लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। शादी के वक्त पंडित जी एक से लेकर सात फेरों तक वर-वधु से शगुन के तौर पर 51, 101 और 501 रूपए की मांग करते हैं। कथा और मंदिर में पुजा करवाने वाले पुरोहित भी कभी 50, 100 और 500 का नोट यजमान से नहीं लेते। वह शुभ कार्य के वक्त 50 की जगह 51 रूपए की डिमांड करते हैं। शगुन के हर कार्य में बिना एक रुपये के लिफाफा देना अच्छा नहीं मानते हैं और इसे शुभ नहीं समझा जाता है। ऐसे में हम आपको अपने इस खास अंक में एक रूपए के शगुन वाले राज और महत्व के बारे में रूबरू कराने जा रहे हैं।
एक रूपए के सिक्के का अलग ही महत्व
भारत में शगुन के लिफाफे में लोग 50, 100, 500 के बजाए 51, 101 और 501 रूपए देते हैं। हर शुभ कार्य में एक रूपए के सिक्के का अपना अलग ही महत्व है। शादी के वक्त हर रश्म के दौरान दक्षिणा के तौर पर एक का सिक्का दिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिंदू धर्म में विषम संख्याओं को गति का कारक माना जाता है। इसके साथ ही विषम संख्याओं को प्रगति की दृष्टि से भी देखा जाता है। इसी के कारण शगुन के लिफाफे व दक्षिणा में एक रूपए का सिक्का दिया जाता है।
क्या कहता है अंकशास्त्र
अंकशास्त्र के अनुसार, विषम संख्याएं गति और प्रगति का प्रतीक होती हैं। ये संख्याएं हमेशा आगे बढ़ती रहती हैं और कभी स्थिर नहीं होतीं। इसीलिए मांगलिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले लिफाफे में 11, 21, 31, 51, 101, 501, 1001 जैसे विषम संख्या में पैसे देने की परंपरा है। यह माना जाता है कि विषम संख्याएं प्राप्तकर्ता के लिए तरक्की और समृद्धि लाती हैं। ये परंपरा सैकड़ों वर्ष से चली आ रही है। जानकार बताते हैं कि त्रेतायुग में भी ये परंपरा चलती थी। भगवान श्रीराम हर शुभ कार्य के वक्त शगुन के वक्त जीरो के बजाए अंक के तौर पर धन देते थे।
एक ऐसी भी मान्यता
एक अन्य मान्यता के अनुसार शगुन के लिफाफे पर 1 रुपये का सिक्का मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी को धातु के रूप में भी पूजा जाता है। इसलिए जब किसी को शगुन का लिफाफा दिया जाता है उसके साथ मां लक्ष्मी का आशीर्वाद होता है।
1 रुपये का सिक्का शुभ का प्रतीक होता है और इसलिए इसे शुभ कामों में ही उपयोग किया जाता है।
क्या है धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब किसी को 1 रुपये का सिक्का दिया जाता है तो मन में यह विचार रखकर शगुन दिया जाता है कि उस व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली मिले। इसलिए शगुन के लिफाफे पर पहले से ही 1 रुपये का सिक्का लगाया जाता है ताकि भूल जाने पर शगुन अधूरा न रह जाए। अशुभ कार्य के वक्त 1 रूपए का सिक्का नहीं दिया जाता।
जानें क्या है वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो संख्याएं हमारे मस्तिष्क पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालती हैं। न्यूरो-प्लेसीबो सिद्धांत के अनुसार, सम संख्याएं जीवन में स्थिरता लाती हैं। जबकि विषम संख्याएं सकारात्मकता के बिना आशा बढ़ाती हैं। ऊर्जा सिद्धांत के संदर्भ में, विषम संख्याएं ऊर्जा के प्रवाह को दर्शाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन विषम संख्याओं का मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जबकि सम संख्याएं स्थिर ऊर्जा को दर्शाती हैं।
इस वजह से जीरो को शुभ नहीं माना जाता
अक्सर लोगों का मानना होता है कि किसी भी रकम में जीरो आने पर वो अंतिम हो जाता है। उसी तरह अगर रिश्ते में जीरो के आधार पर नेग देते हैं तो वो रिश्ता खत्म हो जाता है। ऐसे में एक रुपेय बढ़ाकर दिया जाता है। जीरो के अलावा हर अंक का सबसे कनेक्शन है। जैसे सात का सप्तऋषि, नौ का नौदेवी या नौग्रह आदि से है। इस वजह से जीरो को शुभ नहीं मानकर इसमें एक रुपये जोड़ दिया जाता है।
20 आना देने की थी परंपरा
कई पीढ़ियों से लोग इसे फॉलो कर रहे हैं लेकिन, अगर इतिहास पर नजर डालें तो समझ आता है कि इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पुराने दौर में किसी शुभ कार्य में 20 आना देने की परंपरा थी, जिसका मतलब है एक रुपये और 25 पैसे यानी सवा रुपये। एक रुपये में 16 आने होते हैं और इसलिए ही 50 पैसे को अठन्नी और 25 पैसे को चवन्नी कहते हैं। यानी उस वक्त से ही कुछ बढ़ाकर देने की परंपरा है। जैसे एक रुपये में कुछ बढ़ाकर दें तो सवा रुपये बन जाता है।