दतिया: मां मां ही होती है मां उपमा नहीं होती क्योंकि कोई भी मां के समान नहीं है। मां के समान मां ही हैं। जाहिर है किसी के भी जीवन में मां का अहम स्थान होता है। डॉ राजेश्वर सिंह की देवी मां, गंगा मां, मां भारती, जन्मदात्री मां के प्रति गहरी आसक्ति है। अध्यात्म के उच्च शिखर पर पहुंचा हर व्यक्ति इसको भलीभांति महसूस कर सकता है। जीवन की उपरामता में कुछ ऐसे पल आते हैं जब व्यक्ति अपने में नहीं होता और भक्ति और प्रेम की पुण्य भावना में आकंठ डूब जाता है। तब बाबा तुलसी की पंक्तियों में कह सकते हैं, मन गुन गावत पुलक सरीरा, गदगद गिरा नयन बह नीरा। इस भाव में मौन ही नहीं काष्ठ मौन की स्थिति आ जाती है।
डॉ राजेश्वर की दतिया की प्रसिद्ध पीतांबरा पीठ में गहरी अनुरक्ति है। पुलिस सेवा में तमाम व्यवस्तताओं के बीच डॉ राजेश्वर हर महीने मां बगलामुखी के दर्शन करने अवश्य जाते रहे और यह क्रम अनवरत चल रहा है। गौरतलब है कि मां बगलामुखी को राजयोग और यश की देवी माना जाता है। मां बगलामुखी के देश में तीन स्थल हैं जिनमें एक हिमाचल प्रदेश में जबकि दो मध्यप्रदेश में है। तीन मुख वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का एक मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में है जिसको पीतांबरा पीठ के नाम से जाना जाता है। खास बात है कि देवी की पूजा पीतोपचार विधि से की जाती है। मां बगलामुखी पीतांबर ही धारण करती हैं।
एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक बगलामुखी का प्राकट्य सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर में हुआ था। सृष्टि में महाविनाश को रोकने के लिए देवी बगलामुखी भगवान विष्णु की प्रार्थना पर हरिद्रा सरोवर से प्रकट हुई थीं। पीतांबरा पीठ में विराजित बगलामुखी देवी के बारे में कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। डॉ राजेश्वर की मां बगलामुखी में गहरी आस्था है। मां के दरबार में जब वो पहुंचते हैं तो अलौकिक भाव में डूब जाते हैं।
बगलामुखी देवी के साथ ही डॉ राजेश्वर की मां गंगा में भी गहरी आस्था है। कहा जाता है गंगा तव दर्शनात् मुक्ति। मां गंगा पाप, ताप, शाप से मुक्त करती हैं। मां गंगा की धवलधार का दर्शन करते ही हमारे भीतर अमृत की रसधार बहने लगती है। डॉ राजेश्वर हर दूसरे महीने गंगा स्नान अवश्य करते हैं। ये मां गंगा के अनन्य प्रेम को बखूबी दर्शाता है। जाहिर है एक हाथ में गंगा हो दूसरे हाथ में तिरंगा हो और होठों पर वंदेमातरम् का गान। यही भाव डॉ राजेश्वर के जीवन में दिखता है।
मां भारती के लिए सबकुछ न्योछावर करने , देशभक्ति की भावना उनके अंदर इस तरह रची-बसी है कि उनके सारे क्रियाकलाप में यह बखूबी झलकती भी है। रीति-प्रीति की प्रबल प्रगाढ़ता का ही असर है कि इन सारे भावों से व्यक्ति भर जाता है। आनंद की सरिता में अवगाहन करने लगता है। डॉ राजेश्वर दतिया की बगलामुखी मां का हर महीने दर्शन करते हैं वहीं हर दूसरे महीने गंगा में स्नान करते हैं। और अपनी मां तारा सिंह के प्रति उनके स्नेह का सार है कि जब भी समय मिलता है, मां के चरणों में विनयावनत रहते हैं।
सच ही है कि मां के ऋण से कोई मुक्त नहीं हो सकता। कहा जाता है कि भगवान जब लोगों से स्नेह करना चाहते हैं तो मां के रूप में जन्म लेते हैं। मां जब अपने लाल को स्नेहपूर्ण नयनों से निहारती है तो उस छवि का वर्णन किया नहीं जा सकता। अगर बाबा तुलसी के शब्दों को यहां प्रयुक्त करें तो कह सकते हैं, गिरा अनयन, नयन बिनु बानी। वाणी के पास आंखें नहीं हैं और आंखों के पास वाणी नहीं है। ऐसे में कैसे इस मनोहारी दशा का वर्णन किया जा सके। डॉ राजेश्वर की चारो मां, मां बगलामुखी, मां गंगा, मां भारती अपनी मां के प्रति जो गहरी आस्था है उन्हें सह्रदयता की कतार में पहले नंबर पर खड़ा करती है।