लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर हरदिन नए-नए दावे सामने आ रहे हैं। हिंसा के बाद पुलिस-प्रशासन भी अलर्ट पर है और जिले में बाहर व्यक्तियों के आने पर रोल लगाई हुई है। समाजवादी पार्टी के अलावा दूसरे दलों के नेताओं ने हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करना चाहा, जिन्हें पुलिस ने बार्डर पर ही रोक दिया। इसबीच बीजेपी विधायक शलभमणि त्रिपाठी ने सोशल मीडिया पर कुछ फोटो साझा की हैं। उन्होंने बताया है कि 12 साल पहले मस्जिद परिसर पर मौजूद कुआं की लोग पूजा-अर्चना करते थे। महिलाएं दीपक जलता थीं। पर सपा के तत्कालीन सांसद डॉक्टर बर्क ने पूजा-अर्चना पर रोक लगा दी थी। स्थानीय लोगों ने भी इस बात का खुलासा किया और कुआं पूजन के रोक के बारे में विस्तार से बताया।
सर्वे के दौरान संभल में भड़की थी हिंसा
संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर हिन्दुवादी संगठन के लोगों ने स्थानीय अदालत पर याचिका दायर कर सर्वे की मांग की थी। कोर्ट ने सर्वे का आदेश जारी कर दिया। अदालत के आदेश पर शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था, क्योंकि दावा किया गया था कि इस स्थल पर पहले हरिहर मंदिर था। टीम 24 नवंबर को भी संभल जामा मस्जिद में सर्वे के लिए पहुंची और इसी दौरान हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव के साथ फायरिंग की। पुलिस ने लाठीचार्ज करने के साथ आंसू गैस के गोले दगे और दंगाईयों को खदेड़ा। हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई, तो वहीं दो दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी भी घायल हुए।
कुआं पूजन की थी परम्परा
हिंसा के बाद पुलिस-प्रशासन अलर्ट पर है। दुकानें खुल गई हैं। मस्जिद परिसर के आसपास फोर्स की तैनाती है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। इसी बीच जामा मस्जिद के पास स्थित एक कुएं को लेकर भी नया विवाद सामने आया है। खुद बीजेपी विधायक शलभमणि त्रिपाठी ने पूजा-अर्चना की फोटो सोशल मीडिया पर साझा की हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कुएं पर लंबे समय से पूजा होती आ रही थी। कुएं पर दीपक जलाकर रखे जाते थे। शादी के वक्त कुआं पूजन की परम्परा थी। नवविवाहित जोड़े शादी के बाद कुआं की पूजा-अर्चना किया करते थे। महिलाएं दीपक जलाती थीं। कुआं मस्जिद परिसर पर था। स्थानीय लोगों का दावा है कि अब भी कुआं मस्जिद परिसर पर मौजूद है।
दीपावली पर जलाते थे दीपक
मोहल्ला कोट पूर्वी के निवासी दो बुजुर्गों ने बताया कि कुएं पर पूजा की परंपरा सालों से चली आ रही थी। एक बुजुर्ग ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, जब हमारा भतीजा पैदा हुआ था, तो इस कुएं पर पूजा की गई थी। दीपक भी इसी कुएं पर रखे जाते थे, लेकिन बाद में पुलिस ने इस पूजा को बंद करा दिया। बुजुर्ग ने कहा कि वे अब कुआं पूजन करने के लिए दूसरी जगह पर जाते हैं, क्योंकि पहले की तरह यहां कुआं पूजा करना अब संभव नहीं रहा। एक बुजुर्ग ने बताया, वर्षों से दीपावली के दिन पूजा करके कुएं पर दीपक रखने की परंपरा को हम निभाते आ रहे थे। बड़ी संख्या में लोग पर्व पर कुआं के पास आते थे।
डॉक्टर बर्क ने लगवाई थी रोक
एक बुजुर्ग ने बताया कि 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनी। उस वक्त यहां डॉक्टर बर्क की तूती बोला करती थी। उन्हीं के आदेश पर हमारे दीपक जलाने का विरोध किया गया और उन दीपकों को पैरों से कुचला गया। डॉक्टर बर्क के आदेश पर पुलिस को यहां पर तैनात कर दिया गया। पुलिस ने पूजा को बंद करवा दिया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि हमलोग सांसद बर्क से मिले और कुआं पूजन की अनुमति दिए जाने की फरियाद की। लेकिन वह नहीं माने। उन्होंने हमलोगों से दो टूक शब्दों में कहा कि कुआं पूजन के वक्त शोर होता है, जिससे नमाजियों को दिक्कत होती है। उस वक्त किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि डॉक्टर बर्क का कोई विरोध कर सके।
2012 से पूजा-अर्चना पर लगी है रोक
बुजुर्ग बताते हैं कि जब हमारे घर में किसी लड़के की शादी होती थी, तो उसकी मां कुएं में पैर लटका कर बैठ जाती थी। फिर लड़का अपनी मां के साथ परिक्रमा करता था और मां को सुंदर बहू लाने का आश्वासन भी देता था। एक बुजुर्ग बताते हैंं कि यह परंपरा काफी पुरानी है, और लगभग 12 साल पहले इस कुएं पर पूजा और अन्य रीति-रिवाजों को रोक दिया गया था। यहां के बुजुर्गों का मानना है कि बर्क़ के हस्तक्षेप के कारण ही इस कुएं पर पूजा और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा था। बर्क नहीं चाहते थे कि मस्जिद में दूसरे धर्म के लोग पूजा-अर्चना करें।
अब नहीं रहा शांति का माहौल
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि इस कुएं का पुराना नक्शा भी उपलब्ध है, जो यह स्पष्ट करता है कि यह जगह पहले मंदिर हुआ करती थी। इस पुराने नक्शे के अनुसार, यह स्थान पूजा के लिए उपयुक्त था और यहां पर धार्मिक क्रियाएं नियमित रूप से होती थीं। लेकिन समय के साथ-साथ इस स्थान का स्वरूप बदल गया और अब यहां पर पूजा करना संभव नहीं रहा। स्थानीय निवासी इस बदलाव को लेकर निराश हैं और उनका कहना है कि इस परंपरा को खत्म करना ठीक नहीं था। एक बुजुर्ग ने कहा, हम लोग इस कुएं पर पूजा करते थे, लेकिन अब हमें दूसरी जगह पूजा के लिए जाना पड़ता है। पहले यहां पर जो शांति और धार्मिक माहौल था, वह अब कहीं नजर नहीं आता।