नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का लगातार पाकिस्तान पर प्रहार जारी है। सीसीएस की बैठक में भारत ने कई फैसले लिए। इसमें 1960 की सिंधु जल संधि समझौता भी शामिल है, जिसे तत्काल प्रभाव से कैंसिल कर दिया गया। शुक्रवार को केंद्रीय जलमंत्री की तरफ से बयान भी आ गया, जिसमें उन्होंने पाक की तरफ जानें वाले पानी को रोकने को लेकर अधिकारियों को दिशानिर्देश भी जारी कर दिए। इसी के चलते पाकिस्तान बिलबिलाया हुआ है और शिमला समझौते रद्द किए जाने का ऐलान किया है। तो आइए जानते हैं कि इससे किसे फाएदा और किसे नुकसान होगा।
पहले जानें क्या है शिमला समझौता
शिमला समझौता 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार के बाद हुआ था। इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के हजारों सैनिक और 5 हजार वर्ग मील का भूमि क्षेत्र भारत के कब्जे में था। इसी पर बातचीत के लिए भुट्टो शिमला आए थे। इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने 2 जुलाई 1972 को इस डील से जुड़े दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसीलिए इसे शिमला समझौता कहा जाता है। शिमला समझौते में कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान के सुरक्षा बल अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपनी-अपनी तरफ वापस चले जाएंगे और कोई भी पक्ष एलओसी की स्थिति को एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश नहीं करेगा। हालांकि 1999 में पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन किया था और कारगिल में घुसपैठ की थी।
शिमला समझौता रद्द किए जाने का ऐलान
भारत के एक्शन से तिलमिलाए पाकिस्तान की तरफ से एक बड़ा बयान सामने आया। बयान में कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने के अधिकार का प्रयोग करेगा। इसमें शिमला समझौता भी शामिल है। पाकिस्तान की तरफ से कहा गया है कि जल्द ही इसे अहल पर लाया जाएगा। ऐसे में इसका नुकसान पाकिस्तान को ही होगा। शिमला समझौते के निलंबन पर भारत नियंत्रण रेखा के पार विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है। भारत पीओके के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है। इससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ सकता है। इसका खामियाजा पाकिस्तान को उठाना पड़ सकता है।
भारत को मजबूत तर्क मिल जाएगा
शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाए रखने का आधार है। यह समझौता दोनों देशों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए बाध्य करता है। इसके निलंबन से भारत को मजबूत तर्क मिल जाएगा कि पाकिस्तान ने स्वयं ही इस समझौते को खारिज कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप, भारत कश्मीर पर अपनी नीतियों को और मजबूत करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब एलओसी के पार अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है, जिसमें सैन्य कार्रवाई से लेकर पीओके के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करना शामिल हो सकता है। यह कदम भारत को पीओके में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दे सकता है, जो 1947 से पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है, लेकिन भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
पाकिस्तान को होगा बड़ा नुकसान
शिमला समझौते से पीछे हटने का फैसला भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की दिशा में मजबूत दलीलें मिलेंगी। साथ ही, एलओसी पर कड़ी कार्रवाई करने की वैधता भी भारत को मिल सकती है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के लिए यह फैसला भारी पड़ सकता है। शिमला समझौते के निलंबन से पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र या इस्लामिक सहयोग संगठन पर ले जाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन इससे उसकी वैश्विक छवि को और नुकसान होगा। पहले ही सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान में पानी का संकट गहराने की आशंका है, और अब शिमला समझौते को रद्द करने से उसकी कूटनीतिक अलगाव की स्थिति और गंभीर हो सकती है।