Maharashtra: जिंदगी में कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उसके एक इशारे पर ठहर जाती थी अक्खा मुंबई. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी उस इंसान का करते थे पालन. क़दमों में पाए जाते थे विधायक और सांसद. लेकिन आज उद्धव शिवसेना की फजीहत कराने पर उतर आये है. वहीं अगर आज बाला साहब जिंदा होते तो खुद मोदी भी सिर झुका कर प्रणाम करते. अटल के जमाने में BJP को बाला साहब कमला बाई कह के बुलाते थे. फिर मोदी से दोस्ती और गहरी होती गई. हाथ में रुद्राक्ष की माला, शेर की तस्वीर वाली तस्वीर और आवाज़ तानाशाह वाली. बाला साहब के फैसले से सरकारे हिल जाती थी. हिन्दुस्तान ही नहीं पाकिस्तान में भी दखल था और पकिस्तान डर के मारे कापने लगता था. मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो लेकिन महाराष्ट्र के लोग अपनी सरकार बाला साहब ठाकरे को ही मानते थे. कहते है तब पत्ता भी बाला साहब ठाकरे के इशारे के बिना नहीं हिलता था. जिस शिवसेना को आज उद्धव ठाकरे नही बचा पा रहे है. 90 की दशक में देश के बच्चे बच्चे की जुबान पर बाला साहब का नाम था. मुंबई में दंगे हो या क्रिकेट, सिनेमा हो या माफिया, हर जगह शिवसेना का दखल होने लगा था. बाल ठाकरे की एक आवाज़ के बाद मुंबई में एक चाय का प्याला भी नहीं मिलता था, उनका आदेश अंतिम आदेश होता था.
महाराष्ट्र में हर 5 साल में एक मुख्यमंत्री तो चुना गया लेकिन बाला साहब के सामने सम्मान में अपना सर झुकाते थे. जब तक साहब जिंदा थे, शिवसेना की तरफ किसी ने भी आँख उठा कर नहीं देखा.
एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे ने एक साथ बाला साहब से राजनीती सीखी. बाला साहब के इशारों पर एकनाथ शिंदे काम करते थे. प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, उस दौरान बाला साहब से मिलने खुद जाते थे और सम्मान में सिर भी झुकाते थे.
अटल बिहारी बाजपाई और बाला साहब की दोस्ती के किस्से हर कोई जानता है. बाला साहब कट्टर हिंदूवादी थे, शिवसेना का गठन किया. लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ा. वो कहते थे ‘मै कभी मुख्यमंत्री नहीं बनूँगा’. BJP का चुनाव चिन्ह कमल है इसीलिए बाला साहब BJP को मज़ाक में कमला बाई कह कर बुलाते थे.
1991 में पाकिस्तान और भारत के बीच मैच होना था लेकिन बाला साहब चाहते थे की मैच ना हो, इसीलिए मैच को रोकने के लिए शिवसेना के लोगों ने वानखेड़े स्टेडियम को ही खोद डाला था. यह सब कुछ बाला साहब के इशारों पर हो रहा था. ऐसी घटना अज तक इतिहास में कभी नहीं देखी गई है. बाला साहब का सपना था की राम मंदिर बने और कश्मीर से धारा 370 भी हटे, लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही उनकी मौत हो गई. यह जान कर आपको हैरानी होगी जब गुजरात के गोदरा काण्ड के बाद मोदी को घेरा जा रहा था. उस वक़्त बाला साहब ठाकरे मोदी के समर्थन में खड़े थे.
2012 में बाला साहब की मौत होने के बाद उद्धव ठाकरे को शिवसेना तो मिल गई लेकिन इसे संभाल न सके. सत्ता की लालच में उद्धव BJP से अलग हो गए. अपनी विचार धारा भी बदली और मुख्यमंत्री बन गए. इन सब के चलते शिवसेना के अंदर ही अंदर विरोध चल रहा था. जिसका असर अब दिखना शुरू हो गया है. आज एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए CM बन चुके है. अब देखना यह है की क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र को नया रास्ता दिखाने में सफल रहेंगे…क्या BJP के द्वारा दिए गए इस पद को संभालने में सफल रहेंगे ?
महाराष्ट्र का आज बच्चा बच्चा कह रहा है की अगर बाला साहब आज जिंदा होते तो शिवसेना की इतनी फजीहत न होती.