Nishikant Dubey citizenship laws: भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद डॉ. निशिकांत दुबे के एक ताजे बयान ने भारत में नागरिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर नए विवाद को जन्म दिया है। Nishikant Dubey ने 28 अप्रैल, 2025 को ट्विटर पर यह आरोप लगाया कि भारतीय पुरुषों से विवाह करने वाली 500,000 से अधिक पाकिस्तानी महिलाएँ भारत में बिना नागरिकता के रह रही हैं। उन्होंने इन महिलाओं को “घुसपैठिए” करार दिया और चेतावनी दी कि यह पाकिस्तान के आतंकवाद का एक नया चेहरा हो सकता है। इस बयान के बाद से बहस तेज़ हो गई है, जिसमें कई लोग इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मान रहे हैं। लेकिन, इस मामले में जो सबसे बड़ी चिंता की बात है, वह यह है कि जो लोग पाकिस्तान से विवाह के बाद नागरिकता प्राप्त नहीं कर रहे हैं, क्या उनका भारत में रहना उचित है?
https://twitter.com/nishikant_dubey/status/1916684090419331428
Nishikant Dubey का बयान ट्विटर पर वायरल हो गया और जल्द ही इस पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आने लगीं। कई यूजर्स ने उनकी चिंताओं का समर्थन करते हुए कड़े कदम उठाने की मांग की। एक यूज़र ने सुझाव दिया कि जो भारतीय पुरुष पाकिस्तानियों से शादी करते हैं, उनकी नागरिकता रद्द की जानी चाहिए। वहीं, कुछ अन्य ने यह सवाल उठाया कि क्यों पाकिस्तान से शादी करने वाली महिलाएँ भारतीय नागरिकता की प्रक्रिया को नहीं अपना रही हैं। Nishikant Dubey की बातों में यह संकेत था कि कई पाकिस्तानी महिलाएँ भारत में रहकर अपनी नागरिकता की जिम्मेदारी से बच रही हैं, और यह सुरक्षा के दृष्टिकोण से गलत है।
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इस मामले में सरकार के रवैये को लेकर भी आलोचनाएँ तेज़ हो गई हैं। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के नागरिकता कानूनों में हाल ही में किए गए बदलावों ने पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों और बौद्धों को नागरिकता प्राप्त करने में सहूलत दी है, लेकिन पाकिस्तान के मुसलमानों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। इस असमानता ने बहस को और अधिक तूल दिया है, क्योंकि यह सवाल उठता है कि क्या हम एक ऐसे समाज के रूप में नागरिकता के आधार पर भेदभाव कर रहे हैं?
इतिहास में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं, और अब ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच युद्ध और कश्मीर मुद्दा जैसे संवेदनशील मामले मौजूद हैं, यह बहस और भी जटिल हो जाती है। कुछ लोग यह मानते हैं कि सीमा पार विवाह भारत के विरोधी एजेंडों के लिए एक “नरम मंच” हो सकते हैं, जैसा कि कई ट्वीट्स में देखा गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हमें अपनी नागरिकता और सुरक्षा नीतियों को और अधिक कड़ा बनाने की आवश्यकता है, ताकि इस प्रकार के संभावित खतरे को रोका जा सके?
सार्वजनिक संसाधनों पर दबाव और सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर सरकार को अपनी नीति में बदलाव करने की आवश्यकता है। वहीं, कुछ भाजपा समर्थक यह आरोप भी लगा रहे हैं कि सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की ओर झुकी हुई है, जबकि अन्य समुदायों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस जटिल मुद्दे पर कब और किस तरह की कार्रवाई करती है, ताकि नागरिकता और सुरक्षा के मुद्दे को संतुलित तरीके से हल किया जा सके।