नई दिल्ली। (Amethi lok sabha election ) उत्तरप्रदेश की हॉट सीट और कांग्रेस की पुश्तैनी सीटें मानी जाने वाली सीट अमेठी और रायबरेली सीटों पर कांग्रेस के तरफ से इस बार कौन लड़ेगा ? यह सवाल अभी भी चर्चा का केंन्द्र है, जबकि लोकसभा का बिगुल फूँका जा चुका है। यूपी के इन सीटों पर पांचवे चरण में चुनाव होने हैं। मगर इन सीटों पर संसय अभी भी बरकार हैं। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि इन सीटों के लिए कांग्रेस अब जल्द ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने करने वाली हैं। लेकिन उससे पहले जानिए क्या है इन सीटों का इतिहास। लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की गढ़ मानी जाने वाले इन सीटों पर किसका दबदबा रहा है। यहाँ जातीय समीकरण क्या कहता हैं? ऐसे कौन से फैक्टर हैं जो इस सीट को महत्वपूर्ण बनाता हैं।
Amethi lok sabha election का इतिहास
कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की
लोकसभा के सीटों में इस सीट की गिनती कांग्रेस की अपनी सीटों में की जाती है। क्योंकि अभी तक हुए लोकसभा के चुनाव में 16 बार यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी विजय हुए जिसमें गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी ने लंबे समय तक इस सीट से जनता का भरोसा जीता।
पहले तीन लोकसभा अमेठी निर्वाचन क्षेत्र नही था
देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव (Amethi lok sabha election) में अमेठी निर्वाचन क्षेत्र नही था। तब यह सीट यूपी के सुल्तानपुर दक्षिण सीट के अंतर्गत आती थी। यहां से पहली बार बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर सांसद बने। फिर 1957 में यह सीट मुसाफिरखाना लोकसभा का हिस्सा बना। लेकिन सांसद नहीं बदला। कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर ही पार्टी से सांसद बने रहे। फिर जब 1962 का चुनाव हुआ बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर का टिकट पार्टी ने काट दिया। इस बार यहां से राजा रंणजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने।
1967 में अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बना
पहले सुल्तानपुर दक्षिण और फिर मुसाफ़िरखाना लोकसभा के बाद 1967 में अमेठी निर्वाचन क्षेत्र बना और यह अस्तित्व में आया। 1967 के आमचुनाव में इस नई सीट पर कांग्रेस ने विद्याधर वाजपेयी को टिकट दिया। पहली बार लोकसभा सीट के रूप में अस्तित्व में आयी ।
Amethi lok sabha election: अभी तक के सांसद
इस सीट से कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी ने खाता खोला। चुनाव में उन्होंने बीजेपी के गोकुल प्रसाद पाठक को करीब 3,665 वोटों के अंतर से हराया और अगली लोकसभा में भी अपनी जीत सुनिश्चित कर ली। उसके बाद अभी तक के सांसद
- 2019 -स्मृति ईरानी(भाजपा)
- 2014-राहुल गांधी(कांग्रेस)
- 2009-राहुल गांधी (कांग्रेस)
- 2004-राहुल गांधी(कांग्रेस)
- 1999-सोनिया गांधी(कांग्रेस)
- 1998-संजय सिंह(भाजपा)
- 1996- सतीश शर्मा(कांग्रेस)
- 1991-राजीव गांधी(कांग्रेस)
- 1991(उप-चुनाव) – सी एस के शर्मा (कांग्रेस)
- 1989-राजीव गांधी(कांग्रेस)
- 1984-राजीव गांधी(कांग्रेस)
- 1981(उप-चुनाव ) – राजीव गांधी (कांग्रेस (I))
- 1980-संजय गांधी (कांग्रेस (I))
- 1977- रवीन्द्र प्रताप सिंह (BLD)
- 1971-विद्याधर बाजपेयी(कांग्रेस )
- 1967-वी डी वाजपेयी (कांग्रेस)
कांग्रेस के इस सीट पर गांधी परिवार की 1980 में इंट्री
लोकसभा सीट बनने के बाद पहली बार 1980 में यहां से गांधी परिवार का सदस्य चुनाव लड़ा। 1980 में यहां से पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जीत दर्ज की उसके बाद फिर जब 23 जून 1980 को उनकी मृत्यु हो गई फिर यह सीट इंदिरा के दूसरे बेटे राजीव गांधी की झोली में आई। जिसके बाद फिर 1999 में इस सीट से सोनिया गांधी जीती। लेकिन 2004 में यूपी के इस सीट से राहुल गांधी की एंट्री हुई और वे 2019 तक सांसद रहे।
किस पार्टी कितनी बार जीत मिली
लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से देखें तो अमेठी में अब तक के हुए 17 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं। जिन चुनावों में कांग्रेस ने 16 बार जीत का परचम लहराया तो उसे 3 बार हार का भी सामना करना पड़ा। तीन हारों में 1977 में भारतीय लोकदल और 1998 में बीजेपी और 2019 में बीजेपी ने इस सीट पर कांग्रेस को हरा जीत दर्ज की।
Amethi lok sabha election : विधानसभा की 5 सीटें
कांग्रेस के इस गढ़ में राज्य की विधानसभा की 5 सीटें हैं। इन सीटों में अमेठी, गौरीगंज, सलोन, तिलोई, जगदीशपुर (एससी) हैं। विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों के हिसाब से अमेठी और गौरीगंज से समाजवादी पार्टी तो बीजेपी बाकी तीन जगहों से अपने विधायक बनाने में सफल रही थी।
अमेठी सीट का जातीय समीकरण
लोकसभा के लिए इस सीट पर जातिगत समीकरण को देखें तो यहां दलित और मुस्लिम वोटर किसी प्रत्याशी के जीत और हार का कारण बनते है। चुनाव आयोग के अनुसार अमेठी में करीब 17 लाख मतदाता हैं। यहां दलित मतदाताओं में पासी समुदाय की जनसंख्या करीब 4 लाख के करीब है तो वहीं मुस्लिम की जनसंख्या साढ़े तीन लाख हैं। लिस्ट में ओबीसी में यादव ढाई लाख तो डेढ़ लाख मौर्य समुदाय और एक लाख कुर्मी मतदाता है।
- ओबीसी- 34 फीसदी ,
- मुसलमान- 20 फीसदी
- दलित- 26 फीसदी
- ब्राह्मण -8 फीसदी
- ठाकुर और अन्य – 12 फीसदी