Funeral Rules: सनातन धर्म में जीवन की हर छोटी-बड़ी बात के लिए नियम तय किए गए है।फिर चाहे वो जन्म हो, विवाह हो या मृत्यु। जब किसी परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो शोक के साथ-साथ कुछ विशेष धार्मिक नियमों का पालन भी जरूरी होता है। ये नियम केवल परंपराओं के लिए नहीं बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धता के लिए भी माने जाते हैं।
परिवार के सभी सदस्यों को रखने होते हैं ये नियम
जब किसी की मृत्यु होती है तो परिवार के सभी सदस्यों को संयम और सादगी भरा जीवन जीना चाहिए। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी होता है और सभी को अलग-अलग बिस्तरों पर सोना चाहिए। मांसाहार, शराब जैसे तामसिक चीजों से पूरी तरह दूरी रखनी चाहिए। इसके अलावा इस समय किसी को प्रणाम करना या आशीर्वाद देना भी वर्जित होता है। नाखून, दाढ़ी या बाल काटना, बालों में तेल लगाना, पैर दबवाना या सिर धोना भी इस समय मना होता है। साबुन का प्रयोग नहाने और कपड़े धोने के लिए भी नहीं किया जाता। परिवार को पहले, तीसरे, सातवें और दसवें दिन एक साथ बैठकर भोजन करना चाहिए, ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले। इस दौरान मंदिर जाना, मूर्तियों को छूना, पूजा-पाठ करना और दान देना भी टाला जाता है।
मुखाग्नि देने वाले को मानने होते हैं अलग नियम
जो व्यक्ति मृतक को मुखाग्नि देता है, उसके लिए कुछ खास नियम होते हैं। पहले दिन भोजन या तो बाहर से मंगवाया जाता है या फिर ससुराल या मामा के घर से मंगाकर खाया जाता है। इस दौरान जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करना जरूरी होता है। उसे किसी के पैर नहीं छूने चाहिए और न ही किसी को अपने पैर छूने देना चाहिए। सूर्यास्त से पहले खुद एक बार खाना बनाकर खाना चाहिए, जिसमें नमक न हो। यह भोजन मिट्टी के बर्तन या पत्तल में करना चाहिए। पहले दिन या तीन दिन तक उपवास रखना या फलाहार करना अच्छा माना गया है। खाने से पहले गाय को रोटी खिलानी चाहिए और मृतक की आत्मा के लिए भोजन घर के बाहर रखना चाहिए। उसके बाद ही खुद भोजन करना चाहिए।
क्यों माने जाते हैं ये नियम जरूरी?
इन नियमों का मकसद न केवल धर्म और परंपरा का पालन करना है, बल्कि शोक की स्थिति में मन और शरीर को संयम में रखने का संकेत भी है। ये रीति-रिवाज व्यक्ति को धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौटने का मौका देते हैं, साथ ही मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना का रूप भी होते हैं।