल में हैं। पहलगाम आतंकी हमले को लेकर उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स पर देशद्रोह, सांप्रदायिकता और पाकिस्तान से संबंध जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। लखनऊ और पटना के बाद अब अयोध्या की अदालत में भी उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ है। यह मामला अब सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्र विरोध की बहस नहीं, बल्कि कोर्ट में तय होने वाला बड़ा कानूनी मुद्दा बन चुका है।
अयोध्या में केस, आरोप संगीन
भोजपुरी गायिका और यूट्यूबर Neha Rathore के खिलाफ अब अयोध्या में भी मुकदमा दर्ज हो गया है। ब्लॉक प्रमुख संघ के जिला अध्यक्ष शिवेंद्र सिंह ने वरिष्ठ अधिवक्ता मार्तंड प्रताप सिंह के माध्यम से एसीजेएम कोर्ट में परिवाद दाखिल किया है। आरोप है कि नेहा ने पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) के बाद सोशल मीडिया पर भड़काऊ और आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं।
परिवाद में कहा गया है कि नेहा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पर गंभीर आरोप लगाए, यह दावा करते हुए कि यह हमला “चुनावी लाभ” के लिए “सरकार द्वारा प्रायोजित” था। आरोप है कि यह पोस्ट पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी शेयर की, जिससे उनके “दुश्मन देश से संबंध” का संकेत मिला।
देशद्रोह, वैमनस्य और आईटी एक्ट की धाराएं
लखनऊ के हजरतगंज थाने में Neha Rathore पर पहले ही बीएनएस की धारा 152, 196 और आईटी एक्ट की धारा 69A के तहत एफआईआर दर्ज हो चुकी है। यह शिकायत कवि अभय प्रताप सिंह ने दी थी। पटना में भी भाजयुमो नेता कृष्णा सिंह कल्लू ने गांधी मैदान थाने में पाकिस्तान से साठगांठ और भारत-विरोधी प्रचार का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज करवाई है।
नेहा पर आरोप है कि उन्होंने “सस्ती लोकप्रियता” के लिए संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर “जानबूझकर उकसाने वाले” पोस्ट किए, जिससे सांप्रदायिक तनाव और देश की अखंडता को ठेस पहुंची।
नेहा का पलटवार, जनता में बंटा नजरिया
Neha Rathore ने X (पूर्व ट्विटर) पर तीखा जवाब देते हुए लिखा— “मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, देश नहीं। सवाल पूछना देशद्रोह नहीं होता।” उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास केवल ₹519 हैं और वकील की फीस तक नहीं दे पा रहीं।
सोशल मीडिया पर बहस गर्म है— कुछ उन्हें लोकतंत्र की सच्ची आवाज मान रहे हैं, तो कुछ उन्हें राष्ट्र-विरोधी करार दे रहे हैं। अब यह मामला अदालत में पहुंचेगा, जहां तय होगा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी या कानून की सीमाओं का उल्लंघन।