लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। चिरंजीवी उन्हें कहा जाता है जो अजर और अमर होते हैं, जिनका कोई अंत नहीं होता जो सदैव मौजूद रहते हैं। हिंदू पौराणिक इतिहास में ऐसे 8 पात्र रहे हैं जिन्हें इस श्रेणी में शामिल किया गया है और ये सभी पात्र आज भी प्रथ्वी पर मौजूद हैं। इन्हीं आठ पात्रों में एक प्रभु श्रीराम भक्त हनुमान जी हैं। हनुमान जी इकलौते ऐसे देवता हैं, जो कलयुग में आज भी धरती पर वास करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। हिंदू धर्म में हनुमान जी की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार के दिन की जाती है, लेकिन साल में दो दिन ऐसा भी आता है, जब उनका जन्मदिन बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ऐसे में हम अंजनिपुत्र के जन्मोत्सव पर संकटमोचप के उस रहस्य के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसे जानकार आप भी हैरान हो जाएंगे।
हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था
तो पहले जानिए हनुमानजी के जन्म के बारे में। जानकार बताते हैं कि हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था। जानकार एक बताते हैं कि बचपन में एक बार हनुमान जी को बहुत तेज भूख लगी थी। उन्होंने सूर्य को लाल फल समझकर निगलने की कोशिश की। देवराज इंद्र ने उन्हें रोकने के लिए वज्र से प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित हो गए। यह देख पवन देव बहुत नाराज हुए और उन्होंने पूरी सृष्टि में वायु प्रवाह रोक दिया। जब सभी देवताओं ने मिलकर हनुमान जी को फिर से जीवनदान दिया, तब जाकर स्थिति सामान्य हुई। यह दिन चैत्र पूर्णिमा का ही था, इसलिए इसे उनका पुनर्जन्म और विजय का दिन माना गया। और तब से हनुमान जी का जन्मोत्सव साल में दो बार मनाया जाता है।
हनुमान जी को चिरजींवी होने का वरदान
जानकार बताते हैं कि माता सीता ने हनुमान जी को चिरजींवी होने का वरदान दिया था। पिछले करीब 40 लाख वर्षों से वह इस पृथ्वी पर जीवित हैं और धर्म की रक्षा कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि जब संभल में भगवान कल्कि का अवतार होगा, तब हनुमान जी उनके साथ मिलकर अधर्म के खिलाफ युद्ध लड़ेंगे और राक्षसों का संघार करेंगे। ऐसा दावा भी किया जाता है हनुमानजी हर 41 साल के बाद एक आदिवासी समूह से मिलने आते हैं। हनुमान जी 17 मई 2014 की सुबह के वक्त गांव आए थे और ग्रामीणों को दर्शन दिए थे। ऐसे दावा किया है कि सैकड़ों सालों से हनुमान जी हर 41 वर्ष के बाद गांव आते हैं और दर्शन देने के साथ ही शाम तक ग्रामीणों के साथ रहते हैं। दावा तो यहां तक किया गया है कि हनुमान जी ग्रामीणों के साथ भोजन भी करते हैं।
कबीले की पीढियों को देते हैं ब्रह्मज्ञान
सेतु एशिया नाम की एक वेबसाइट ने दावा किया है श्रीलंका के जंगलों में ऐसा कबीलाई समूह रहता है जो पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कटा हुआ है। यह आदिवासी समूह श्रीलंका के पिदूरु पर्वत के जंगलों में रहता है। सेतु वेबसाइट का दावा है कि 27 मई 2014 को हनुमानजी इन आदिवासी समूह के साथ अंतिम दिन बिताया था। अब इसके बाद हनुमानजी 2055 में फिर से मिलने आएंगे। जानकार बताते हैं कि भगवान राम के मृत्यु के बाद हनुमान जी अयोध्या से लौटकर दक्षिण भारत के जंगलों में रहने लगे। इसके बाद वे श्रीलंका चले गए। उस समय हनुमान जी जब तक श्रीलंका के जंगलों में रहे, इस आदिवासी समूह के लोगों ने उनकी सेवा की। हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध कराया। और उन्होंने वादा किया कि वे हर 41 साल बाद इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे।