लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। करीब तीन दशक पहले उत्तर प्रदेश का संतकबीर नगर जिला शिक्षा के मामले में काफी पीछे था। यहां के युवा किसानी, मजदूरी करने के साथ ही काम की तलाश में दूसरे शहर आया करते थे। पर अब हालात इसके बिलकुल उलट हो गए हैं। जनपद के मेंहदावल के एकला शुक्ला गांव में सरकारी नौकरी की फसल लहलहा रही है। आईएएस-आईपीएस और पीसीएस के साथ ही साइंटिस्ट बनकर युवा इसरो में अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं। इतना ही नहीं टीचर्स भी यहां सबसे अधिक हैं और गांव-गांव, शहर-शहर शिक्षा की लौ जा रहे हैं।
60 से अधिक लोग कर रहे सरकारी जॉब
संतकबीर नगर जिले का एकला शुक्ला गांव पिछले कई सालों से नए-नए आयाम लिख रहा है। एक वक्त गांव के युवाओं को मुख्य रोजगार किसानी था। पढ़ गए तो जॉब की तलाश में दूसरे शहर जाना पड़ता था। लेकिन तभी समय बदला और युवाओं के अंदर देश और समाज के लिए कुछ करने की अलख जगी। फिर क्या था 250 घरों वाला एकला शुक्ला गांव सरकारी नौकरी के मामले पर पहले पायदान पर पहुंच गया। गांव में आईएएस, आईपीएस, पीसीएस के अलावा बड़ी संख्या में शिक्षक हैं। एक व्यक्ति इसरो में वैज्ञानिक भी है। वर्तमान में 60 से अधिक लोग सरकारी सेवा में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ब्राह्मण बाहुल्य गांव में तमाम लोग निजी कंपनियों में भी बड़े पदों पर तैनात हैं।
ऐसे मेधा को सवांर रहे ग्रामीण
एकला गांव की ये तस्वीर एक दिन में नहीं बदली। गांव में सरकारी नौकरी की फसल ऐसे ही नहीं लहलहा रही। इसके पीछे गांव के बुजुर्गो का अहम रोल रहा है। गांव में आजादी के बाद से कई शिक्षक निकले। उनके परिवार के लोग भी ‘मस्साब’ बन शिक्षा की लौ जलाए रखी। करीब तीन दशक पहले रिटायर्ड टीचर्स ने युवाओं के अंदर पढ़ाई का जज्बा पैदा किया। कलेक्टर, कप्तान बनने की ललक उनके अंदर पैदा की। जिसके बाद युवाओं ने किताबों से दोस्ती करनी शुरू की। कारवां बनता गया और आज करीब 60 से अधिक लोग सरकारी नौकरी में अपनी सेवा दे रहे हैं। अब गांव के बुजुर्ग डंके की चोट पर कहते हैं कि हमारे गांव में सरकारी नौकरी की फसल खूब लहलहा रही है।
सरकारी स्कूल से पढ़कर बने अफसर
ग्रामीणों ने बताया कि युवाओं की प्रारंभिक शिक्षा मेंहदावल कस्बे के प्राथमिक शिक्षा से हुई। इसके बाद युवाओं ने आगे की पढ़ाई मेंहदावल के ही इंटरकॉलेज से की। गांव में रहकर नौकरियों की तैयारी की। किसी कोचिंग संस्थान में न जाकर घर पर कोचिंग सेंटर खोला और किताबों से दोस्ती कर ली। जिसका नतीजा रहा कि गांव में सरकारी नौकरियों की बाढ़ आ गई। गांव के चंद्रशेखर शुक्ल करीब ढाई दशक पूर्व स्टेट बैंक में बतौर प्रबंधक पोस्ट हुए। कुछ समय बाद ही प्रदीप कुमार शुक्ल एयर फोर्स में अधिकारी हो गए। उसके बाद राकेश कुमार शुक्ल पीसीएस जे की परीक्षा पास करके जज बने तो गांव में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई।
फिर सफलता का सिलसिला चल पड़ा
गांव के ही नीरज शुक्ल सहायक कमिश्नर वाणिज्य तथा सुधीर शुक्ल सहायक वैज्ञानिक इसरो के पद पर तैनात हुए। इन सफल चेहरों ने गांव में शिक्षा की ज्योति जलाई। इससे गांव में एक बेहतर माहौल मिला और फिर सफलता का सिलसिला चल पड़ा। गांव में पढ़ाई की प्रतिस्पर्धा है। हर बच्चा खुद को बेहतर बनाने में लगा रहता है। गांव के चौपाल पर भी बड़े-बुजुर्ग बच्चों को सकारात्मक प्रतिस्पर्धा करने की सलाह देते हैं। गांव में बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है। सफल हुए लोगों की जीवनशैली व चकाचौंध दिखाकर बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए आकर्षित भी किया जाता है।
तब करीब 12 लोगों को जाना पड़ा था जेल
गांव के बुजुर्ग तेज प्रताप शुक्ल ने बताया कि सन 1947 के आसपास गांव में धनिया की खेती को लेकर विवाद हुआ था। इसमें एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। करीब 12 लोग जेल गए थे। इस घटना के बाद से समाज में गांव की छवि खराब हुई थी लेकिन युवा वर्ग ने पढ़ाई के बूते गांव का नाम रोशन किया। अब इस गांव की अपनी अलग पहचान है। वर्तमान में भी करीब तीन दर्जन बच्चे इलाहाबाद व दिल्ली में रहकर नौकरी पाने के लिए तैयारी में जी जान से जुटे है। गांव की मुख्य खेती सरकारी नौकरी है। यहां पर बच्चों का रुझान देखकर उसको उसी दिशा में मोड़ दिया जाता है जिससे आगे चलकर वो सफलता के पथ पर आगे बढ सकें।
गांव से ये लोग निकले और बने अफसरान
गांव के उत्कर्ष शुक्ला बीएचयू से आईआइटी करने के बाद भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आइईएस) में हैं। प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) के पद पर गांव के राजेश शुक्ला, दिनेश शुक्ला, नीरज शुक्ला पोस्ट हैं। सुधीर शुक्ला इसरो में वैज्ञानिक हैं तो सहायक वैज्ञानिक के पद पर शिवाशीष शुक्ला भी वहीं पर काम कर रहे हैं। खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर विनोद त्रिपाठी की तैनाती है। गांव के मनोज त्रिपाठी मध्य प्रदेश में एपीओ हैं। अतुल त्रिपाठी रेलवे में इंजीनियर हैं तो हिमांशु भी रेलवे में अधिकारी हैं। चंद्रशेखर शुक्ला स्टेट बैंक में बतौर प्रबंधक अपनी सेवा दे रहे हैं।
मस्साब बन जला रहे शिक्षा की लौ
गांव के दो लड़के इंटर कालेज में शिक्षक हैं। परिषदीय विद्यालय में सुधाकर शुक्ला, शक्ति कुमार शुक्ला, सुनील कुमार शुक्ल, सुमन देवी, कृष्णा देवी, देव प्रभाकर, सर्वेश त्रिपाठी, वैभव शुक्ला, पियूष, बबीता त्रिपाठी, रेनू शुक्ला, अभिलाष शुक्ला, निशांत शुक्ला, रामकृष्ण शुक्ल, रामेश्वर शुक्ल, बृजेश शुक्ला सहित अन्य लोग तैनात हैं। 12 से अधिक बुजुर्ग शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में शिक्षा का अच्छा माहौल है। हर घर से कोई न कोई सरकारी-प्राईवेट जॉब में हैं। ऐसे में बचपन से ही युवाओं को पठ-पाठन ठीक तरीके से होता है। कुछ युवा आईएएस-आईपीएस की तैयारी करते हुए गांव में अपने घरों पर दिखे।