यूपी के इस शहर में पूजी जाती है रावण की फैमिली की ये राक्षसी, मंदिर में भक्त चढ़ाते हैं बैंगन और मूली

Trijata Temple Varanasi: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में रासक्षी त्रिजटा का प्राचीन मंदिर है, जो सिर्फ एक दिन के लिए खुलता है, भक्त देवी रूवरूप में करते हैं पूजा-अर्चना।

लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जिनमें रावण के अलावा उसके परिवार के लोग विराजमान हैं। भक्त विधि-विधान से पूजा करते हैं और मन्नत मांगते हैं। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हैं। यहां पर रावण के छोटे भाई विभीषण की बेटी त्रिजटा का मंदिर है। दशानन की भतीजे त्रिजटा के मंदिर में भक्त मूली और बैंगन का भोग लगाकर मन्नत मांगते हैं।

कौन है त्रिजटा

जब रावण मां सीता को अगवा कर लंका ले गया तो उन्हें अशोक वाटिका में ठहराया था। रावण ने मां सीता की देखरेख के लिए राक्षसी त्रिजटा को अशोक वाटिका में तैनात किया था। त्रिजटा ने माता सीता का ख्याल अपनी पुत्री की तरह रखा, और उन्हें लंका में घटित होने वाली हर जानकारी से अवगत कराया। यहां तक की त्रिजटा ने पहले ही माता सीता से रावण के वध की भविष्यवाणी कर दी थी।

मुक्ति और मोक्ष मिल सके

मान्यताओं के अनुसार, रावण के वध के बाद माता सीता, त्रिजटा को अपने साथ भारत ले आई और बनारस जाकर रहने की आज्ञा दी, ताकि उन्हें राक्षस योनि से मुक्ति और मोक्ष मिल सके। इतना ही नहीं, माता सीता ने त्रिजटा को एक दिन की देवी बनने का भी वरदान दिया, जिसके बाद से काशी में हजारों मंदिरों के बीच साक्षी विनायक मंदिर के पास राक्षसी त्रिजटा का मंदिर बनाकर उन्हें पूजा जाने लगा।

लगता है मूली-बैगन का भोग

त्रिजटा का मंदिर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अद्वितीय है, क्योंकि यह राक्षसी एक दिन के लिए देवी मानी जाती है। त्रिजटा को मूली और बैंगन का भोग लगाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन पूरा मंदिर इनसे भर जाता है। त्रिजटा की पूजा सिर्फ साल में एक दिन, कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन की जाती है। मंदिर में पूरे कार्तिक मास के दौरान गंगा स्नान और भगवान विष्णु की पूजा के बाद त्रिजटा की पूजा को संकल्प पूरा करने के लिए अनिवार्य माना जाता है।

देवी स्वरूप में पूजा

त्रिजटा की पूजा के दिन मंदिर में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती हैं। अन्य दिनों में भी इस मंदिर को देखने भक्त आते हैं, लेकिन पूजा केवल तय दिन पर होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, त्रिजटा अशोक वाटिका में माता सीता की सेवा करती थीं। माता सीता ने त्रिजटा को वरदान दिया था कि वे काशी में विराजमान होकर देवी स्वरूप में पूजा जाएंगी।

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